बिहार में शराबबंदी कानूनः शराब और शराबियों के पीछे-पीछे पुलिस, कानून-व्यवस्था की पोल, हत्या और दुष्कर्म से लोग परेशान
By एस पी सिन्हा | Published: November 27, 2021 04:34 PM2021-11-27T16:34:34+5:302021-11-27T16:35:30+5:30
बिहार भाजपा के अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल और सांसद छेदी पासवान बिहार पुलिस की कार्यकुशलता पर सवाल खडे़ कर चुके हैं.
पटनाः हाल-ए-बिहार ऐसा है कि पुलिस शराबबंदी कानून का पालन कराने के लिए शराब और शराब पीने वालों के पीछे लगी रह रही है और बेखौफ अपराधी बेधड़क आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने में लगे हुए हैं. राजधानी पटना में शासन के नाम के नीचे से लेकर पूरे सूबे में आए दिन आपराधिक घटनायें घट रही हैं.
लूट, हत्या, बलात्कार आदि की घटनायें आम हो गई हैं. राज्य में आए दिन घट रही आपराधिक घटनायें खराब हो रही कानून-व्यवस्था की पोल खोल देती है. बिहार पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2021 जनवरी से लेकर अक्टूबर तक के बीच हत्या और दुष्कर्म के मामले इस बात के पुख्ता सबूत हैं.
यही वजह है कि सरकार में सहयोगी भाजपा ने भी पुलिस पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि पुलिस की नजर सिर्फ दारू(शराब) और बालू पर लगी रहती है. प्रदेश भर से हर दिन शराब पकडे़ जाने की खबरें मिलती रहती हैं, पुलिस अपना काम कर देती है. सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों के बयान आ जाते हैं और मुस्तैदी से काम करने का संकल्प दोहरा दिया जाता है.
राज्य सरकार शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध पर नियंत्रण की बात भले ही करे, सरकारी आंकडे़ ही इसकी गवाही नहीं देते. विपक्ष बढते अपराध के पीछे राजनीतिक कारण तलाश रहा है तो पुलिस नहीं मानती कि चिंता की कोई बात है. राज्य में घट रही आपराधिक घटनाओं की जानकारी पुलिस फाइलों में दर्ज है. इनपर भी भरोसा करें तो महीना-दर-महीना हत्याएं बढ़ती जा रही हैं.
हत्याओं के अनुमानित आंकड़ें जोड़ दें तो जून तक हजार से अधिक हत्याएं हो चुकी थी. अन्य संगीन वारदातों की भी यही स्थिति है. हालांकि मुख्यमंत्री और डीजीपी दोनों इस तर्क के पीछे छुपना चाहते हैं कि घटनाओं को सनसनी बनाकर पेश किया जाता है. लेकिन सच्चाई यह कि बिहार अपराध के मामले में देश में 23वें नंबर पर है. लेकिन इससे न तो विपक्ष संतुष्ट है और न ही मीडिया और न आम जनता.
अखबारों और टीवी चैनलों पर हत्या और लूट की वारदात का बोलबाला रहता है. ऐसे में अपराध के फॉलोअप, घटना घट जाने के बाद अपराधियों की गिरफ्तारी से ज्यादा जरूरी होता है कि कैसे अपराध को होने से रोका जाए. विपक्ष तो दूर सहयोगी दल भी पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवाल लगातार उठा रहे हैं. बिहार में एक अवकाश प्राप्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुलिस पर बोझ बढता ही जा रहा है.
पुलिस का काम है आपराधिक घटनाओं पर रोकथाम लगाना. जबकि शराब से संबंधित कार्य के लिए ही उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग बनाया गया था. लेकिन अब मद्य निषेध की भी जिम्मेवारी पुलिस पर लाद दी गई है. अब पुलिस गली-मुहल्लों में शराब पीने वालों की मुंह सुंघती चल रही है. जबकि यह काम उसके जिम्मे नही होना चाहिये था. ऐसे में कानून-व्यवस्था में ढिलाई होना लाजिमी है.
पुलिस शराब के चक्कर में घूमेगी तो आपराधियों की पौ-बारह होना तय है. ऐसे में अगर सरकार ही आपराधिक घटनाओं के बदले शराब को प्राथमिकता देगी तो आपराधिक घटनाओं पर नियंत्रण पाना किसे के लिए संभव नही है. भले ही अधिकारी सरकार के सामने यह बात नही रख सकते, लेकिन सच्चाई यही है. जिससे कानून व्यवस्था दुरुस्त होने में मुश्किल हो रही है.
यहां उल्लेखनीय है कि राज्य में शराबबंदी कानून लागू होने के बावजूद हर दिन पुलिस की टीम औसतन 15 हजार लीटर शराब पकड़ती है. इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 45 लाख लीटर से अधिक देसी-विदेशी शराब गई पकड़ी है. इसमें जिला पुलिस के द्वारा विभिन्न जिलों से 38 लाख 72 हजार लीटर, जबकि बिहार पुलिस की मद्य निषेध इकाई के द्वारा छह लाख 56 हजार लीटर शराब बरामद की गई है.
बिहार पुलिस मुख्यालय ने जनवरी से अक्टूबर तक अवैध शराब को लेकर की गई कार्रवाई का विस्तृत ब्योरा जारी किया है. इसमें मद्य निषेध इकाई के द्वारा विशेष छापेमारी में कुल 185 कांड दर्ज किया गया है. इसमें 361 अभियुक्तों की गिरफ्तारी की गई है, जबकि 189 ट्रक व 81 चार चक्का एवं अन्य वाहन जब्त किए गए हैं. इस दौरान आठ लाख 18 हजार 755 रुपये नकद भी बरामद किया गया है.
इसके अलावा जिला पुलिस के द्वारा 12,200 वाहन जब्त किया गया है, जबकि 62,140 अभियुक्तों की गिरफ्तारी की गई है. वहीं, बिहार भाजपा के अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल और सांसद छेदी पासवान बिहार पुलिस की कार्यकुशलता पर सवाल खडे़ कर चुके हैं. ऐसे में नीतीश कुमार भले ही जंगलराज की याद दिला रहे हो, लेकिन खराब हो रही कानून-व्यवस्था से उनकी साख जरूर दांव पर है.