NRC मामले पर छिड़ा है संग्राम, त्रिपुरा के BJP सीएम बिप्लब देब के परिजन भी थे शरणार्थी
By रामदीप मिश्रा | Published: August 3, 2018 07:29 PM2018-08-03T19:29:03+5:302018-08-03T19:29:03+5:30
देश की शीर्ष अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं हैं उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए क्योंकि अभी यह सिर्फ मसौदा ही है।
नई दिल्ली, 03 अगस्तः नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजनशिप (एनआरसी) ड्राफ्ट के मुद्दे पर सियासी घमासान मचा हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित समूचा विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर है, जिसकी गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनाई दे रही है। एनआरसी के दूसरे ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों जगह नहीं मिली। इनमें पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार से लेकर कई ऐसे परिवार हैं जिनके इस ड्राफ्ट में नाम शामिल नहीं है।
हालांकि, इस मामले पर देश की शीर्ष अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं हैं उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए क्योंकि अभी यह सिर्फ मसौदा ही है। वहीं, इस मामले पर सरकार भी लोगों को भरोसा दिला चुकी है कि कोई गलत कदम नहीं उठाया जाएगा।
लेकिन, ध्यान देने वाली बात यह है कि त्रिपुरा राज्य के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब एनआरसी को लेकर कह चुके हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। उन्होंने यह बात अपने राज्य के बारे में कही। उनका मानना है कि यहां सबकुछ ठीक है ऐसे में एनआरसी की कोई मांग नहीं है। यह वही बिप्लब देव हैं, जिनके पूर्वज बांग्लादेश से आते हैं।
ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, बिप्लब देब के अभिभावक बांग्लादेश से हैं। वे भारत 1971 में शरणार्थी के तौर पर आए थे। हालांकि बिप्लब देब का जन्म त्रिपुरा के राजधर नगर गांव में हुआ, जो कि वर्तमान में गोमती जिले के अन्तर्गत आता है। उन्होंने बचपन और विद्यालयी शिक्षा त्रिपुरा से ही ली है। इस समय वह भारतीय जनता पार्टी से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं। वह अपने राज्य के लिए कह चुके हैं कि यहां सबकुछ ठीक है ऐसे में एनआरसी की कोई मांग नहीं है।
आपको बता दें, पिछले दिनों असम में एनआरसी का दूसरा ड्राफ्ट जारी किया गया था। इस ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों को जगह नहीं मिली है। एनआरसी के दूसरे ड्राफ्ट की लिस्ट पर गौर करें तो उत्तर-पूर्वी राज्य असम में कुल 3.29 करोड़ आवेदक थे, जिनमें 2.89 करोड़ लोगों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है। उन्हें भारतीय नागरिक माना गया है। वहीं जिन 40 लाख लोगों का नाम इस लिस्ट में नहीं है उन्हें वैध नागरिक नहीं पाया गया है।
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