लोकसभा चुनावः बिन पानी सब सून! सूखे से परेशान बुंदेलखंड में 6 मई को चुनाव, किसानों की ‘पानी के बदले वोट’ मुहिम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 5, 2019 01:40 PM2019-05-05T13:40:09+5:302019-05-05T13:40:09+5:30

बुंदेलखंड में 2002 से लगातार पड़ रहे सूखे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की समस्या गहरा गयी है। जलसंकट से जुड़ी इन समस्याओं का एक मात्र समाधान ‘वाटर मेनीफेस्टो’ है। वोट मांगने आ रहे उम्मीदवारों को स्थानीय मतदाता, यही वाटर मेनीफेस्टो थमा कर तालाब के बदले वोट की पेशकश करते हैं। 

Bundelkhand region of Madhya Pradesh, voters in the Khajuraho Lok Sabha seat complain of issues ranging from water scarcity, slow pace of development to the absence of political will to change the fortune of the city and its people. | लोकसभा चुनावः बिन पानी सब सून! सूखे से परेशान बुंदेलखंड में 6 मई को चुनाव, किसानों की ‘पानी के बदले वोट’ मुहिम

25 परिवार काम की तलाश में दिल्ली, कानपुर जैसे शहरों की ओर पलायन कर गए हैं।

Highlights10 हजार तालाबों से तीन फसलों को पानी मिलता था। लेकिन अब करीब दो हजार तालाबों से केवल एक फसल का ही पानी मिल पाता है।उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में ‘अपना तालाब अभियान’ को उम्मीदवारों पर चुनाव में कारगर दबाव बनाने का माध्यम बनाया गया है।

लगभग दो दशक से सूखे से बेहाल बुंदेलखंड के किसानों ने लोकसभा चुनाव में सियासी दलों पर पानी के पुख्ता इंतजामों के लिये माकूल दबाव बनाते हुये ‘पानी के बदले वोट’ मुहिम शुरू की है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाकों में सामाजिक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों ने स्थानीय नागरिकों की मदद से ‘पानी के लिये चुनाव घोषणापत्र’ (वाटर मेनीफेस्टो) जारी किए हैं।

सूखे से सर्वाधिक प्रभावित उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा और हमीरपुर व मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना और खजुराहो जिलों में स्थानीय सामाजिक संगठन, चुनाव के मद्देनजर अपने अपने तरीके से इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश किसान समृद्धि आयोग के सदस्य और बांदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह बुंदेलखंड में तालाबों की पुरानी परंपरा के पुनर्जीवन को ही जलसंकट का एकमात्र स्थायी समाधान मानते हैं। किसानों को पारंपरिक कृषि की उन्नत पद्धति का प्रशिक्षण दे रहे प्रेम सिंह ने कहा ‘‘हर गांव में समृद्ध तालाब बनाने में स्थानीय जनता के साथ सरकार की भागीदारी भी जरूरी है। इसके लिये किसानों ने उसी उम्मीदवार को वोट देने का फैसला किया है जो अपने इलाके में जलाशयों का निर्माण कराने की पुख्ता योजना लागू करेगा।’’

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 14 जिले मिला कर बुंदेलखंड बनता है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 14 जिले मिला कर बुंदेलखंड बनता है। 14 में से औसतन आठ जिले हर साल जिला प्रशासन द्वारा सूखाग्रस्त घोषित किए जाते हैं। इनमें से टीकमगढ़, बांदा, महोबा, जालौन, निवाड़ी जिले लगभग हर साल सूखाग्रस्त घोषित किए जाते हैं।

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में स्थानीय लोग उम्मीदवारों के वोट मांगने आने पर नारा लगाते हैं ‘‘गांव-गांव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा।’’ मध्य प्रदेश में खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से सपा के उम्मीदवार वीर सिंह पटेल ने इस अभियान से खुद को जोड़ते हुये हर गांव कस्बे को जलाशय युक्त बनाने का वादा किया है।

