बिहार: चौंकाने वाले हैं लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के आंकड़े
By एस पी सिन्हा | Published: June 14, 2019 05:52 PM2019-06-14T17:52:55+5:302019-06-14T17:52:55+5:30
महिला आयोग की सदस्य रेणु देवी ने बताया कि लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों के मामले अधिक आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि महीने भर के आने वाले मामले में लगभग दस प्रतिशत से अधिक मामले इनसे जुड़े होते हैं.
कानून ने जहां लिव इन रिलेशन को मान्यता दे दी है. वहीं, महिलाओं को न्याय दिलाने वाली संस्थाएं महिला हेल्प लाइन और महिला आयोग के ताजा आंकड़े बिल्कुल चौकानें वाले हैं. राजधानी पटना में लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों की सच्चाई यह है कि यहां हर चौथा मामला कई सालों तक साथ रहने के बावजूद टूट जा रहे हैं.
महिलाओं को न्याय दिलाने वाली संस्थाओं के हालिया आंकड़े बताते हैं कि लिव इन रिलेशन में रहने वाले प्रेमी जोड़े के रिश्ते कुछ समय के बाद टूट जाते है. जो चिंता का विषय है. बताया जाता है कि अपनी सहमति से कई सालों तक एक साथ रहने के बाद भी वैवाहिक बंधन में असफल रहने वालों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है.
महिला आयोग की सदस्य रेणु देवी ने बताया कि लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों के मामले अधिक आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि महीने भर के आने वाले मामले में लगभग दस प्रतिशत से अधिक मामले इनसे जुड़े होते हैं. जिसमें हम दोनों पक्षों को बुलाकर काउंसलिंग करके मामलों को सुलझाने की कोशिश करते हैं. वहीं, हेल्प लाइन की सीनियर काउंसलर प्रमिला ने कहा कि इस तरह के मामले पहले कम आते थे. लेकिन हाल के दिनों में यह आंकड़ा कुल मामलों के तीस प्रतिशत तक पहुंच गया है. जो बेहद ही चिंताजनक है. उन्होंने लिव इन रिलेशन में रहने वालों को सलाह देते हुए कहा कि जब शादी करना है तो पहले ही कर लो. उसके बाद रिश्ता बनाओ, क्योंकि छोटे मोटे झगड़े तो शादी के बाद भी होते हैं.
यहां उल्लेखनीय है कि भारत में लिव इन रिलेशन को मान्यता देने के लिए कानून बनाने में विधायिका का रुख भले ही लचर रहा हो. लेकिन 2013 और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दो मामले में लिव इन रिलेशन में जन्में बच्चे को संतान का दर्जा देते हुए इस तरह के रिश्ते को कानूनी मान्यता देने की बात कही थी. साथ ही इससे संबंधी दिशा निर्देश भी जारी किया. ऐसे में हालिया आंकड़ों को देखते हुए समाज में एक बार फिर ऐसे रिश्ते को लेकर सवाल उठने लगे हैं.