बिहार में पहली बार मात्र 7 दिन के लिए CM बने थे नीतीश कुमार, यहां पढ़ें उनके जीवन का लेखा-जोखा
By एस पी सिन्हा | Published: November 15, 2020 06:46 PM2020-11-15T18:46:23+5:302020-11-15T18:59:16+5:30
मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दूसरी पारी में नीतीश कुमार ने 5 साल का कार्यकाल पहली बार पूरा किया. 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक नीतीश दूसरी बार मुख्यमंत्री रहें.
पटना: नीतीश कुमार कल सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे और बिहार में एक बार फिर से सुशासन बाबू की सरकार बनेगी. बिहार में सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे नीतीश कुमार पहली बार सिर्फ 7 दिन के लिए ही कुर्सी पर बैठे थे. हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण महज एक सप्ताह बाद ही उनकी सरकार गिर गई थी. मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दूसरी पारी में नीतीश कुमार ने 5 साल का कार्यकाल पहली बार पूरा किया. 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक नीतीश दूसरी बार मुख्यमंत्री रहें.
पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के राजभवन में तत्कालीन राज्यपाल विनोद चंद्र पांडेय, जयप्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन के गर्भ से निकले एक नेता को शपथ पत्र पढ़वा रहे थे. वो नेता जिसने लगभग छह साल पहले जनता पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी और बिहार में बदलाव के सपने संजोए थे. राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते वक्त उस नेता को इस बात का इल्म था कि इस पद पर बने रहने के लिए उसके पास नंबर नहीं हैं. लेकिन फिर भी उसने जोखिम उठा लिया था. सप्ताह बीतते-बीतते उसे राज्य की गद्दी छोड़नी पड़ी और बिहार में बदलाव का उसका सपना बाद के लिए टल गया. पांच साल बाद वक्त ने करवट ली. बिहार बदलाव की अंगड़ाई ले चुका था. पहली बार आठ दिन के लिए मुख्यमंत्री बने नेता ने एक बार फिर से शपथ पत्र पढ़ा और बिहार में सुशासन बाबू के राज का आगाज हुआ.
तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की ताजपोशी 26 नवंबर 2010 को हुई, जब बिहार की जनता ने मुख्यमंत्री के रूप में उनके काम को आपार समर्थन दिया. हालांकि बाद में कार्यकाल के पूरा होने के पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यह वही समय था जब नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में एनडीए से बाहर होने का फैसला किया था. जिसका नतीजा ये हुआ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच उनकी पार्टी को करारी शिकस्त मिली थी. सत्ताधारी दल होने के बावजूद भी नीतीश कुमार के खाते में सिर्फ 2 सीटें ही आई थीं. जिसके कारण पार्टी की करारी हार का जिम्मा लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और तब जदयू के नेता रहे जीतन राम मांझी को पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला क्योंकि नीतीश कुमार ने उन्हें ही अपना कार्यभार सौंपा.
चौथी बार 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथग्रहण किया. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक जीतन राम मांझी को हटाकर नीतीश कुमार खुद मुख्यमंत्री बन गए और उन्होंने बिहार की कमान संभाली. नीतीश कुमार के इस फैसले से नाराज होकर बाद में मांझी ने जनता दल यूनाइटेड से रिश्ता तोड़ लिया और खुद अलग पार्टी बना ली. हालांकि इस बार दोनों फिर से साथ आ गए हैं. इसबार के बिहार चुनाव में हम को 4 सीटें मिली हैं और जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया है.
पांचवीं बार नीतीश कुमार 20 नवंबर 2015 को बिहार के मुख्यमंत्री बनें. भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने लालू यादव का हाथ थामा. लगभग एक दशक तक सत्ता से दूर रहने वाली राजद ने नीतीश का नेतृत्व पसंद किया और चुनाव जीतने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. इसी साल पहली बार लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी बिहार के उप मुख्यमंत्री बने थे. छठी बार नीतीश कुमार ने 27 जुलाई 2017 को बिहार का कमान संभाला और उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में शपथग्रहण किया क्योंकि राजद से इन्होंने अपना गठबंधन तोड लिया था. लालू की पार्टी से रिश्ता टूटने के बाद नीतीश कुमार फिर से एनडीए के साथ आ गए और मुख्यमंत्री बने. इस गठबंधन के साथ उनकी पुरानी जोडी भी साथ आई. तेजस्वी के उप मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी फिर से बिहार के उपमुख्यमंत्री बन गए.
इसबार के विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में फिर से सरकार बनने जा रही है. भाजपा ने चुनाव से पहले ही साफ कर दिया था कि चाहे परिणाम कुछ भी आएं, लेकिन नीतीश कुमार ही एनडीए के मुख्यमंत्री चेहरा होंगे और ऐसा ही हुआ है. बिहार की राजधानी पटना में एनडीए विधायक दल की बैठक हुई. इस बैठक में नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुना गया.
बिहार के बख्तियारपुर जिले में जन्मे नीतीश कुमार की शुरुआती पढाई बख्तियारपुर के श्री गणेश हाई स्कूल से हुई. बाद में उन्होंने पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और इसी दौरान वह राजनीति में सक्रिय हो गए. 70 के दशक में देश में राजनीतिक रूप से भारी उठापटक हुई. देश भर में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद होने लगे और इंदिरा के विरुद्ध आंदोलन का मजबूत गढ़ बिहार बना. 18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों और युवकों द्वारा शुरू किए आंदोलन में जेपी के नेतृत्व ने जान फूंक दी और ये आंदोलन पूरे देश में ऐसा फैल गया और देखते ही देखते राजनीति का चेहरा ही पूरी तरह बदल गया. नीतीश कुमार इस आंदोलन का हिस्सा थे. इसके बाद देश में आपातकाल लगा नीतीश कुमार भोजपुर जिले के संदेश थाना के दुबौली गांव से गिरफ्तार किए गए. नीतीश कुमार ने राजनीति के गुण जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और जॉर्ज फर्नांडिस से सीखे थे.
इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए और नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. वह नालंदा के हरनौत विधानसभा सीट से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए. 1980 में वो लोकदल के प्रत्याशी के रूप में इस सीट से चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन दूसरी बार भी उन्हें हार झेलनी पडी. साल 1985 में लोकदल के टिकट पर नीतीश हरनौत से बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए. साल 1987 में नीतीश कुमार बिहार के युवा लोकदल के अध्यक्ष बना दिए गए. 1989 में उन्हें जनता दल का महासचिव बना दिया गया. साल 1989 नीतीश के राजनीतिक कैरियर के लिए काफी अहम था. इस साल नीतीश 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए. इसके बाद साल 1990 में नीतीश कुमार अप्रैल से नवंबर तक केंद्र में वीपी सिंह की सरकार में कृषि एवं सहकारी विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे.
वहीं, साल 1991 में लोकसभा के चुनाव हुए नीतीश एक बार फिर से संसद में पहुंचे. करीब दो साल बाद 1993 को नीतीश कुमार को कृषि समित का अध्यक्ष बनाया गया. इस बीच साल 1994 में वह जनता पार्टी से अलग हो गए और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी का गठन किया. लेकिन 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में समता पार्टी को हार झेलनी पडी. इस हार के बाद जेपी के आंदोलन और मंडल उभार से निकले नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन की गांठ बांधी. 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार फिर से संसद पहुंचे. 1998-99 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री भी रहे. साल 2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. उनका कार्यकाल 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक चला. साल 2000 में नीतीश कुमार वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री रहे. साल 2001 में नीतीश को रेलवे का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया. 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार फिर से चुनकर आए. लेकिन वह इसके अगले साल ही बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.