बिहार विधानसभा चुनावः सदन में सवर्ण की संख्या बढ़ी, यादव, कुर्मी और कुशवाहा विधायक कम, जानिए किसकी कितनी हिस्सेदारी
By एस पी सिन्हा | Published: November 13, 2020 04:21 PM2020-11-13T16:21:14+5:302020-11-13T16:22:39+5:30
इस बार 9 सीटों का नुकसान हुआ है. फिर भी 52 की संख्या लाकर यादव अभी भी सबसे उपर हैं. 2015 में 61 यादव विधायक जीत कर आये थे. इनमें सबसे अधिक राजद में 35 हैं. तुलनात्मक रूप में पिछले चुनाव की तुलना में यह संख्या चार फीसदी कम है.
पटनाः बिहार विधानसभा में इस बार पिछड़ी जातियों में शुमार किये जाने वाले यादव, कुर्मी और कुशवाहा विधायकों की संख्या घटी है. सबसे ज्यादा यादव विधायक कम हुए हैं.
पिछली विधानसभा की तुलना में इस बार 9 सीटों का नुकसान हुआ है. फिर भी 52 की संख्या लाकर यादव अभी भी सबसे उपर हैं. 2015 में 61 यादव विधायक जीत कर आये थे. इनमें सबसे अधिक राजद में 35 हैं. तुलनात्मक रूप में पिछले चुनाव की तुलना में यह संख्या चार फीसदी कम है.
चुनाव परिणामों के आकलन के मुताबिक यादव विधायकों में 35 राजद के हैं. भाजपा के सात, जदयू के पांच, तीन वाम दल, वीआइपी और कांग्रेस का एक-एक यादव विधायक चुनाव जीते हैं. 1952 में प्रदेश की राजनीति में यादवों की भागीदारी 7.9 फीसदी थी. 2015 के चुनाव में इनकी भागीदारी करीब 25 फीसदी से कुछ अधिक थी. चुनाव में यादवों को 9 सीटों का हुआ नुकसान पिछली बार 61 थे, अब 52 पर सिमटे.
वहीं, इसबार पिछड़ा वर्ग के विधायकों की हिस्सेदारी में करीब 41 फीसदी की भागीदारी कर इस वर्ग के विधायकों की संख्या 117 से घटकर 101 पर ठहर गई है. 2015 की तुलना में उनके 16 विधायक कम हुए हैं. विधानसभा में दूसरी सबसे अधिक वैश्य जाति के विधायक चुन कर आये हैं, जिसके 24 विधायक जीत कर सदन पहुंचे.
यादव विधायकों की संख्या अब भी 21 फीसदी से कुछ अधिक
विधानसभा में यादव विधायकों की संख्या अब भी 21 फीसदी से कुछ अधिक ही है. इसी तरह दूसरी सबसे बड़ी पिछड़ी जाति कुशवाहा के विधायकों में कमी हुई है. चुनाव में कुशवाहों को विधानसभा में 4 सीटों का हुआ नुकसान है. 2015 की तुलना में उनके विधायकों की संख्या 20 से घटकर 16 हो गई है.
हालांकि, सियासत में कुशवाहों की भागीदारी 65 साल में 4.5 फीसदी से बढ़ कर 2015 में 8 फीसदी और अब 6.58 फीसदी रह गई है. कुर्मी विधायकों की संख्या 2015 की तुलना में 12 से घटकर नौ रह गई है. करीब एक फीसदी की गिरावट हुई है. कुर्मी जाति की 1952 के चुनाव में 3.6 फीसदी भागीदारी थी.
वैश्य विरादरी के विधायकों की संख्या इस बार करीब 10 फीसदी 24
पिछड़ों में शुमार वैश्य विरादरी के विधायकों की संख्या इस बार करीब 10 फीसदी 24 है. पिछली विधानसभा में इनके विधायकों की संख्या 16 है. पिछड़ों में यादवों के बाद विधायकों यह सबसे बड़ी संख्या है. वहीं, सवर्ण जाति की हिस्सेदारी बढ़कर हुई 26.33 फीसदी इस विधानसभा चुनाव में सवर्ण जाति की राजनीतिक हिस्सेदारी में अपेक्षाकृत कुछ इजाफा हुआ है.
कुल 64 विधायक चुने गये हैं. जो 26 फीसदी से कुछ अधिक है. हालांकि 2015 में यह हिस्सेदारी 20 फीसदी के आसपास थी. इस चुनाव में राजपूतों को 8 सीटों का फायदा हुआ है और विधान सभा में इनकी संख्या 20 से बढकर 28 हो गई है. जबकि इस चुनाव में भूमिहारों को 3 सीटों का फायदा हुआ है. विधान सभा में इनकी संख्या 18 से बढ़कर 21 हो गई है.
1952 के विधानसभा चुनाव में यहां सवर्ण जातियों की भागीदारी 46 फीसदी तक रही थी. आंकड़ों के मुताबिक विधानसभा में इस बार दलित विधायकों की संख्या 39, अति पिछडी जातियों के विधायकों की संख्या 22 और मुस्लिम विधायकों की संख्या 20 है. इसी तरह दलित 16, अतिपिछड़ा 13 और मुस्लिमों की विधायिका में भागीदारी 8 फीसदी के आसपास है. हालांकि, मुस्लिम और दलित वर्ग के संख्या कमोबेश इतनी ही रही है. अतिपिछड़ा वर्ग की भागीदारी 13 फीसदी के आसपास है, जो अपेक्षाकृत कम है.