इस अभियान से गहरे तक प्रभावित पटेल कहते हैं कि चुनाव परिणाम जो भी हो, वह सरकारी रिकार्ड में दर्ज इस लोकसभा क्षेत्र के प्रत्येक तालाब को उसका मूल स्वरूप मुहैया कराने में सक्रिय भूमिका निभायेंगे। इसके तहत उन्होंने इलाके में नष्ट हो चुके तालाबों का पुनरुद्धार करने की समयबद्ध योजना पेश करने की भी बात कही है।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में ‘अपना तालाब अभियान’ को उम्मीदवारों पर चुनाव में कारगर दबाव बनाने का माध्यम बनाया गया है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता डा. अनूप सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी इस इलाके में जलाशयों के पुनरुद्धार अभियान में पहले से भागीदार है और भविष्य में भी इसका हिस्सा बनेगी।

80 प्रतिशत तालाब पिछले दो दशक में उपेक्षा का शिकार

बुंदेलखंड की हमीरपुर, झांसी और जालौन सीट पर 29 अप्रैल को मतदान हो चुका है, जबकि टीकमगढ़, खजुराहो और बांदा सीट पर छह मई को मतदान होगा। चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के पुनरुद्धार के लिये अभियान चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण विशेषज्ञ गुंजन मिश्रा ने बताया कि बुंदेलखंड में लगभग 10 हजार छोटे बड़े तालाब थे। इनमें से 80 प्रतिशत तालाब पिछले दो दशक में उपेक्षा का शिकार होकर अपना वजूद या उपयोगिता खो चुके हैं।

10 हजार तालाबों से तीन फसलों को पानी मिलता था। लेकिन अब करीब दो हजार तालाबों से केवल एक फसल का ही पानी मिल पाता है। यही वजह है कि हर साल बड़ी संख्या में किसान पलायन करते हैं। पलायन का कोई आंकड़ा प्रशासन के पास नहीं है। सूखे से पलायन की गहराती समस्या का अंदाजा बांदा जिले के पिपरहरी गांव से लगाया जा सकता है।

पलायन की समस्या को उजागर कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया यादव ने बताया ‘‘पिपरहरी गांव के चौहान पुरवा टोले की आबादी करीब 450 है। इसमें दलित समुदाय के 45 परिवार रहते हैं। इस टोले के 25 परिवार काम की तलाश में दिल्ली, कानपुर जैसे शहरों की ओर पलायन कर गए हैं।

गांव के तमाम ऐसे खेतिहर मजदूर परिवार, जिन्हें बड़े शहरों में ठीक-ठाक काम मिल गया है वे स्थायी रूप से पलायन कर गए और जिनके पास थोड़ी-बहुत जमीन है वे सूखे के दो-तीन महीने के दौर में काम के लिए पलायन कर जाते हैं। बारिश के बाद ये लोग खेती के लिए वापस आ जाते हैं। इसे मौसमी पलायन कहा जाता है। ’’

उत्तर प्रदेश किसान समृद्धि आयोग के सदस्य और बांदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने बताया ‘‘करीब 80 फीसदी किसान कर्ज तले दबे हैं। ये वो किसान हैं जिन्होंने कृषि कार्य के लिए बैंकों से किसान क्रेडिट कार्ड के जरिये कर्ज लिया है।’’ मिश्रा के मुताबिक, बुंदेलखंड की विशिष्ट भौगोलिक स्थितियों के मद्देनजर, यहां के तालाब न सिर्फ जलापूर्ति के प्रमुख स्रोत थे बल्कि वर्षा जल संचयन के मुख्य माध्यम बन कर भूजल स्तर को भी बेहतर बनाते थे।

उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड में 2002 से लगातार पड़ रहे सूखे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की समस्या गहरा गयी है। जलसंकट से जुड़ी इन समस्याओं का एक मात्र समाधान ‘वाटर मेनीफेस्टो’ है। वोट मांगने आ रहे उम्मीदवारों को स्थानीय मतदाता, यही वाटर मेनीफेस्टो थमा कर तालाब के बदले वोट की पेशकश करते हैं। 

Web Title: Bundelkhand region of Madhya Pradesh, voters in the Khajuraho Lok Sabha seat complain of issues ranging from water scarcity, slow pace of development to the absence of political will to change the fortune of the city and its people.



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