बिहार: नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति पर लटकी तलवार, हाईकोर्ट के निर्देश पर फर्जी प्रमाण पत्रों की जांच
By एस पी सिन्हा | Published: January 28, 2021 04:54 PM2021-01-28T16:54:19+5:302021-01-28T16:56:20+5:30
बिहार में अब तक करीब 60 हजार शिक्षकों के प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं. जिन शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच अभी तक नहीं हो सकी है, उन्हें अपना सर्टिफिकेट खुद पोर्टल पर अपलोड करना होगा...
बिहार में करीब एक लाख से अधिक शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है. राज्य सरकार ने बिहार में वर्ष 2006 से 2015 तक नियोजित हुए शिक्षकों के प्रमाणपत्रों को वेब पोर्टल पर अपलोड करने को लेकर शिक्षा विभाग ने सभी जिलों को निर्देश जारी किया है.
निगरानी जांच में अभी तक करीब 60 हजार शिक्षकों के प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं. इसके अलावा भी बडे पैमाने पर जांच के रडार पर हैं, जिनके प्रमाण पत्र फर्जी होने की संभावना है. ऐसे में अब उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी है. ऐसे शिक्षकों को अंतिम मौका देते हुए शैक्षणिक प्रमाण पत्र, अंक पत्र एवं नियोजन पत्र की प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.
खुद प्रमाणपत्र पोर्टल पर अपलोड करना होगा
शिक्षा विभाग ने कहा है कि जिन शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच अभी तक नहीं हो पाई है, उन्हें अपना प्रमाणपत्र स्वयं पोर्टल पर अपलोड करना होगा. ऐसा नहीं करने वाले शिक्षकों की सेवा समाप्त की जाएगी और वेतन की भी वसूली होगी. इसके लिए विभाग की ओर से वेब पोर्टल उपलब्ध कराया जा रहा है. प्रमाण पत्रों को अपलोड करने के लिए भी जल्द समय सीमा तय होगी, जो शिक्षक पोर्टल पर अपना प्रमाण पत्र अपलोड नहीं करेंगे, उनके बारे में माना जाएगा कि नियुक्ति की वैधता के बारे में उन्हें कुछ नहीं कहना.
ऐसे में उनकी नियुक्ति को अवैध मानकर उन्हें बर्खास्त करने की कार्रवाई की जाएगी. वहीं दोषी नियोजन इकाइयों पर भी प्राथमिकी दर्ज होगी. नियोजन इकाइयों द्वारा शिक्षकों से स्पष्टीकरण पूछकर उनकी सेवा समाप्त करते हुए उनसे पूर्व में हुए वेतन भुगतान की राशि वसूल की जाएगी.
प्राथमिक शिक्षा निदेशक डॉ. रणजीत कुमार सिंह के मुताबिक 2006 से 2015 के बीच नियुक्त किए गए जिन शिक्षकों के नियोजन फोल्डर निगरानी जांच में नहीं मिले हैं, उनकी रिपोर्ट सभी जिला शिक्षा अधिकारियों से मांगी गई है. ऐसे शिक्षकों के नाम और विवरण संबंधित नियोजन इकाइयों के साथ वेब पोर्टल पर सार्वजनिक किए जाएंगे, क्योंकि निगरानी जांच में ऐसे शिक्षकों के फोल्डर रखने वाली नियोजन इकाइयों से सहयोग नहीं मिल रहा है. इसके लिए विज्ञापन भी प्रकाशित किया जाएगा.
जांच के लिए प्रमाण पत्र अपलोड नहीं करने वाले शिक्षकों की सूचना संबंधित नियोजन इकाइयों को दी जाएगी. संबंधित शिक्षक से स्पष्टीकरण पूछकर उनकी सेवा समाप्त की जाएगी. लोक मांग एवं वसूली अधिनियम के तहत बर्खास्त शिक्षकों से वेतनमान के रूप में भुगतान की गई राशि की वसूली भी की जाएगी.
वहीं, निगरानी ने फोल्डर गायब होने के लिए शिक्षकों के साथ-साथ नियोजन इकाइयों को भी जिम्मेवार माना है. सरकार को सुझाव दिया है कि संबंधित नियोजन इकाइयों के मामले की भी जांच होनी चाहिए. शिक्षा विभाग ने जांच में दोषी नियोजन इकाइयों पर प्राथमिकी दर्ज कराएगी.
इससे पहले विभाग के स्तर से यह जांच भी कराई जाएगी कि पंचायतों एवं प्रखंडों के अलावा नगर निकायों से संबंधित नियोजन इकाइयों में शिक्षकों के फोल्डर कैसे गायब हुए? इसका भी पता लगाया जाएगा कि इसमें कौन लोग जिम्मेवार हैं? पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर वर्ष 2015 से नियोजित शिक्षकों के मामले की जांच निगरानी विभाग कर रही है. निगरानी जांच में 234 मुखिया की भूमिका संदिग्ध मिली है. ये निगरानी टीम की रडार पर हैं.
पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर जांच
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में निगरानी विभाग को शिक्षक नियोजन में चयनित शिक्षकों के फर्जी प्रमाणपत्रों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी. इस तरह पांच साल से अधिक दिनों से यह जांच चल रही है. सभी शिक्षकों के एक-एक प्रमाण पत्रों की जांच संबंधित बोर्ड व विश्वविद्यालयों के माध्यम से करायी जा रही है. इसके लिए बिहार सहित दूसरे राज्यों के बोर्ड व विश्वविद्यालयों से भी संपर्क किया गया है.
निगरानी विभाग को जांच के दौरान अबतक 1100 से अधिक फर्जी प्रमाण पत्र मिले हैं. इस मामले में 419 प्राथमिकी भी दर्ज कराई जा चुकी है. यहां बता दें कि पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर निगरानी द्वारा शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच की जा रही है. नियोजन इकाइयों द्वारा जांच में सहयोग नहीं किया जा रहा है. इसको देखते हुए विभाग ने प्रमाणपत्र जांच की वैकल्पिक व्यवस्था की है.