प्रमोद भार्गव का ब्लॉग, ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध के जरिए भारत को घेरने की तैयारी में चीन
By प्रमोद भार्गव | Published: March 24, 2021 01:03 PM2021-03-24T13:03:34+5:302021-03-24T13:06:05+5:30
तिब्बत क्षेत्न में ब्रह्मपुत्र पर जिस जल-विद्युत परियोजना को मंजूरी मिली है, वह अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे तिब्बत के मेंदोग काउंटी के एकदम निकट है.
भारतीय आक्रामकता के चलते सीमा पर अपने नापाक मंसूबों पर पानी फिरने के बाद भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है.
भारत की आपत्ति के बावजूद उसने ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की 14वीं पंचवर्षीय परियोजना को संसद में मंजूरी दे दी है. इसमें तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विवादास्पद बांध निर्माण के प्रस्ताव समेत अरबों डॉलर की कई बड़ी योजनाओं का खाका तैयार किया गया है.
तिब्बत क्षेत्न में ब्रह्मपुत्र पर जिस जल-विद्युत परियोजना को मंजूरी मिली है, वह अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे तिब्बत के मेंदोग काउंटी के एकदम निकट है. इस योजना को वर्ष 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इस अवसर पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली कछयांग भी मौजूद थे.
दरअसल तिब्बत स्वायत्त क्षेत्न के अध्यक्ष शी डल्हा ने चीन सरकार से यह परियोजना जल्द शुरू करने की मांग की थी. इस परियोजना से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. भारत को शंका है कि बांध के निर्माण से नदी के जल प्रवाह में बाधा आ सकती है. इससे खासतौर से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे और बाढ़ की स्थिति निर्मित हो सकती है. यही स्थिति बांग्लादेश में भी बन सकती है.
इसीलिए दोनों देशों ने इस परियोजना पर घोर आपत्ति जताई. चालाक चीन इस हालात को कृत्रिम रूप से भी निर्मित कर सकता है. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बन जाता है तो चीन इस पानी का इस्तेमाल भारत को परेशान करने की दृष्टि से भी कर सकता है. यदि बारिश में बांध में भरे पानी को वह ज्यादा मात्ना में छोड़ता है तो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है और यदि चीन सिंचाई के समय पानी रोक देता है तो इन राज्यों को सूखे के हालात का सामना करना होगा. मतलब भारत को दुविधा की स्थिति से दो-चार होते रहना रहेगा.
एशिया की सबसे लंबी इस नदी की लंबाई लगभग 2900 किमी है. तिब्बत से निकलने वाली इस नदी को यहां यारलुंग झांगबो के नाम से जाना जाता है. इसी की सहायक नदी जियाबुकू है, जिस पर चीन हाइड्रो प्रोजेक्ट बना रहा है. दुनिया की सबसे लंबी नदियों में 29वां स्थान रखने वाली ब्रह्मपुत्र 1625 किमी क्षेत्न में तिब्बत में ही बहती है. इसके बाद 918 किमी भारत और 363 किमी की लंबाई में बांग्लादेश में बहती है. तिब्बत के मेंदोग काउंटी में यह परियोजना निर्माणाधीन है. यह स्थल अरुणाचल और सिक्किम के एकदम निकट है. सिक्किम के जाइगस के आगे से ही यह नदी अरुणाचल में प्रवेश करती है.
असम में ब्रह्मपुत्र का पाट 10 किमी चौड़ा है. जब यह बांध पूरा बन जाएगा, तब इसकी जल ग्रहण क्षमता 29 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी रोकने की होगी. ऐसे में चीन यदि बांध के द्वार बंद रखता है तो भारत के साथ बांग्लादेश को जल की कमी का संकट झेलना होगा और बरसात में एक साथ द्वार खोल देता है तो इन दोनों देशों की एक बड़ी आबादी को बाढ़ का सामना करना होगा.
ये हालात इसलिए उत्पन्न होंगे, क्योंकि जिस ऊंचाई पर बांध बन रहा है, वह चीन के कब्जे वाले तिब्बत में है, जबकि भारत और बांग्लादेश बांध के निचले स्तर पर हैं. ब्रह्मपुत्र पर बनने वाली यह तिब्बत की सबसे बड़ी परियोजना है. भारत ने इस पर पहले भी चिंता जताई थी, लेकिन चीन ने गौर नहीं किया.
चीन ब्रह्मपुत्र के पानी का मनचाहे उद्देश्यों के लिए उपयोग करता है तो तय है कि अरुणाचल में जो 17 पनबिजली परियोजनाएं प्रस्तावित व निर्माणाधीन हैं, वे सब अटक जाएंगी. ये परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं और ब्रह्मपुत्र से इन्हें पानी मिलता रहता है तो इनसे 37827 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा.
इस बिजली से पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में बिजली की आपूर्ति तो होगी ही, पश्चिम बंगाल और ओडिशा को भी अरुणाचल बिजली बेचने लग जाएगा. चीन अरु णाचल पर जो टेढ़ी निगाह बनाए रखता है, उसका एक बड़ा कारण यह है कि अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र की जलधारा ऐसे पहाड़ व पठारों से गुजरती है, जहां भारत को मध्यम व लघु बांध बनाना आसान है.
ये सभी बांध भविष्य में अस्तित्व में आ जाते हैं और पानी का प्रवाह बना रहता है तो पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की बिजली, सिंचाई और पेयजल जैसी बुनियादी समस्याओं का समाधान हो जाएगा.2013 में एक अंतरमंत्नालय विशेष समूह गठित किया गया था. इसमें भारत के साथ चीन का यह समझौता हुआ था कि चीन पारदर्शिता अपनाते हुए पानी के प्रवाह से संबंधित आंकड़ों को साझा करेगा.
लेकिन चीन ने इस समझौते का पालन नहीं किया. नदियों का पानी साझा करने के लिए अब भारत को चाहिए कि वह चीन को वार्ता के लिए तैयार करे. इस वार्ता में बांग्लादेश को भी शामिल किया जाए, क्योंकि ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले बांधों से भारत के साथ-साथ बांग्लादेश भी बुरी तरह प्रभावित होगा.
संयुक्त राष्ट्र संधि की शर्तों को चीन स्वीकार करे, इस हेतु भारत और बांग्लादेश को इस मसले को संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर उठाने की जरूरत है. इस मंच से यदि चीन की निंदा होगी तो उसके लिए संधि की शर्तो को दरकिनार करना आसान नहीं होगा.