बिहार: शोक मानी जानेवाली कोसी नदी किसानों के लिए उपजा रही सोना, तरबूज की खेती से हो रहे हैं मालामाल
By एस पी सिन्हा | Published: May 22, 2019 04:31 PM2019-05-22T16:31:17+5:302019-05-22T16:31:17+5:30
तरबूज की खेती करने वाले मो. आरिफ का कहना है कि तरबूज की खेती से उसे अच्छी-खासी आमदनी हो रही है. उसने बताया कि एक एकड़ की खेती में लगभग 30 हजार रुपये की लागत आती है और एक एकड से फलों की बिक्री के बाद 15 से 20 हजार रुपये का फायदा होता है.
उत्तर बिहार में कोसी नदी को बिहार का शोक माना जाता है. सहरसा जिले के जिस रेतीली जमीन को कुछ वर्ष पहले तक यहां के किसानों के लिए अभिशाप माना जाता था, आज उसी जमीन पर होने वाली तरबूज की खेती किसाने के लिए सोना उगलने लगे हैं. यहां की तरबूज की मिठास की प्रशंसा पड़ोसी देश नेपाल सहित पश्चिम बंगाल और बिहार के कई अन्य शहरों के लोग कर रहे हैं.
बताया जाता है कि कोसी के रेतीले जमीन पर उपजने वाले तरबूज की बाजारों में मांग ऐसी है कि चार वर्ष पूर्व चार एकड़ से शुरू हुई, इसकी खेती का दायरा बढकर अब 500 एकड़ पार हो गया है. कोसी के आसपास दशकों से रेतीली सैकड़ों एकड़ जमीन पर इन दिनों तरबूज की अच्छी-खासी खेती हो रही है.
इस खेती से किसानों की आय तो बढ ही रही है, साथ ही साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. बताया जाता है कि सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव, जहां कोसी नदी की बहती धार के किनारे की सैकड़ों एकड़ रेतीली जमीन यूं ही बेकार पडी रहती थी. बाढ और कटाव के भय से यहां के किसान इस बलुआही जमीन पर खेती करने से हिचकते थे. लेकिन चार वर्ष पहले यहां रहकर फेरी का काम करने वाले उत्तर प्रदेश के गाजीपुर गांव के आरिफ की नजर लंबे-चौडे़ क्षेत्र में फैले इस जमीन पर पडी.
उन्होंने जमीन के मालिक से बात की और उसी साल कुछ कर्ज लेकर प्रयोग के तौर पर एक एकड़ में तरबूज की खेती शुरू की. तीन महीने में तैयार हुए तरबूज ने उसे अच्छी कमाई दी. आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढाता चला गया. आज चौथे साल में आरिफ उत्तर प्रदेश से 50 किसानों को लाकर उनकी मदद से 500 एकड़ में तरबूज की खेती कर रहा है.
तरबूज की खेती करने वाले मो. आरिफ का कहना है कि तरबूज की खेती से उसे अच्छी-खासी आमदनी हो रही है. उसने बताया कि एक एकड़ की खेती में लगभग 30 हजार रुपये की लागत आती है और एक एकड से फलों की बिक्री के बाद 15 से 20 हजार रुपये का फायदा होता है.
आरिफ के इस प्रयास का असर गांव में भी दिखाने लगा है. अब गांव के लोग भी आरिफ के साथ जुडकर तरबूज की खेती कर रहे हैं. खेत के मालिकों का कहना है कि आरिफ से मिलने के बाद ही उन्होंने भी तरबूज की खेती शुरू की. अभी गांव के कम से कम 100 किसान उसके साथ जुडे़ हैं. वहीं इन किसानों का कहना है कि महिषी के बलुआहा में उपजने वाला तरबूज पड़ोसी देश नेपाल सहित पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में ट्रकों में भरकर भेजा जा रहा है. तरबूज की खेती और बिक्री से रोजगार और आमदनी दोनों बढ़ी है.
नवम्बर माह में तरबूज की खेती की शुरुआत होती है, जो जून के अंतिम सप्ताह में खत्म होती है. वहीं, इस खेती में ग्रामीण महिलाएं भी पीछे नहीं है. कड़कड़ाती धूप में खेतों में पहुंच स्थानीय किसान की पत्नी भी खेती में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है.