महागठबंधन से कन्हैया कुमार बाहर, जानिए बिहार में लेफ्ट पार्टियों की ताकत और कमजोरी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 23, 2019 12:12 PM2019-03-23T12:12:36+5:302019-03-23T12:27:58+5:30

1990 में बिहार में मंडल की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं का उदय हुआ है। पिछले 30 सालों में इन नेताओं का कद राष्ट्रीय स्तर भी बढ़ा है और इनकी पार्टी का विस्तार भी हुआ है। इनके उभार से सबसे ज्यादा नुकसान बिहार में वाम दलों को हुआ।

Bihar mahagathbandhan drops Kanhaiya Kumar kunow about Left strength | महागठबंधन से कन्हैया कुमार बाहर, जानिए बिहार में लेफ्ट पार्टियों की ताकत और कमजोरी

बिहार में वाम दलों में सबसे मजबूत भाकपा-माले ने महागठबंधन से तीन संसदीय सीटों की मांग की थी लेकिन सीट बंटवारे में उन्हें सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा है।

Highlightsमहागठबंधन से अगर वाम दलों की बात नहीं बनती है तो कम से कम 12 सीटों पर उनके प्रत्याशी चुनावी मैदान में होंगे।पिछले विधानसभा चुनाव में भाकपा-माले ने बिहार में तीन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।

निखिल कुमार वर्मा

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में महागठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। महागठबंधन में आरजेडी ने अपने कोटे से एक सीट भाकपा माले को दी है जबकि सीपीआई और सीपीएम को कोई सीट नहीं मिली है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) भी महागठबंधन में शामिल होना चाहती थी लेकिन उसे जगह नहीं दी गई। अब सीपीआई नेता कन्हैया कुमार बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार नहीं होंगे। 

सीपीआई से लड़ सकते हैं कन्हैया

बेगूसराय संसदीय सीट पर सीपीआई का जनाधार रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 में बेगूसराय सीट से सीपीआई उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट मिले थे। 2009 चुनाव में सीपीआई यहां दूसरे नंबर पर रही थी। आज बेगूसराय में सीपीआई की जिला कार्यसमिति की बैठक है जिसमें कन्हैया कुमार को लड़ाने का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। बेगूसराय जिले के बछवाड़ा सीट से विधायक रह चुके सीपीआई नेता अवधेश राय ने लोकमत से विशेष बातचीत में बताया कि उनकी पार्टी निश्चित तौर पर इस सीट से चुनाव लड़ेगी।

सीपीआई को थी लालू प्रसाद यादव से उम्मीद

सीपीआई महासचिव सुधाकर रेड्डी ने बिहार में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन में पार्टी को शामिल नहीं करने पर दुख जताते हुए कहा है कि इस मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद से सहमति कायम होने के बावजूद इस पर अमल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है। 

बता दें कि जेएनयू में राजद्रोह केस से चर्चा में आए कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय के ही रहने वाले हैं। पिछले तीन सालों से वो टीवी चैनलों वाम दलों का पोस्टर ब्वाय बन चुके हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने पिछले साल सितंबर महीने में लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की थी। इसके बाद से ही ये कयास लगाया जा रहा था कि कन्हैया बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे।

माले को सिर्फ एक सीट

बिहार में वाम दलों में सबसे मजबूत भाकपा-माले ने महागठबंधन से तीन संसदीय सीटों की मांग की थी लेकिन सीट बंटवारे में उन्हें सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा है। माले के पटना ऑफिस इंचार्ज कुमार परवेज ने बताया कि महागठबंधन के ऑफर पर अभी विचार होगा। पार्टी आज दो बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी जिसमें आगे की रणनीति बताई जाएगी।

भाकपा-माले के संगठन रिवोल्यूशनरी यूथ एसोसिएशन (RYA) के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने बताया पार्टी ने महागठबंधन से आरा, सीवान और काराकाट संसदीय सीट की मांग की थी। आरा सीट पर महागठबंधन से बात बन चुकी है। पार्टी तेजस्वी यादव से बाकी सीटों के बारे में दोबारा बात करेगी।

