बिलकीस बानो केस: 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में नई पीठ करेगी सुनवाई, दोषियों की रिहाई को दी गई है चुनौती

By शिवेंद्र कुमार राय | Published: March 24, 2023 08:24 PM2023-03-24T20:24:50+5:302023-03-24T20:26:24+5:30

3 मार्च, 2002 को गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में दंगों के दौरान भीड़ द्वारा बिलकिस और उसकी तीन साल की बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। भीड़ के इस हमले में 14 लोगों की हत्या भी कर दी गई थी। इस मामले में बलात्कार और हत्या के 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा किया गया था।

Bilkis Bano case Supreme Court constitutes new bench hearing on March 27 against convicts release | बिलकीस बानो केस: 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में नई पीठ करेगी सुनवाई, दोषियों की रिहाई को दी गई है चुनौती

27 मार्च को बिलकीस बानो केस में सुनवाई होगी

Highlights27 मार्च को बिलकीस बानो केस में सुनवाई होगीन्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ करेगी सुनवाई11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने से जुड़ा है मामला

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिल्कीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 27 मार्च को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ कई राजनीतिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओं और बानो द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करेगी।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने 22 मार्च को मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था और याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक नयी पीठ गठित करने पर सहमति व्यक्त की थी। गौरतलब है कि चार जनवरी को न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष यह मामला आया था, लेकिन न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने बिना कोई कारण बताए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा में छूट दी थी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था। बानो ने अपनी लंबित रिट याचिका में कहा है कि राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए एक ‘यांत्रिक आदेश’ पारित किया। उन्होंने कहा, "बिलकिस बानो के बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देश भर में कई आंदोलन हुए हैं।" इसमें कहा गया है, "जब देश अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तो सभी दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया था और उन्हें सार्वजनिक रूप से माला पहनाई गई तथा उनका सम्मान किया गया एवं मिठाइयां बांटी गईं।"

दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से दायर जनहित याचिकाएं शीर्ष अदालत के पास लंबित हैं।
 

बता दें कि 3 मार्च, 2002 को गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में दंगों के दौरान भीड़ द्वारा बिलकिस और उसकी तीन साल की बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। भीड़ के इस हमले में 14 लोगों की हत्या भी कर दी गई थी। इस मामले में बलात्कार और हत्या के 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा किया गया था। 

दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई थी लेकिन पिछले साल गुजरात सरकार ने सजा माफी की नीति के तहत इन्हें रिहा कर दिया था। रिहा किए गए लोगों में से कुछ 15 साल तो कुछ 18 साल की जेल काट चुके हैं। इस मामले ने राजनीतिक रंग भी लिया और गुजरात चुनावों के दौरान भी इस मुद्दे को खूब उछाला गया। बिलकीस बानो ने फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने पिछले साल दिसंबर में इसे खारिज कर दिया था।  घटना के वक्त बानो 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती भी थी।

Web Title: Bilkis Bano case Supreme Court constitutes new bench hearing on March 27 against convicts release

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