बिलकीस बानो केस: सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा- क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 20, 2023 09:39 PM2023-09-20T21:39:39+5:302023-09-20T21:40:42+5:30

दोषियों की ओर से दलीलें बुधवार को पूरी हो गईं और अब अदालत चार अक्टूबर को अपराह्न दो बजे बिलकीस बानो के वकील और अन्य की जवाबी दलीलें सुनेगी।

Bilkis Bano Case Supreme Court asked Do the culprits have the fundamental right to apologize | बिलकीस बानो केस: सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा- क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Highlightsउच्चतम न्यायालय बिलकिस बानो केस पर सुनवाई हुईन्यायालय ने पूछा कि क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?अदालत चार अक्टूबर को बिलकीस बानो के वकील और अन्य की जवाबी दलीलें सुनेगी

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?

 न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील से पूछा, "क्या माफी मांगने का अधिकार (दोषियों का) मौलिक अधिकार है। क्या कोई याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 (जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सीधे उच्चतम न्यायालय पहुंचने के अधिकार संबंधित है) के तहत दायर की जाएगी।"

वकील ने जवाब दिया, "नहीं, यह दोषियों का मौलिक अधिकार नहीं है।" उन्होंने कहा कि पीड़ित और अन्य को भी अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके सीधे शीर्ष अदालत में पहुंचने का अधिकार नहीं है क्योंकि उनके किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है। इस बीच, एक दोषी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई छूट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों के समक्ष न्यायिक समीक्षा के लिए खुली है। संविधान के अनुच्छेद 226 में कहा गया है कि उच्च न्यायालय को "मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन और अन्य उद्देश्यों के लिए किसी भी व्यक्ति या किसी सरकार को बंदी प्रत्यक्षीकरण सहित आदेश या रिट जारी करने की शक्ति होगी।" 

इस पर पीठ ने कहा, “कौन कह सकता है कि नियमों का पालन करने के बाद छूट दी गई है?” वकील ने जवाब देते हुए कहा कि अगर यह कोई सवाल है, तो छूट को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए, न कि अनुच्छेद 32 के तहत सीधे शीर्ष अदालत में। सुनवाई के दौरान, पीठ ने एक वकील की इस दलील पर आपत्ति जताई कि एक आरोपी को उच्चतम न्यायालय सहित किसी भी अदालत द्वारा "सही या गलत" दोषी ठहराए जाने और माफी दिए जाने से पहले सजा काट लेने के बाद इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। 

पीठ ने वकील से सख्ती से कहा, “यह क्या है - सही या ग़लत? आपको सही दोषी ठहराया गया है।" वकील ने कहा कि वह सिर्फ यह कहना चाहते थे कि दोषी पहले ही 15 साल से अधिक की सजा काट चुके हैं। उन्होंने कहा, “सुविधा का संतुलन दोषियों की ओर अधिक झुकता है क्योंकि वे पहले ही सजा काट चुके हैं। हमारा आपराधिक न्यायशास्त्र सुधार के विचार पर आधारित है। इस स्तर पर अपराध की प्रकृति और गंभीरता को नहीं, बल्कि जेल में दोषियों के आचरण को देखा जाना चाहिए।”

दोषियों की ओर से दलीलें बुधवार को पूरी हो गईं और अब अदालत चार अक्टूबर को अपराह्न दो बजे बिलकीस बानो के वकील और अन्य की जवाबी दलीलें सुनेगी। अदालत ने पूर्व में कहा था कि कुछ दोषियों को "अधिक विशेषाधिकार प्राप्त" हैं। दोषी रमेश रूपाभाई चंदना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा था कि दोषियों के सुधार और पुनर्वास के लिए छूट देना "अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थापित स्थिति" है तथा जब कार्यपालिका निर्णय ले चुकी है तो अब बिलकीस बानो और अन्य के इस तर्क को नहीं माना जा सकता कि जघन्य अपराध के कारण उन्हें राहत नहीं दी जा सकती। शीर्ष अदालत ने 17 अगस्त को कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।

Web Title: Bilkis Bano Case Supreme Court asked Do the culprits have the fundamental right to apologize

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