बिहार: कोरोना महामारी के बीच जिंदगी और मौत से जूझते लोग, सरकार के दावे की पोल खोलती अस्पतालों की व्यवस्था

By एस पी सिन्हा | Published: July 21, 2020 08:21 PM2020-07-21T20:21:02+5:302020-07-21T20:28:12+5:30

यह स्थिति राजधानी पटना से लेकर राज्य के सभी जगहों की एक सी हो गई है. पहले लोग दूसरे जिलों से पटना इस उम्मीद में आते थे कि यहां ईलाज बेहतर हो जायेगा और जिंदगी बच जायेगी.

Bihar: People battling for life and death amid Corona epidemic, hospital system exposes government claims | बिहार: कोरोना महामारी के बीच जिंदगी और मौत से जूझते लोग, सरकार के दावे की पोल खोलती अस्पतालों की व्यवस्था

बिहार में कोरोना वायरस ताजा अपडेट

Highlightsडॉक्टर बेलगाम हैं, तो कर्मचारी भी उनसे कम नहीं.बिहार के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) में कोरोना की जांच रिपोर्ट के इंतजार में एक संदिग्ध मरीज का शव घंटों पड़ा रहा

पटना: बिहार में कोरोना के जारी कहर के बीच हाल बेहाल होता जा रहा है. सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं की चौपट हो चुकी व्यवस्था के बीच अब त्राहीमाम की स्थिती हो गई है. स्थिती ऐसी है कि लोग जायें तो जायें कहां? न कोई सुनने वाला है और ना ही कोई देखने वाला, जिंदा रह गये तो भाग्य से मर गये तो कोरोना कारण बन जायेगा. डॉक्टरों का धरती का भगवान और अस्पताल को मंदिर की संज्ञा दी गई है. मरीज यहां इस उम्मीद में आते हैं कि रोग चाहे कितना ही गंभीर क्यों न हो, जान बच जाएगी. लेकिन बिहार के अस्पतालों की स्थिति अलहदा है.

कुव्यवस्था का आलम इस कदर हावी है कि जीवन की संभावना लिए मरीज या तो दम तोड देते हैं या भगवान से अपने लिए मौत मांगने लगते हैं.

यह स्थिति राजधानी पटना से लेकर राज्य के सभी जगहों की एक सी हो गई है. पहले लोग दूसरे जिलों से पटना इस उम्मीद में आते थे कि यहां ईलाज बेहतर हो जायेगा और जिंदगी बच जायेगी. लेकिन अभी स्थिती यह है कि चाहे पटना के सबसे बडे अस्पताल पीएमसीएच का हो या एनएमसीएच अथवा आईजीआईएमएस व एम्स. सभी जगह स्थिती भयावह बनी हुई है. जिलों की बात करें तो भागलपुर में स्थित जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) हो या सदर अस्पताल, गया स्थित अनुग्रह नारायण चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल, दरभंगा स्थित डीएमसीएच सहित सभी की स्थिति एक सी है.

डॉक्टर बेलगाम हैं, तो कर्मचारी भी उनसे कम नहीं. मरीजों के इलाज के लिए ही इनकी ड्यूटी लगाई जाती है. इसके एवज में वेतन के मद में मोटी रकम दी जाती है, लेकिन उन्हें इससे क्या? कुव्यवस्था देखिए, 17 जुलाई की रात कुछ देर के लिए बिजली क्या गई, आइसीयू में भर्ती निर्मला देवी की मौत हो गई. निर्मला वेंटिलेटर पर थीं. बिजली जाने के बाद ऑक्सीजन मिलना बंद हो गया. स्वजन परेशान थे. वे डॉक्टर और कर्मचारी को खोज रहे थे, जो थे ही नहीं. इसी दिन डॉक्टर के नहीं देखने आने से क्षुब्ध और परेशान 80 वर्षीय बुजुर्ग शंकर मंडल ने भगवान से मौत की दुआ मांगी. उनकी मौत भी हो गई. अस्पताल में आए दिन मरीजों के साथ ऐसा होता है.


वहीं, बिहार के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) में कोरोना की जांच रिपोर्ट के इंतजार में एक संदिग्ध मरीज का शव घंटों पड़ा रहा. इस अव्यवस्था को लेकर वहां भर्ती दूसरे मरीजों और उनके अभिभावकों ने आक्रोश जताया. इसको लेकर आईसीयू में भर्ती एक मरीज के परिजन ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. इसके बाद हडकंप मच गया.


