चमकी बुखार से पीड़ित बिहार पर बौनेपन की मार, 48 फीसदी बच्चे हैं इसके शिकार

By एस पी सिन्हा | Published: July 2, 2019 03:08 PM2019-07-02T15:08:05+5:302019-07-02T15:08:05+5:30

प्रदेश के 23 जिले संवेदनशील हैं, जहां कुपोषण के साथ ही बौनेपन ने भी बच्चों को गिरफ्त में लिया है. नीति आयोग को जिला प्रोग्राम कार्यालय से कुपोषित बच्चों के संबंध में भेजी गई रिपोर्ट आंखें खोल देने वाली है. 

Bihar: Children are suffering from malnutrition and dwarfism, 48 percent are children | चमकी बुखार से पीड़ित बिहार पर बौनेपन की मार, 48 फीसदी बच्चे हैं इसके शिकार

चमकी बुखार से पीड़ित बिहार पर बौनेपन की मार, 48 फीसदी बच्चे हैं इसके शिकार

Highlightsबाल कल्याण निदेशालय के आंकडे बताते हैं कि मुजफ्फरपुर में आंगनबाडी केंद्रों को हर माह 6.60 करोड रुपये बच्चों के पोषाहार को भुगतान किया जाता है. केंद्रों पर खर्च होने वाली इस राशि की उपयोगिता जांचने का जिम्मा तीन स्तर पर है.

बिहार में तेजी से बढ़ते कुपोषण और बौनेपन को लेकर केंद्र से प्रदेश सरकार तक सतर्क हो गई है. बिहार के 48 प्रतिशत बच्चे बौनेपन की चपेट में हैं. इससे मुकाबले के लिए तमाम योजनाओं को क्रियान्वित किया गया है, ताकि बिहार के बच्चे स्वस्थ हो जाएं.

वर्ष 2025 तक का लक्ष्य रखा गया है. प्रदेश के 23 जिले संवेदनशील हैं, जहां कुपोषण के साथ ही बौनेपन ने भी बच्चों को गिरफ्त में लिया है. वहीं, नीति आयोग को जिला प्रोग्राम कार्यालय से कुपोषित बच्चों के संबंध में भेजी गई रिपोर्ट आंखें खोल देने वाली है. 

रिपोर्ट में बताया गया है कि जिले के आंगनबाडी केंद्रों में 2.96 लाख बच्चे नामांकित हैं. इनमें से पांच वर्ष तक के कुल 27 हजार बच्चे कुपोषित हैं. यह आंकडा तो केवल आंगनबाडी केंद्र का है, केंद्र के बाहर कुपोषित बच्चों की संख्या का सर्वे होना बाकी है. यह स्थिति तब है जब दशकों से आंगनबाडी केंद्र बच्चों के कुपोषण को दूर करने के अभियान में लगा है.

बाल कल्याण निदेशालय के आंकडे बताते हैं कि मुजफ्फरपुर में आंगनबाडी केंद्रों को हर माह 6.60 करोड रुपये बच्चों के पोषाहार को भुगतान किया जाता है. इतनी राशि से बच्चों का कुपोषण दूर हो रहा है या नहीं, यह बताने वाला कोई नहीं है. केंद्रों पर खर्च होने वाली इस राशि की उपयोगिता जांचने का जिम्मा तीन स्तर पर है. प्राथमिक स्तर पर महिला पर्यवेक्षिका तैनात हैं. इन्हें अपने सेक्टर के सभी केंद्रों का निरीक्षण करना होता है. दूसरे स्तर पर केंद्रों के निरीक्षण का जिम्मा सीडीपीओ को है.

तीसरे स्तर पर इसकी नियमित जांच जिला प्रोग्राम पदाधिकारी को है. सभी को जांच का प्रतिवेदन ऑनलाइन भेजना होता है. लेकिन सरकार की वेबसाइट बताती है कि जिले में दस फीसदी केंद्र का भी निरीक्षण महिला पर्यवेक्षिकाओं ने नहीं किया है. हैरानी की बात तो यह है कि इस वित्तीय वर्ष में अभी तक सीडीपीओ या जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने एक भी केंद्र का निरीक्षण नहीं किया है. ऐसे में बच्चों का न सही, आंगनबाडी केंद्रों से जुडे जिम्मेवारों का कुपोषण जरूर दूर हो रहा है. 
 
