सीबीआई पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण, सचिन वाजे की बहाली की जांच कर सकती है : अदालत
By भाषा | Published: July 22, 2021 05:09 PM2021-07-22T17:09:46+5:302021-07-22T17:09:46+5:30
मुंबई, 22 जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सीबीआई महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और उनके सहयोगियों के साथ साठगांठ को लेकर पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण तथा बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की बल में बहाली की जांच कर सकती है।
न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जामदार की खंडपीठ ने कहा कि यह पुलिस आयुक्त का कर्तव्य है कि वह देश के कानून को लागू करें और वह "किसी व्यक्ति के नहीं, बल्कि कानून के सेवक हैं।"
पीठ ने यह भी कहा कि देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई को इस आश्वासन के साथ जांच की जिम्मेदारी लेने की अनुमति दी जानी चाहिए कि वह कानून के अनुसार कार्रवाई करेगी।
पीठ ने इसके साथ ही देशमुख के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज प्राथमिकी के दो पैराग्राफ रद्द करने के लिए महाराष्ट्र सरकार की याचिका खारिज कर दी।
एक पैराग्राफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता देशमुख के खिलाफ सचिन वाजे द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है। वहीं, दूसरा पैराग्राफ पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण और तैनाती में भ्रष्टाचार से संबंधित है।
अदालत ने कहा, ‘‘हमारे विचार में जांच एजेंसी (सीबीआई) पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण और तैनाती तथा 15 साल बाद पुलिस बल में सचिन वाजे की बहाली के मामले में वैध रूप से जांच कर सकती है...।’’
पीठ ने अपने आदेश में पुलिस आयुक्त के संदर्भ में भी टिप्पणी की और कहा, "पुलिस आयुक्त किसी व्यक्ति के नहीं, बल्कि कानून के सेवक होते है।" पीठ ने कहा, "हम मानते हैं कि देश के कानून को लागू करना पुलिस आयुक्त का कर्तव्य है और उन्हें अपने लोगों को इस प्रकार तैनात करने के लिए कदम उठाने चाहिए जिससे अपराध का पता लगाया जा सके और ईमानदार नागरिक अपना काम कर सकें।"
उल्लेखनीय है कि जब देशमुख राज्य के गृह मंत्री थे, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी परम बीर सिंह मुंबई के पुलिस आयुक्त थे। इस साल मार्च में, सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा कि इसके विपरीत उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ द्वारा इस साल पांच अप्रैल के अपने आदेश में देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश देने वाली टिप्पणियों को पुलिस कर्मियों के स्थानान्तरण और तैनाती की जांच करने के लिए एजेंसी को "अनियंत्रित अधिकार" दिए जाने के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
पीठ ने कहा कि इस आश्वासन के साथ कि वह (सीबीआई) कानून के अनुसार कार्य करेगी, प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई को जांच की जिम्मेदारी और अधिकारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी जा सकती है।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा ने उच्च न्यायालय से दो सप्ताह की अवधि के लिए अपने फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया। हालांकि, सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया और कहा कि इस पर रोक जांच में हस्तक्षेप के समान होगी।
अदालत ने अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सीबीआई ने इस साल 21 अप्रैल को देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के कथित आरोपों को लेकर प्राथमिकी दर्ज की थी। एजेंसी ने पांच अप्रैल को उच्च न्यायालय के एक आदेश पर राकांपा नेता के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने के बाद प्राथमिकी दर्ज की थी।
उसके बाद देशमुख ने राज्य के गृह मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। राकांपा नेता ने हालांकि कहा था कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है।
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