बोफोर्स मामले में CBI ने आगे जांच की अनुमति के लिए दायर अर्जी वापस ली

By भाषा | Published: May 17, 2019 05:29 AM2019-05-17T05:29:20+5:302019-05-17T05:29:20+5:30

सीबीआई ने कहा था कि मामले में उसे नयी सामग्री और सबूत मिले हैं। जांच एजेंसी ने बृहस्पतिवार को अदालत से कहा कि वह आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी परंतु इस समय वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है।

Bofors case: CBI withdrew the application for further investigation | बोफोर्स मामले में CBI ने आगे जांच की अनुमति के लिए दायर अर्जी वापस ली

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Highlightsसीबीआई के बदले हुये रुख पर गौर करते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसका कारण तो सीबीआई ही बेहतर जानती है, अगर मामले में वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है, तो ऐसा करने का उन्हें अधिकार है क्योंकि वे आवेदक हैं।’’ इस मामले में आगे की जांच की मांग को लेकर निचली अदालत के समक्ष अलग से अर्जी दायर करने वाले वकील अजय अग्रवाल के यू-टर्न पर भी अदालत ने संज्ञान लिया। वर्ष 2014 में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ चुके अग्रवाल ने दलील दी कि उन पर शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए और उन्हें बहस की अनुमति दी जानी चाहिए।

सीबीआई ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले में आगे जांच की अनुमति के लिये दायर अर्जी बृहस्पतिवार को दिल्ली की अदालत से वापस ले ली। सीबीआई ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट नवीन कुमार कश्यप को बताया कि जांच एजेंसी एक फरवरी 2018 को दायर अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है। अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया। सीबीआई ने मामले में आगे की जांच की अनुमति के लिये निचली अदालत के समक्ष अर्जी दायर की थी।

सीबीआई ने कहा था कि मामले में उसे नयी सामग्री और सबूत मिले हैं। जांच एजेंसी ने बृहस्पतिवार को अदालत से कहा कि वह आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी परंतु इस समय वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है। सीबीआई के बदले हुये रुख पर गौर करते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसका कारण तो सीबीआई ही बेहतर जानती है, अगर मामले में वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है, तो ऐसा करने का उन्हें अधिकार है क्योंकि वे आवेदक हैं।’’

इस मामले में आगे की जांच की मांग को लेकर निचली अदालत के समक्ष अलग से अर्जी दायर करने वाले वकील अजय अग्रवाल के यू-टर्न पर भी अदालत ने संज्ञान लिया। अग्रवाल अब अपनी अर्जी वापस लेना चाहते है। न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘हमें आप पर शुल्क क्यों नहीं लगाना चाहिए? आपने अपने आवेदन के साथ अदालत का समय बर्बाद किया है। मैं शुल्क (100 रुपये) लगा रहा हूं ताकि आप जैसे व्यक्ति नहीं आएं और समय बर्बाद न हो। सीबीआई जांच एजेंसी है और उसका अधिकार है। आप किस अधिकार से आये हैं।’’

वर्ष 2014 में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ चुके अग्रवाल ने दलील दी कि उन पर शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए और उन्हें बहस की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई की तिथि छह जुलाई तय की। अग्रवाल ने सीबीआई द्वारा 90 दिन की अनिवार्य अवधि में अपील दायर नहीं करने पर 2005 में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। अदालत ने चार दिसंबर 2018 को पूछा था कि आखिर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले में आगे की जांच के लिये उसकी अनुमति की जरूरत क्यों है।

सीबीआई ने मामले में सभी आरोपियों को आरोपमुक्त करने के 31 मई 2005 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दो फरवरी, 2018 को उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी। शीर्ष अदालत ने दो नवंबर 2018 को मामले में सीबीआई की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में 13 साल की देरी पर माफी मांगी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि अपील दायर करने में 4,500 दिनों से अधिक की देरी को लेकर माफी के संबंध में सीबीआई के जवाब से वह संतुष्ट नहीं है। हालांकि शीर्ष अदालत में अब भी एक अपील पर सुनवाई चल रही है, जिसमें जांच एजेंसी एक प्रतिवादी है। शीर्ष अदालत ने दो नवंबर, 2018 को कहा था कि मामले में जांच एजेंसी प्रतिवादी के तौर पर सहायता कर सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि सीबीआई मामले में वकील अजय अग्रवाल की ओर से दायर याचिका पर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सभी बुनियादी बातों को उठा सकती है। अग्रवाल ने इस फैसले को चुनौती भी दी थी।

उत्तर प्रदेश के रायबरेली से लोकसभा का टिकट नहीं दिये जाने के कारण अग्रवाल इस समय भाजपा के बागी नेता बने हुए हैं। स्वीडिश रेडियो ने 16 अप्रैल, 1987 को दावा किया था कि कंपनी ने शीर्ष भारतीय नेताओं और रक्षा कर्मियों को रिश्वत दी थी। सीबीआई ने 22 जनवरी, 1990 को एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन अर्ब्दो, कथित बिचौलिये विन चड्डा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी और जालजासी के कथित अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी।

इस मामले में चड्डा, ओतावियो क्वात्रोची और तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, अर्ब्दो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ पहला आरोप पत्र 1999 में दायर किया गया था। नौ अक्टूबर 2000 को हिंदुजा बंधुओं - एस पी हिंदुजा, जी पी हिंदुजा और पी पी हिंदुजा के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था। क्वात्रोची 29-30 जुलाई, 1993 को भारत से भाग गया था और मामले का सामना करने के लिए वह कभी भी भारत की किसी अदालत में पेश नहीं हुआ। उसकी 13 जुलाई, 2013 को मौत हो गई थी। अन्य जिन आरोपियों की मौत हो चुकी है उनमें भटनागर, अर्ब्दो और चड्डा शामिल हैं। 

Web Title: Bofors case: CBI withdrew the application for further investigation

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