Bombay High Court: 4 साल की छोटी बच्ची को मां से दूर रखना मानसिक उत्पीड़न के बराबर?, कोर्ट ने कहा- क्रूरता के समान, स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 12, 2024 04:17 PM2024-12-12T16:17:49+5:302024-12-12T16:19:03+5:30

Bombay High Court: पीठ ने कहा, ‘‘मानसिक उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन आज तक जारी है। यह एक गलत काम है।’’

Bombay High Court keeping 4 year old girl away from her mother tantamount mental torture court said tantamount cruelty serious harm to health | Bombay High Court: 4 साल की छोटी बच्ची को मां से दूर रखना मानसिक उत्पीड़न के बराबर?, कोर्ट ने कहा- क्रूरता के समान, स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान

सांकेतिक फोटो

Highlightsभारतीय दंड संहिता की धारा 498-अ के तहत परिभाषित ‘क्रूरता’ के समान है।अदालत के हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। जालना में उनके खिलाफ दर्ज 2022 की प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी।

Bombay High Court: बम्बई उच्च न्यायालय ने माना है कि किसी बच्चे को उसकी मां से न मिलने देना भारतीय दंड संहिता के तहत ‘क्रूरता’ के बराबर है और जालना की रहने वाली एक महिला के ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया। औरंगाबाद में न्यायाधीश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति रोहित जोशी की पीठ ने 11 दिसंबर के फैसले में कहा कि निचली अदालत के आदेश के बावजूद महिला की चार साल की बेटी को उससे दूर रखा जा रहा है। अदालत ने कहा, ‘‘चार साल की छोटी बच्ची को उसकी मां से दूर रखना भी मानसिक उत्पीड़न के बराबर है, जो क्रूरता के समान है क्योंकि इससे निश्चित रूप से मां के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि ससुराल वालों का ऐसा व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 498-अ के तहत परिभाषित ‘क्रूरता’ के समान है। पीठ ने कहा, ‘‘मानसिक उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन आज तक जारी है। यह एक गलत काम है।’’

इसमें कहा गया है कि यह प्राथमिकी रद्द नहीं की जाएगी क्योंकि यह अदालत के हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। महिला के ससुर, सास और ननद ने कथित क्रूरता, उत्पीड़न और आपराधिक धमकी के लिए महाराष्ट्र के जालना जिले में उनके खिलाफ दर्ज 2022 की प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसकी शादी 2019 में हुई और 2020 में उसकी एक बेटी हुई।

पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके माता-पिता से पैसे मांगना शुरू कर दिया और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और उसके साथ गाली गलौच की । मई 2022 में, महिला को कथित तौर पर उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया और उसे अपनी बेटी को अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद उसने अपनी बेटी की ‘कस्टडी’ के लिए मजिस्ट्रेट अदालत में आवेदन दायर किया।

महिला ने उच्च न्यायालय को बताया कि मजिस्ट्रेट अदालत ने 2023 में पति को बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश दिया, लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया और बच्चा पति के पास ही रहा । पीठ ने कहा कि हालांकि बच्चा पति के पास था, लेकिन आवेदक (ससुराल वाले) उसके ठिकाने की जानकारी छिपा कर उसकी मदद कर रहे थे।

अदालत ने टिप्पणी की कि जो लोग न्यायिक आदेशों का सम्मान नहीं करते, वे राहत के हकदार नहीं हैं। तीनों ने अपनी याचिका में क्रूरता और उत्पीड़न के आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया है।

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