वार्ड में भर्ती मरीज और उनके परिजनों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने रविवार शाम से ही बेड पर शव को छोड रखा है. इस कारण अन्य मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पडा. वहीं, इस मामले में अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मृतक का सैम्पल जांच के लिए भेजा गया है. जांच रिपोर्ट आने के बाद ही उसका शव परिजनों या प्रशासन को सौंपा जाएगा. आईसीयू में भर्ती एक मरीज के परिजन ने बेड पर पडे शव का वीडियो बनाकर स्थिति को दर्शाया गया है. यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी के साथ वायरल हो रहा है. इसके पहले आइसोलेशन वार्ड में कुव्यवस्था के चलते यूको बैंक मुख्य शाखा के सीनियर मैनेजर संतोष साहू की मौत हो गई. उनकी सांस तेज चल रही थी. उस वक्त भी डॉक्टर उन्हें देखने तक नहीं आए. ऑक्सीजन भी नहीं मिला. तडप-तडप कर उन्होंने दम तोड दिया.
वहीं, सप्ताह भर पहले गायनी आइसीयू में गंभीर मरीज को भर्ती करने के लिए जब स्वास्थ्य प्रबंधक ड्यूटी कर रही महिला डॉक्टर से कहा तो वह गुस्सा हो गईं.

प्रबंधक से मरीज को भर्ती करने के लिए उनसे ही लिखित में मांगने लगीं. बताया तो यह जाता है कि भर्ती करने के विवाद को लेकर एक घंटा से ज्यादा देर तक मरीज को एंबुलेंस में रखा गया. जब भर्ती करने का समय आया तो उसकी मौत हो चुकी थी. यही नहीं कटिहार से एक डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव थे, भागलपुर के मायागंज अस्पताल की आइसीयू में भर्ती होने आए तो नर्स ने कहा कि आइसीयू प्रभारी कहेंगे तब भर्ती किया जाएगा.

आखिरकार उनकी पैरवी भी काम नहीं आई, पैसे वाले थे इस कारण पटना एम्स में भर्ती हो गए. जेएलएनएमसीएच की आइसीयू में भर्ती मरीज शंकर मंडल द्वारा मौत की भीख मांगने का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था. जिस यूनिट में भर्ती बुजुर्ग को किया गया था, उसके डॉक्टर कहते हैं कि उनकी याददाश्त कम हो गई थी. इसलिए ऐसा करते हैं. स्वजन वीडियो में यह कह रहे कि चार दिनों से डॉक्टर देखने नहीं आए हैं. अगर मरीज को दर्द है तो वह जरूर बयां करेगा, चाहे जवान हो या बुजुर्ग. जब मरीजों की खबर बनती है तो महज स्पष्टीकरण मांगकर खानापूर्ति भर कर दी जाती है.


बिहार में ऐसे मरीजों की लंबी सूची है जिन्हें बगैर किसी कारण एम्स में रेफर कर दिया जाता है. कहीं कोई अस्पताल भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता और फिर से उसे रेफर कर देता है. इसी रेफर के खेल में मरीज की मौत हो जाती है. ऐसे कई उदाहरण भरे पडे हैं. बिहार के सदर अस्पतालों के डॉक्टर इमरजेंसी में आए सर्दी-खांसी के मरीज को भी कोरोना संक्रमित समझ लेते हैं. अगर थोड़ी सी चोट भी लगी है तो पटना के एम्स में रेफर करना उनकी रूटीन में शामिल है. अगर पैरवी है तो मरीज के इलाज के प्रति भी डॉक्टर सजग रहते है, अन्यथा जिंदगी बची तो भगवान भरोसे. इसतरह बिहार में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. सरकार की अपनी ही दलील होती है और डॉक्टरों की थ्योरी अलग. ऐसे में आज की तारीख में कोई बच निकला तो यह समझा जाये कि उसकी भाग्य ठीक थी और भगवान ने उसे बचा लिया. लेकिन अगर नही बचे तो कोरोना का कहर जिम्मेवार होगा ही.

Web Title: Bihar: People battling for life and death amid Corona epidemic, hospital system exposes government claims

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