तीन तलाक बिल में संशोधन को कैबिनेट से मिली मंजूरी, अब मैजिस्ट्रेट दे सकेंगे जमानत

By भाषा | Published: August 9, 2018 07:12 PM2018-08-09T19:12:12+5:302018-08-09T19:12:12+5:30

मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को लोकसभा ने मंजूरी दे दी थी, यह राज्यसभा में लंबित है जहां सरकार के पास संख्याबल कम है।

Cabinet approves amendment in Triple Talaq Bill now magistrate can give bail | तीन तलाक बिल में संशोधन को कैबिनेट से मिली मंजूरी, अब मैजिस्ट्रेट दे सकेंगे जमानत

तीन तलाक बिल में संशोधन को कैबिनेट से मिली मंजूरी, अब मैजिस्ट्रेट दे सकेंगे जमानत

नई दिल्ली, 9 अगस्त: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तलाक-ए-बिद्दत (एक बार में तीन तलाक) के दोषी व्यक्ति को जमानत देने के प्रावधान को विधेयक में जोड़ने की आज मंजूरी दे दी। सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी दी। एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी बना रहेगा और इसके लिए पति को तीन वर्ष की जेल की सजा हो सकती है।

मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को लोकसभा ने मंजूरी दे दी थी, यह राज्यसभा में लंबित है जहां सरकार के पास संख्याबल कम है। विपक्षी दलों की मांगों में से एक इस विधेयक में जमानत का प्रावधान जोड़ना भी शामिल था । सूत्रों के मुताबिक आज जिन प्रावधानों को मंजूरी दी गई है उनके अंतर्गत अब मजिस्ट्रेट जमानत दे सकेंगे।

प्रस्तावित कानून केवल तलाक ए बिद्दत पर ही लागू होगा। इसके तहत पीड़ित महिला अपने और अपने नाबालिग बच्चों के लिए गुजारे भत्ते की मांग को लेकर मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है। पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से बच्चों को अपने संरक्षण में रखने की मांग कर सकती है। इस मुद्दे पर अंतिम फैसला मजिस्ट्रेट लेगा। 

बता दें कि पिछले सत्र के दौरान राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पर खूब बहस हुई थी। संसद में पक्ष-विपक्ष दोनों ही अपनी मांगों पर अड़े हुए थे।  तीन तलाक विधेयक में एक बार में तीन बार तलाक बोलकर तलाक दिए जाने के आपाराधिक बनाए जाने पर कांग्रेस समेत की विपक्षी दलों का ऐतराज थे। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक में बोलकर या लिखकर या मैसेज या फोन पर एक बार में ही तीन तलाक देने को आपराधिक कृत्य मानते हुए उसके लिए तीन साल तक के जेल और जुर्माने या दोनों का प्रावधान था।

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल इत्यादि मोदी सरकार के इस विधेयक के खिलाफ थी। कांग्रेस का कहना था कि वह विधेयक की मूल भावना के समर्थन में है लेकिन पारिवारिक वाद को फौजदारी वाद बनाने के खिलाफ है। कांग्रेस की मांग थी कि विधेयक को संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास विचार के लिए भेजा जाए। 

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