केन्द्र का न्यायालय में दावा: सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के लिये कंसल्टेंट के चयन में कोई मनमानी नहीं
By भाषा | Published: November 4, 2020 08:49 PM2020-11-04T20:49:32+5:302020-11-04T20:49:32+5:30
नयी दिल्ली, चार नवंबर केन्द्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के लिये कंसल्टेंट के चयन मे किसी प्रकार की मनमानी नहीं हुयी है और इसके लिये बेहतर प्रक्रिया अपनाये जाने की दलील परियोजना को निरस्त करने का आधार नहीं हो सकती।
राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के तीन किमी के दायरे में लुटियन की दिल्ली में सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत सेन्ट्रल विस्टा को पुनर्विकसित करने के लिये कंसल्टेंसी की बोली गुजरात की वास्तुशिल्प फर्म एचसीपी डिजाइंस ने जीती है।
पिछले साल सितंबर में पुनर्निर्माण की घोषणा में नये त्रिकोणीय संसद भवन की परिकल्पना की गयी है जिसमे 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी और अगस्त 2022 तक इसका निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा। कॉमन केन्द्रीय सचिवालय 2024 तक निर्मित होने की संभावना है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कंसल्टेंट के चयन में किसी प्रकार से ‘कर्तव्यों का त्याग‘ नही किया गया और इसमे प्रत्येक हितधारक ने हिस्सा लिया और इस प्रक्रिया में अपने सुझाव दिये।
मेहता ने कहा, ‘‘परियोजना को निरस्त करने के लिये यह दलील पर्याप्त नहीं है कि सरकार बेहतर प्रक्रिया अपना सकती थी।’’ उन्होंने इस परियोजना के लिये पर्यावरण मंजूरी सहित इससे संबंधित अनेक सवाल उठाने वाली याचिका का विरोध किया।
सालिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘कंसल्टेंट के चयन में किसी प्रकार की मनमानी या पक्षपात करने का कोई तत्व नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि सक्षम प्राधिकारी ने यह निर्णय लिया और अपने अधिकार के अनुचित इस्तेमाल का कोई आरोप नहीं है।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ऐसे किसी भी संवैधानिक या कानूनी प्रावधान का इस मामले में उल्लंघन नहीं बताया और उन्होंने सिर्फ वैकल्पिक तरीके पेश किये हैं जो इस परियोजना को निरस्त करने की वजह नहीं हो सकते।
मेहता ने कहा कि हाल के समय में प्रत्येक मामले में संवैधानिक नैतिकता और विदेशों से उचित प्रक्रिया के उपबंध समाहित करने की प्रवृत्ति है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान में उचित प्रक्रिया की परिकल्पना नहीं है और हमारा अपना संविधान है और हमें इससे भटकना नहीं चाहिए।’’
इस मामले में बहस अधूरी रही जो बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।
केन्द्र ने तीन नवंबर को कहा था कि लुटियन की दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किमी के दायरे में सेन्ट्रल विस्टा परियोजना राजधानी में केन्द्र सरकार के मंत्रालयों के परिसरों के लिये किराये के रूप में खर्च होने वाला धन बचायेगी।
केन्द्र ने यह भी कहा कि नये संसद भवन के निर्माण के बारे में न तो जल्दबाजी में फैसला लिया गया है और न ही परियोजना के लिये किसी भी तरह से किसी कानून या मानकों का उल्लंघन किया गया है।
इस परियोजना के लिये भूमि के उपयोग में बदलाव सहित अनेक विषयों पर प्राधिकारियों की मंजूरी के खिलाफ कार्यकर्ता राजीव सूरी सहित अनेक व्यक्तियों ने याचिकायें दायर कर रखी हैं।
इससे पहले, न्यायालय ने कहा था कि सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के लिये प्राधिकारियों द्वारा भू उपयोग में बदलाव के बारे में दी गयी मंजूरी उनके अपने जोखिम पर होगी।
इन याचिकाओं में केन्द्रीय विस्टा समिति द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र और पर्यावरण मंजूरी को भी चुनौती दी गयी है।