सीजेआई ने कहा, "क्रिमिनल जस्टिस का तरीका कभी-कभी पीड़ितों के लिए ही ट्रॉमा बन जाता है"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 10, 2022 09:38 PM2022-12-10T21:38:45+5:302022-12-10T21:45:03+5:30

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने क्रिमिनल जस्टिस की खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कभी-कभी आपराधिक न्याय प्रणाली पीड़ितों को न्याय प्रदान करने की बजाय उनके ट्रॉमा को बढ़ा देती है।

Chief Justice DY Chandrachud said, "The method of criminal justice sometimes becomes trauma for the victims" | सीजेआई ने कहा, "क्रिमिनल जस्टिस का तरीका कभी-कभी पीड़ितों के लिए ही ट्रॉमा बन जाता है"

फाइल फोटो

Highlightsसीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की खामियों पर खुलकर बात की आपराधिक न्याय प्रणाली पीड़ितों को न्याय प्रदान करने की बजाय उनके ट्रॉमा को बढ़ा देती हैपोक्सो एक्ट की कार्यशाला में उन्होंने कहा कि बच्चों को गुड टच-बैड टच का फर्क समझाया जाना चाहिए

दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने क्रिमिनल जस्टिस की खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से कभी-कभी आपराधिक न्याय प्रणाली पीड़ितों को न्याय प्रदान करने की बजाय उनके ट्रॉमा को बढ़ा देती है और इसे रोकने के लिए कार्यपालिका को एक्टिव होते हुए न्यायपालिका के साथ हाथ मिलाना होगा।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने शनिवार को पोक्सो अधिनियम के तहत आने वाले परस्पर सहमति वाले 'रोमांटिक रिश्तों' के संबंध में बढ़ती चिंताओं का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के मामले जजों के सामने भी काफी कठिन प्रश्न खड़े करते हैं। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य और अन्य हितधारक बाल यौन शोषण के लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव को खत्म करने, बाल यौन शोषण की रोकथाम और इसकी समय पर पहचान के साथ-साथ कानूनी उपचार के बारे में समाज के बीच जागरूकता पैदा करें।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों को गुड टच-बैड टच के बीच के अंतर को पहचानने की क्षमता को विकसित किया जाना चाहिए। सीजेआई ने कहा, "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि हमारे देश में जिस तरह से आपराधिक न्याय प्रणाली काम करती है वह पीड़ितों को न्याय देने की बजाय कभी-कभी उनके लिए ट्रॉमा का सबब बन जाती है और इसे रोकने के लिए कार्यपालिका-न्यायपालिका को साथ आना चाहिए।

सीजेआई ने अपनी बात को बल देते हुए कहा कि सबसे पहले हमें तत्काल यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि परिवार के कथित सम्मान को बच्चों पर न थोपा जाए और राज्य को परिवारों द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार को रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, भले ही अपराधी परिवार का सदस्य ही क्यों न हो।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने विधायिका से पोक्सो अधिनियम के तहत सहमति की उम्र को लेकर भी बढ़ती चिंता के विषय में सोचने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, "आप जानते हैं कि पोक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों के बीच सभी प्रकार के यौन संबंध आपराधिक श्रेणी में आते हैं, भले ही नाबालिगों ने वह कार्य आपसी सहमति से किया हो क्योंकि कानूनी धारणा के मुताबिक 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच कोई आपसी सहमति नहीं हो सकती है।"

उन्होंने कहा कि जब ऐसे मामले जजों के सामने आते हैं तो उन्हें भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। खैर मुझे इस विषय को यहीं छोड़ देना चाहिए क्योंकि यह विषय बहुत ही पेचीदा है जैसा कि हम हर रोज अदालतों में देखते हैं। उन्होंने बताया कि हालात इतने खराब हैं कि पीड़ित परिवार पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से भी डरता है। इसलिए पुलिस को अत्यधिक शक्तियां सौंपने के बारे में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।

Web Title: Chief Justice DY Chandrachud said, "The method of criminal justice sometimes becomes trauma for the victims"

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