30 मई तक सभी दलों को चुनावी बॉड का ब्यौरा देना था, भाजपा, कांग्रेस और द्रमुक ने "कम से कम" अभी तक ब्यौरा नहीं दिया
By भाषा | Published: June 4, 2019 05:07 PM2019-06-04T17:07:54+5:302019-06-04T17:07:54+5:30
आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और द्रमुक ने "कम से कम" अभी तक ब्यौरा नहीं दिया है। उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे सरकार की राजनीतिक दान योजना में मिले चंदे के दाताओं की सूची सीलबंद लिफाफे में आयोग को 30 मई तक सौंप दें।
भाजपा, कांग्रेस और द्रमुक सहित अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनाव के दौरान निर्धारित समयसीमा के भीतर जुटायी गयी दान राशि का अब तक चुनाव आयोग को ब्यौरा नहीं दिया है।
आयोग के सूत्रों ने मंगलवार को किसी प्रमुख दल की ओर से इस बारे में ब्यौरा नहीं मिलने की पुष्टि की है। उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार 30 मई तक सभी राजनीतिक दलों को चुनावी बॉड से जुटाये गये चंदे का ब्यौरा चुनाव आयोग को देना था।
आयोग ने मई में यह समय सीमा खत्म होने से पहले सभी राजनीतिक दलों को चुनावी बॉंड से जुटाये गये चंदे का ब्यौरा देने की लिखित तौर पर ताकीद की थी। आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और द्रमुक ने "कम से कम" अभी तक ब्यौरा नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे सरकार की राजनीतिक दान योजना में मिले चंदे के दाताओं की सूची सीलबंद लिफाफे में आयोग को 30 मई तक सौंप दें। इस योजना में दानदाताओं की पहचान सार्वजनिक करने के बारे में आयोग और सरकार के बीच विरोधाभास बरकरार है।
एक तरफ सरकार दानदाताओं की पहचान गुप्त रखने की पक्षधर है, वहीं आयोग ने चुनावी चंदे में पारदर्शिता का हवाला देते हुये दानदाताओं की पहचान सार्वजनिक करने की पैराकारी की है। इस बारे में अदालत के समक्ष आयोग ने कहा था कि उसका नजरिया सिर्फ राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता तक सीमित है, इसका योजना की खूबियों और खामियों से कोई संबंध नहीं है।
इस योजना के तहत कोई भी भारतीय नागरिक या भारत में स्थापित एवं संचालित निकाय किसी राजनीतिक दल को बैंक से चुनावी बॉंड खरीद कर चंदा दे सकता है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत ऐसा कोई भी राजनीतिक दल चुनावी बॉंड से चंदा ले सकता है जिसे लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला हो।
योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की देश की 29 शाखाओं को पिछले साल एक से दस नवंबर के बीच चुनावी बॉंड जारी करने के लिये अधिकृत किया गया था।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने राष्ट्रीय चुनाव निधि बनाने, कॉर्पोरेट चदे पर पाबंदी की मांग की
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने मंगलवार को चुनावों के लिए सरकारी कोष से खर्च करने के लिए राष्ट्रीय चुनाव निधि बनाने की वकालत की जिसमें चंदे के माध्यम से धन आए। उन्होंने चुनाव सुधारों के तहत राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट चंदे पर पाबंदी का समर्थन किया।
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 2004 में आम चुनाव कराने वाले कृष्णमूर्ति ने एक संगठन की इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी कि हाल के लोकसभा चुनाव में करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये। हालांकि उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने से खर्च बढ़ सकता है।
कृष्णमूर्ति ने कहा कि कॉर्पोरेट चंदे के माध्यम से धन जुटाने का अपारदर्शी तरीका चिंता पैदा करने वाला है। उन्होंने कहा कि लोग एक राष्ट्रीय चुनाव निधि में चंदा दे सकते हैं और अपने दान पर शत प्रतिशत कर छूट हासिल कर सकते हैं।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने सुझाव दिया, ‘‘चुनाव आयोग इस धन का इस्तेमाल सभी राजनीतिक दलों के परामर्श से बनाये गये दिशानिर्देशों के आधार पर करेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सरकारी खर्च से चुनाव...। यही एकमात्र तरीका है। राजनीतिक दलों को चंदा देने में कॉर्पोरेट शामिल नहीं होने चाहिए।’’