क्या पिछड़ी जाति के हिंदू धर्म बदलने के बाद ले सकते हैं आरक्षण का लाभ, जानें मद्रास हाई कोर्ट ने क्या कहा
By विनीत कुमार | Published: December 4, 2022 08:25 AM2022-12-04T08:25:49+5:302022-12-04T08:25:49+5:30
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई शख्स धर्म बदलने के बाद अपने जन्म की जाति को लेकर नहीं चल सकता है। आरक्षण के लाभ की मांग को लेकर डाली गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह बात कही।
चेन्नई: क्यो कोई हिंदू इस्लाम धर्म अपनाने के बाद बतौर पिछड़े समाज से आने के नाते आरक्षण के लाभ की मांग कर सकता है? मद्रास हाई कोर्ट ने इसका जवाब नहीं में दिया है। कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन के बाद कोई व्यक्ति अपने जन्म की जाति को लेकर नहीं चल सकता। हालांकि, हाई कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि मामले पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है।
जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने यू अकबर अली की एक याचिका पर फैसला सुनाया, जो एक हिंदू समुदाय में पैदा हुए थे। वह सबसे पिछड़े वर्ग (एमबीसी) श्रेणी से आते हैं। उन्होंने 2008 में इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम बदल लिया। उन्होंने तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी) की ग्रुप-2 सेवाओं के लिए आवेदन किया था, लेकिन चयन से चूक गए क्योंकि उन्हें आरक्षण श्रणी से इतर खुली श्रेणी के उम्मीदवार के तौर पर माना गया। इसी का विरोध करते हुए उन्होंने अदालत का रुख किया था।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार हालांकि, उनकी याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा, 'क्या ऐसे व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए, यह एक ऐसा प्रश्न है जो शीर्ष अदालत के सामने लंबित है। जब सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है, तो यह अदालत याचिकाकर्ता के दावे को बरकरार नहीं रख सकती है।
'तमिलनाडु में सभी मुस्लिम पिछड़े वर्ग से नहीं'
कोर्ट ने आगे कहा, 'TNPSC द्वारा लिया गया स्टैंड सही है और वह किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा।'
मामले में सुनवाई के दौरान जब 2015 में जारी एक कम्यूनिटी सर्टिफिकेट का हवाला दिया गया, जिसमें प्रमाणित किया गया था कि वह मुस्लिमों में लब्बाई समुदाय से हैं, तो जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि तमिलनाडु में सभी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग के मुस्लिम के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
साल 2008 के GO कैटलॉग में केवल आठ श्रेणियों जैसे- 'अंसार, डेक्कानी मुस्लिम, डुडेकुला, रोथर और माराकयार सहित लब्बाई (चाहे उनकी बोली जाने वाली भाषा तमिल या उर्दू हो), मैपिला, शेख, सैयद को पिछड़े वर्ग के मुस्लिम के रूप में माना गया है।
जस्टिस स्वामीनाथन ने 2012 में रामनाथपुरम जिले के लिए तमिलनाडु सरकार के काजी द्वारा जारी प्रमाण पत्र का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि सत्यमूर्ति पुत्र लक्ष्मणन ने अपनी इच्छा से इस्लाम धर्म को अपनाया था और वह एक सदस्य के रूप में मुस्लिम जमात में शामिल हो गया है और वह इस्लामी रिवाजों का पालन कर रहा है।
याचिकाकर्ता के सर्टिफिकेट पर सवाल
कोर्ट ने कहा, 'याचिकाकर्ता के धर्म परिवर्तन की घोषणा करने वाला यह प्रमाण पत्र केवल यह बताता है कि याचिकाकर्ता मुसलमान बन गया है और कुछ नहीं।'
जस्टिस ने कहा, 'जब काजी यह घोषित नहीं कर सकता है कि परिवर्तित व्यक्ति को लब्बाई के समूह से संबंधित माना जाए तो मैं यह समझने में विफल हूं कि एक धर्मनिरपेक्ष सरकार का राजस्व प्राधिकरण परिवर्तित व्यक्ति को किसी विशेष स्लॉट कैसे रख सकता है।'