वहीं, मुख्य सचिव दीपक कुमार ने पिछले दिनों हुई बैठक में बच्चों में स्टंटेड ग्रोथ को लेकर विस्तार से चर्चा भी की थी. उन्होंने इसकी रोकथाम के लिए निर्धारित सूचकांक एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तय कार्यक्रमों के लगातार अनुश्रवण पर जोर दिया था. उन्होंने समाज कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए गंभीरता से काम करने के निर्देश भी दिये थे. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)-4 के आंकडों पर नजर डालें तो बिहार के बच्चों की सेहत अच्छी नहीं है. इससे सरकार हरकत में आई है.

विशेषज्ञों की मानें तो कुपोषण तो था ही, अब नई समस्या के रूप में बौनापन ने बिहार में पैर पैसारे हैं. बच्चे दुबले-पतले, कमजोर तो हो ही रहे हैं, अब उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई भी नहीं बढ रही. इसकी वजह कई हैं. जैसे - कम उम्र में शादी, पर्याप्त पौष्टिक आहार का नहीं मिल पाना आदि.

इसके कारण मां कमजोर रहती है तो शिशु कैसे स्वस्थ होगा? ऐसी माताओं के शिशु बौनेपन और कुपोषण की चपेट में हैं. राष्ट्रीय पोषण अभियान का मकसद प्रतिवर्ष दो फीसदी की दर से बौनापन, दो फीसदी की दर से कुपोषण, दो फीसदी की दर से दुबलापन और तीन फीसदी की दर से एनीमिया के मरीजों की संख्या में कमी लाना है. 

दरअसल, हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट में बिहार में  शून्य से पांच साल तक के 48.3 फीसदी बच्चों को कुपोषण के चलते बौनेपन का शिकार बताया गया है. साथ ही राज्य में कुल 47.3 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. अधिकारियों की मानें तो सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर पूरा कार्यक्रम तय कर लिया है. 'स्निप' के माध्यम से सात साल का खाका खींचा गया है.

'मिशन मालन्यूट्रिशन फ्री इंडिया' के तहत भी काम हो रहा है. संवेदनशील 23 जिलों में स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर आंगनबाडी केंद्रों के माध्यम से काम किया जा रहा है. इसमें शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के भी पदाधिकारी लगातार नजर रख रहे हैं और अपने स्तर से योजनाओं को सफल बनाने में मदद कर रहे हैं. संवेदनशील 23 जिलों की सभी परियोजनाओं के आंगनबाडी केंद्रों पर सरकार की नजर है.

इन केंद्रों पर विशेष इंतजाम किये जा रहे हैं. सभी आंगनबाडी केंद्रों में प्रत्येक माह के 19 तारीख को अन्नप्राशन (ऊपरी  आहार) कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. कुपोषण के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित जिले इस प्रकार हैं- मधेपुरा, कैमूर, भोजपुर, सारण, सीवान, वैशाली, मुंगेर, जमुई, भागलपुर, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बक्सर, गया, नवादा और नालंदा. 
 
वहीं, राष्ट्रीय पोषण माह के तहत बिहार में सितंबर में आईसीडीएस निदेशालय की ओर से तमाम जिलों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये गये थे. विभाग का दावा है कि इसमें दो करोड से अधिक लोगों की भागीदारी हुई. अधिकारियों की मानें तो गर्भवती महिलाओं और बच्चों में कुपोषण कम करने को लेकर लोगों में जागरूकता बढी है. इसके लिए समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) निदेशालय की देखरेख में सभी जिलों में व्यापक स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. राज्य के करीब 94,000 आंगनबाडी केंद्रों की सेविका और सहायिका सहित 84,000 से अधिक आशा वर्कर का भी सहयोग लिया गया था.

Web Title: Bihar: Children are suffering from malnutrition and dwarfism, 48 percent are children

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