नागरिकता (संशोधन) कानून असम की संस्कृति और पहचान पर हमला है: प्रदर्शनकारी
By भाषा | Published: December 15, 2019 05:51 PM2019-12-15T17:51:36+5:302019-12-15T17:51:36+5:30
गुवाहाटी निवासी 48 वर्षीय उपेन्द्रजीत कलिता ने बताया कि जिस दिन संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी उस दिन वह ‘‘ठगा हुआ महसूस’’ कर रहे थे। उनका आरोप है कि विधेयक ‘‘असम समझौते के खिलाफ’’ है जिसे असम के मूल लोगों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था।
वे सभी अलग-अलग पृष्ठभूमि और धर्म से आते हैं लेकिन शहर के प्रदर्शन स्थलों और राज्य के कई हिस्से में वे नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ एकजुट हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह असम की संस्कृति और पहचान पर ‘‘हमला’’ है।
गुवाहाटी निवासी 48 वर्षीय उपेन्द्रजीत कलिता ने बताया कि जिस दिन संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी उस दिन वह ‘‘ठगा हुआ महसूस’’ कर रहे थे। उनका आरोप है कि विधेयक ‘‘असम समझौते के खिलाफ’’ है जिसे असम के मूल लोगों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था।
एक विज्ञापन एजेंसी में काम करने वाले कलिता ने ऐतिहासिक छह वर्ष तक चले असम आंदोलन में हिस्सा लिया था जिसका नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने किया था जिसके बाद 1985 में असम समझौता हुआ था। राज्य भर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व भी आसू ही कर रहा है।
गुवाहाटी से जोरहाट और डिब्रूगढ़ से शिवसागर तक प्रदर्शनों के कारण राज्य में जनजीवन अस्त-व्यस्त है। उनकी मांग है कि ‘‘सीएए खत्म किया जाना चाहिए’’ अन्यथा आंदोलन तेज किया जाएगा। सभी समुदाय के लोग आंदोलन में शामिल हुए हैं और गुवाहाटी में कर्फ्यू का उल्लंघन किया है जहां बृहस्पतिवार से ही कर्फ्यू जारी है। बोरझार में हवाई अड्डा क्षेत्र में टैक्सी चलाने वाले नकीउब हसन ने कहा कि वह प्रदर्शनों में हिस्सा लेते रहे हैं।