बिहार में कोरोनाकाल में सोशल डिस्टेंसिंग की बात है बेमानी: बाढ़ की त्रासदी झेल रही करीब 70 लाख की आबादी, एक ही तंबू के नीचे परिवार और जानवर हैं रहने को विवश

By एस पी सिन्हा | Published: August 9, 2020 03:26 PM2020-08-09T15:26:24+5:302020-08-09T15:26:24+5:30

कोरोना को लेकर कई ईलाके रेड जोन में है. उत्तर बिहार में सबसे ज्यादा श्रमिक मुंबई व दिल्ली से आये हैं. एक हीं तंबू के नीचे परिवार व जानवर रहने को विवश हैं.

Bihar flood: about 70 lakh population facing flood tragedy, families and animals are forced to live under the same tent | बिहार में कोरोनाकाल में सोशल डिस्टेंसिंग की बात है बेमानी: बाढ़ की त्रासदी झेल रही करीब 70 लाख की आबादी, एक ही तंबू के नीचे परिवार और जानवर हैं रहने को विवश

बिहार के बाढ़ प्रभावित 16 जिलों की करीब 70 लाख की आबादी ऐसी हीं जिंदगी जीने को विवश है.

Highlightsउत्तर बिहार में सबसे ज्यादा श्रमिक मुंबई व दिल्ली से आये हैं. एक हीं तंबू के नीचे परिवार व जानवर रहने को विवश हैं. मीनापुर में बने तंबू में अनिसा कुमारी 15 दिन से बीमार है.

पटना: बिहार में जारी कोरोना के कहर के बीच बाढ़ प्रभावित ईलाकॊं में सोशल डिस्टेंसिंग क्या होता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पॉलिथिन की तंबू में रह रहे लाखों बाढ़ प्रभावित विस्थापित परिवारों का हाल बुरा है. घर में पानी घुस जाने के बाद एक ही तंबू में परिवार के सारे सदस्य रहने को मजबूर हैं. कोरोना को लेकर कई ईलाके रेड जोन में है. उत्तर बिहार में सबसे ज्यादा श्रमिक मुंबई व दिल्ली से आये हैं. एक हीं तंबू के नीचे परिवार व जानवर रहने को विवश हैं.

बाढ़ की विपदा में सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं हो रहा है. कई लोग तंबू में बिमार भे एहो गये हैं, लेकिन उन्हें देखने वाला कोई नही है. मीनापुर में बने तंबू में अनिसा कुमारी 15 दिन से बीमार है. उसे बुखार होने के कारण उल्टी होती है. इलाज के बवजूद उसकी सेहत में सुधार नहीं है. उन्हें अब पेट से ज्यादा शौच की चिंता सता रही है. इसतरह से कई बांधों (नदी का किनारा) पर लाखों विस्थापित शरण लिए हुए हैं. सब की समस्या एक जैसी है. महिलाएं तो सुबह होने का इंतजार करती हैं. कई जगहों पर चचरी पुल बनाकर शौचालय बनाया गया है. अपना पक्का का घर छोड़ मुख्य सड़क पर शरण लिये विस्थापित बाढ़ पीड़ितों का बुरा हाल है. 

तंबू में रह रही उर्मिला देवी कहती है कि चापाकल का अभाव है. एक किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पडता है. बाढ़ सब कुछ बह गेलई. अनाज पानी कुछ नहीं है. विस्थापित महिलाओं का कहना है कि घर में छाती भर पानी है. धूप और बरसात सब के लिए अभिशाप है. शांति देवी व तेतरी देवी कहती हैं कि पशुचारा का अभाव है. वहीं, पशुओं की तबीयत बिगडने लगी है. वशिष्ठ सहनी की गाय नौ दिन से बीमार है. वह उठ भी नहीं पा रही है. 

मुखिया चंदेश्वर प्रसाद बताते हैं कि रघई पंचायत में पॉलीथिन बहुत कम दिया गया. चलंत शौचालय व चापाकल की व्यवस्था नहीं है. पशुचारा व चिकित्सा का अभाव है. सामुदायिक किचेन में सुबह शाम भोजन दिया जा रहा है. ऐसी स्थिती एक जगह की नही है, बल्कि बिहार के बाढ़ प्रभावित 16 जिलों की करीब 70 लाख की आबादी ऐसी हीं जिंदगी जीने को विवश है. कोरोना क्या होता है, इनलोगों के जेहन में तो है, लेकिन उससे ज्यादा त्रासदी बाढ़ की है, जिसने सबकुछ बहा दिया है.

Web Title: Bihar flood: about 70 lakh population facing flood tragedy, families and animals are forced to live under the same tent

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