क्या जैन समुदाय के लोगों को मंदिरों से विशेष भोजन घर ले जाने की अनुमति दे सकते हैं? बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 15, 2021 09:54 PM2021-04-15T21:54:34+5:302021-04-15T21:55:27+5:30
बॉम्बे हाईकोर्ट पीठ ने कहा, ''यह एक तर्कसंगत अनुरोध जान पड़ता है. वे (याचिकाकर्ता) धार्मिक स्थलों को नहीं खोलने जा रहे हैं, बल्कि सिर्फ भोजन के पार्सल देने जा रहे हैं.'' बहरहाल, पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध कर दी.
मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि क्या जैन समुदाय के लोगों को नौ दिनों के वार्षिक 'अयम्बिल ओली तप' के लिए उपवास के दौरान अपने मंदिरों से विशेष भोजन घर ले जाने की अनुमति दी जा सकती है.
अदालत ने इस बात का उल्लेख किया कि यह एक 'तर्कसंगत अनुरोध' है. पीठ ने कहा, ''यह एक तर्कसंगत अनुरोध जान पड़ता है. वे (याचिकाकर्ता) धार्मिक स्थलों को नहीं खोलने जा रहे हैं, बल्कि सिर्फ भोजन के पार्सल देने जा रहे हैं.'' बहरहाल, पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध कर दी.
न्यायमूर्ति एस.सी. गुप्त और न्यायामूर्ति अभय आहूजा की पीठ दो जैन न्यासों की याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका के जरिए समुदाय के सदस्यों को न्यास के परिसरों से उपवास के दौरान उबला हुआ विशेष भोजन घर ले जाने देने की अनुमति मांगी गई है. न्यासियों के अधिवक्ता प्रफुल्ल शाह ने कहा कि वे मंदिरों या डायनिंग हॉल को लोगों को आकर भोजन करने देने के लिए खोले जाने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि भोजन घर ले जाने देने की अनुमति मांग रहे हैं.
अधिवक्ता ने कहा, ''संक्रमण की कड़ी को तोडि़ए शीर्षक वाले 13 अप्रैल के सरकारी आदेश में रेस्तरां और बार को घर पर खाने-पीने की चीजें पहुंचाने और वहां से भोजन पैक करा कर घर ले जाने की अनुमति दी गई है. हम भी इसी तरह की ही अनुमति मांग रहे हैं, लेकिन यह अनुमति सिर्फ नौ दिनों के लिए, 19 अप्रैल से 27 अप्रैल तक के लिए दी गई है. मंदिरों में कोई भीड़ नहीं लगेगी.''
अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने कहा कि लोगों को भोजन के अपने पार्सल लेने के लिए इन मंदिरों में नहीं उमड़ना चाहिए. अयम्बिल तप अयम्बिल ओली तप का श्वेतांबर जैन समुदाय में बेहद महत्व है. 9 दिनों तक चलने वाले तप के दौरान साधक स्वाध्याय और आत्मसाधना के माध्यम से ध्यान में लीन रहता है.
इस दौरान साधाक अपनी साधना में सहायक हो ऐसा सात्विक आहार ही ग्रहण करते हैं, जो उबला हुआ एकदम सादा भोजन होता है. साधक अपना अधिक से अधिक समय आत्मसाधना में ही व्यतीत करते हैं. कोर्ट ने दिया स्वयंसेवकों का सुझाव अदालत ने भोजन पार्सल पहुंचाने के लिए स्वयंसेवकों के उपयोग का सुझाव दिया.
अदालत ने कहा, ''स्वयंसेवक पार्सल पहुंचा सकते हैं. जैन समुदाय में कई अच्छे लोग हैं. हम सिर्फ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या समाधान हो सकता है.'' अदालत ने सरकार से इस विषय पर विचार करने को कहा.