भूमिहार बहुल है बेगूसराय सीट

फिलहाल बेगूसराय लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। 2014 लोकसभा चुनाव में दिवंगत बीजेपी नेता भोला सिंह यहां से चुनाव जीते थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को तकरीबन 58000 वोटों से हराया था। बेगूसराय के बरौनी प्रखंड स्थित बीहट पंचायत के निवासी कन्हैया भी भूमिहार जाति आते हैं। इस सीट पर भूमिहार जाति के वोटरों की बहुलता है। भोला सिंह भी भूमिहार जाति से आते थे। इस बार बीजेपी नवादा से सांसद गिरिराज सिंह को बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ाना चाहती है। कट्टर हिंदूवादी नेता की पहचान बना चुके गिरिराज भी भूमिहार जाति से आते हैं। 

2015 विधानसभा में सीपीआई का खाता नहीं खुला

पिछले विधानसभा चुनाव में भाकपा-माले ने बिहार में तीन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं सीपीआई-सीपीएम का खाता नहीं खुला था। सीपीएम का एक मात्र उम्मीदवार बीहटपुर से दूसरे नंबर पर रहा था।  वहीं 2010 के चुनाव में सीपीआई सिर्फ एक सीट जीतने में सफल रही थी जबकि माले शून्य सीट पर सिमट गई।

1990 में बिहार में मंडल की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं का उदय हुआ है। पिछले 30 सालों में इन नेताओं का कद राष्ट्रीय स्तर भी बढ़ा है और इनकी पार्टी का विस्तार भी हुआ है। इनके उभार से सबसे ज्यादा नुकसान बिहार में वाम दलों को हुआ। 1990 के विधानसभा चुनाव में वामदलों ने 31 सीटें जीती थी और इसके बाद वो बिहार में लगातार सिकुड़ते गए।

 

बिहार में वाम दलों की घटती सीटों पर दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अस्सिटेंट प्रोफेसर मृत्यंजय त्रिपाठी बताते हैं कि 2000 से पहले संयुक्त बिहार में वाम दल मजबूत स्थिति में थे। राज्य बंटवारे के बाद जहां वाम दल मजबूत स्थिति में थे, उसका कुछ हिस्सा झारखंड में चला गया। झारखंड की कुछ सीटों पर अभी भी वाम दलों का मजबूत जनाधार है। बता दें कि झारखंड के कोडरमा संसदीय सीट से भाकपा-माले ने राजकुमार यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है।

1996 में आखिरी बार जीते थे वाम दल के सांसद

बिहार बलिया लोकसभा सीट से सीपीआई नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह 1996 में लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद हुए पांच लोकसभा चुनावों में बिहार में वामदलों का खाता नहीं खुला है। 1991 लोकसभा चुनाव में बिहार से वाम दलों के नौ सांसद चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। इसके अलावा 1989 चुनाव में सीपीआई चार और 1971 लोकसभा चुनाव में पांच संसदीय सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है।

राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 1995 में विधानसभा चुनाव में सीपीआई लालू प्रसाद यादव से गठबंधन किया था, इसके बाद सीपीआई का जनाधार लगातार राज्य में सिकुड़ता गया है।

बात नहीं बनी तो 12 सीटों पर लड़ने की तैयारी

महागठबंधन से अगर वाम दलों की बात नहीं बनती है तो कम से कम 12 सीटों पर उनके प्रत्याशी चुनावी मैदान में होंगे। सीपीआई के पूर्व विधायक अवधेश राय बताते हैं कि बेगूसराय के अलावा पांच और संसदीय सीटों पर सीपीआई की मजबूत उपस्थिति है।

इन सीटों पर सीपीआई उम्मीदवार लोकसभा चुनावों में एक लाख से ज्यादा वोट लाते रहे हैं। वहीं भाकपा-माले भी छह सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।

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