लोकसभा चुनाव 2019: बिहार महागठबंधन के साथी तो बढ़ गए, सीटें कैसे बढ़ाएंगे?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: February 27, 2019 06:02 AM2019-02-27T06:02:51+5:302019-02-27T06:02:51+5:30

सियासी संकेत यही हैं कि महागठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा आसान नहीं है, क्योंकि एक ओर तो किसी भी दल को उम्मीद के अनुरूप सीटें नहीं मिल पाएंगी

BIHAR MAHAGATHBANDHAN FUTURE AND DISTRIBUTION OF SEATS IS NOT EASY LALU YADAV IS MONITORING | लोकसभा चुनाव 2019: बिहार महागठबंधन के साथी तो बढ़ गए, सीटें कैसे बढ़ाएंगे?

लोकसभा चुनाव 2019: बिहार महागठबंधन के साथी तो बढ़ गए, सीटें कैसे बढ़ाएंगे?

Highlightsबिहार की कुल 40 लोस सीटें हैं और महागठबंधन में आधा दर्जन से ज्यादा शामिल सियासी दलों को कितनी-कितनी सीटें मिलेंगी, यह बड़ा सवाल है?बिहार में महागठबंधन बनाना जितना आसान रहा है, ज्यादा-से-ज्यादा दलों को साथ लाना जितना सरल रहा है, उसे निभाना उतना ही मुश्किल होता जा रहा है!

बिहारमहागठबंधन में एक के बाद एक सियासी दल तो जुड़ते गए और साथी बढ़ते गए, लेकिन सीटें कैसे बढ़ाएंगे? बिहार की कुल 40 लोस सीटें हैं और महागठबंधन में आधा दर्जन से ज्यादा शामिल सियासी दलों को कितनी-कितनी सीटें मिलेंगी, यह बड़ा सवाल है?

छोटे दल तो बाद में, पहले तो कांग्रेस और राजद ही अपनी दावेदारी पर सहमति नहीं बना पा रहे हैं. जहां अपनी बढ़ती ताकत के मद्देनजर कांग्रेस एक दर्जन से ज्यादा सीटों की चाहत में है, तो राजद को डेढ़ दर्जन से ज्यादा सीटें चाहिएं. इन दोनों ने अपनी चाहत पूरी कर ली तो बाकी दलों को क्या मिलेगा? दरभंगा, मधेपुरा, मुंगेर जैसी कुछ खास सीटें भी हैं जिन्हें, कांग्रेस और राजद, दोनों में से कोई भी छोड़ना नहीं चाह रहा है. सीटों की इस तंगी के बीच यदि चर्चित बागी नेता शत्रुघ्न सिंन्हा को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो महागठबंधन की एक सीट और कम हो जाएगी!

लालू यादव बनाये हुए हैं नजर 

बिहार में सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर लालू प्रसाद नजर रखें हैं. जो पहला सुझाव है, उसके तहत राजग के लिए 20 सीटें, तो कांग्रेस को 10 और शेष 10 सीटें बाकी सहयोगी दलों के लिए होंगी, हालांकि इस पर कांग्रेस सहित कोई भी दल शायद ही राजी हो. सीटों के बंटवारे के विवाद में यदि महागठबंधन ही बंट गया, तो राजद को शरद यादव की पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी आदि का साथ मिल सकता है वहीं कांग्रेस को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी सहित वामदलों का सहारा मिल सकता है, लेकिन इस स्थिति में हार-जीत का समीकरण पूरी तरह से बदल जाएगा, मतलब- भाजपा का भाग्य खुल जाएगा तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

सीटों के इस सियासी हिसाब-किताब में सबसे ज्यादा परेशानी में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा है. महागठबंधन में सबसे पहले आने के बावजूद, जीतनराम मांझी के हिस्से में कुछ खास नहीं आना है. लेकिन, महागठबंधन के लिए फायदे की बात यह है कि महागठबंधन छोड़ कर भी छोटे दलों को कोई विशेष लाभ नहीं होना है.

एनडीए में सीटों का बंटवारा हो चुका है, लिहाजा उसकी ओर देखने का कोई अर्थ नहीं है और अकेले लड़कर भी क्या मिल जाएगा? 

दिग्गज नेताओं की सीटों पर टिकी निगाहें 

कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जिन पर दिग्गजों की नजरें है, लेकिन नतीजा क्या निकलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है. जैसे, मधेपुरा सीट पर बड़ा सवाल है, यहां से लोकसभा पहुंचे थे- पप्पू यादव, तो अब शरद यादव भी इसी सीट से दावेदार हो सकते हैं. इसका हल क्या निकलेगा, यह जानना दिलचस्प होगा. मधेपुरा सीट यदि शरद यादव के हिस्से में आती है, तो पप्पू यादव के लिए फिर पूर्णिया सीट ही बचती है.

इसी तरह, दरभंगा सीट से कीर्ति झा आजाद ने पिछला चुनाव बीजेपी के टिकट पर जीता था और अब वे कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. क्या उन्हें फिर से दरभंगा सीट मिल पाएगी?

सियासी संकेत यही हैं कि महागठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा आसान नहीं है, क्योंकि एक ओर तो किसी भी दल को उम्मीद के अनुरूप सीटें नहीं मिल पाएंगी, इसलिए सियासी संतोष का अभाव रहेगा, दूसरी ओर- कई दिग्गज नेताओं को उनकी मनपसंद की सीट मिलना मुश्किल होगा, यदि उन्हें इच्छित सीट नहीं मिली तो वे क्या करेंगे?

बिहार में महागठबंधन बनाना जितना आसान रहा है, ज्यादा-से-ज्यादा दलों को साथ लाना जितना सरल रहा है, उसे निभाना उतना ही मुश्किल होता जा रहा है!

Web Title: BIHAR MAHAGATHBANDHAN FUTURE AND DISTRIBUTION OF SEATS IS NOT EASY LALU YADAV IS MONITORING