चाय बनाकर नहीं देने पर पति ने पत्नी की कर दी थी हत्या, सजा में राहत की कर रहा था मांग, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कही ये बात
By विनीत कुमार | Published: February 25, 2021 11:38 AM2021-02-25T11:38:16+5:302021-02-25T12:02:11+5:30
एक शख्स ने अपनी पत्नी पर हथौड़े से हमला केवल इसलिए कर दिया था क्योंकि उसे चाय बनाकर पत्नी ने देने से इनकार किया था। इस मामले में पति अब सजा में रियायत की मांग कर रहा था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक शख्स की सजा में रियायत देने की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि पत्नी कोई वस्तु नहीं है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पत्नी से ये हमेशा उम्मीद करना गलत है कि घर के सभी कामकाज वो ही करे।
कोर्ट ने ये टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए की जिसने 2013 में अपनी पत्नी पर हथौड़े से हमला किया था। इस हमले में पत्नी की मौत हो गई थी। महिला के पति संतोष अटकर को 2016 में दस साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि, सजा काट रहे पति ने राहत की मांग की थी और दलील दी थी कि उसकी पत्नी ने उसके लिए चाय बनाने से इनकार कर दिया था। इसी कारण से उसने आवेग में आकर पत्नी पर हमला कर दिया था। इस पूरी घटना को इस जोड़े की छह साल की बेटी ने अपनी आंखों से देखा था और गवाही भी दी थी।
दोषी पति पर आरोप है कि उसने हथौड़ा मारने के बाद खून से लथपथ अपनी पत्नी को अस्पताल पहुंचाने के बजाय नहलाया और खून साफ किया। मारपीट के एक घंटे बाद वह उसे अस्पताल ले गया।
'पत्नी से घर के सभी काम करने की उम्मीद ठीक नहीं'
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा, 'एक पत्नी कोई वस्तु नहीं है। विवाह आदर्श रूप से समानता पर आधारित एक साझेदारी है। यही नहीं, ये इससे भी काफी अलग है। इस तरह के मामले, असामान्य नहीं हैं। इस तरह के मामले जेंडेर असंतुलन को दिखाते हैं। पितृसत्ता, सामाजिक-सांस्कृतिक द्वंद्व को दर्शाते हैं जिसमें कोई पला-बढ़ा है और जो अक्सर वैवाहिक रिश्ते में भी आ जाता है।'
कोर्ट ने आगे कहा कि एक पत्नी से घर के सभी काम करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जस्टिस मोहिते-डेरे ने कहा, 'लैंगिक भूमिकाओं में भी असंतुलन है। एक गृहिणी के रूप में पत्नी से सभी घर के काम करने की उम्मीद की जाती है। विवाह में भावनात्मक श्रम को भी पत्नी द्वारा किए जाने की उम्मीद की जाती है।'
कोर्ट के अनुसार, 'महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी उन्हें खुद को अपने जीवनसाथी को सौंप देने पर मजबूर करती है। इस प्रकार, पुरुष भी ऐसे मामलों में, खुद को प्राथमिक भागीदार और अपनी पत्नियों को गुलाम मानते हैं।'