Bihar Elections 2020: महिला और साइलेंट वोटरों पर सबकी निगाहें, कल मतगणना, एनडीए और महागठबंधन में टक्कर
By एस पी सिन्हा | Published: November 9, 2020 08:19 PM2020-11-09T20:19:05+5:302020-11-09T20:20:36+5:30
‘साइलेंट वोटर्स’ और महिलाओं के वोट पर ही बिहार मेम सरकार का भविष्य तय होना है. अगर ऐसा होता है तो इस सूरत में चुनाव परिणाण चौंकाने वाले होंगे और सरकार एनडीए की बनेगी. अनुमान लगाया जा रहा है कि एनडीए को 41 फीसद, महागठबंधन को 31 फीसद और अन्य को 28 फीसद महिलाओं का वोट मिल सकता है.
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम कल 10 नवंबर को निकलने वाला है. इसमें सबसे बड़ी बात यह भी है कि इस बार के चुनाव में पहले से ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया गया है.
अगर महिलाएं अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो विधानसभा में उनकी उपस्थिति भी पहले से ज्यादा बढ़ने के अनुमान हैं. ऐसे में अगर एनडीए महिलाओं का एकमुश्त वोट मिलता है तो एग्जीट पोल की बातें गलत साबित हो जायेंगी. इसके अलावा‘साइलेंट वोटर्स’ के द्वारा भी एनडीए को वोट दिये जाने की चर्चा है. शायद यही कारण है कि एनडीए और नीतीश कुमार का खेमा इस बात को लेकर आश्वस्त है कि नतीजे आने के बाद सरकार उनकी ही बनेगी.
जानकारों के अगर मानें ‘साइलेंट वोटर्स’ और महिलाओं के वोट पर ही बिहार मेम सरकार का भविष्य तय होना है. अगर ऐसा होता है तो इस सूरत में चुनाव परिणाण चौंकाने वाले होंगे और सरकार एनडीए की बनेगी. अनुमान लगाया जा रहा है कि एनडीए को 41 फीसद, महागठबंधन को 31 फीसद और अन्य को 28 फीसद महिलाओं का वोट मिल सकता है.
नीतीश कुमार ने बिहार में महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं और सात निश्चय योजना में बहुत काम किए जाने का ऐलान किया है. इसका असर महिलाओं के वोट पर देखा जा सकता है. महिलाएं भले मुखर न हों, लेकिन एनडीए के पक्ष में वोट कर सकती हैं.
महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा भागीदारी निभाई है, जिससे एनडीए में खुशी है
इस बार चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा भागीदारी निभाई है, जिससे एनडीए में खुशी है और उसे लगता है कि महिलाओं का वोट उसे जिताने में कारगर होगा. कारण कि नीतीश सरकार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल, ग्रेजुएशन करने वाली लड़कियों को 55 हजार का ग्रांट, पंचायत में महिलाओं को 50 फीसद का आरक्षण और सरकारी नौकरी में 35 फीसद कोटा जैसी योजनाएं एनडीए के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकती हैं.
इसके अलावे छात्राओं के लिए नीतीश सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जिससे स्कूल में छात्राओं की हाजिरी बढ़ी है. ऐसे में यह उम्मीद लगई जा रही है कि एनडीए को स्कूल जाने वाली लड़कियों के घरवाले इन योजनाओं को ध्यान में रखते हुए वोट जरूर किया होगा. नीतीश कुमार ने अपनी अंतिम रैली पूर्णिया के धमदाहा में लेसी सिंह के लिए की थी.
उन्होंने लेसी सिंह के हाथ में माला देते हुए जीत का आशीर्वाद दिया था और जनसभा में जुटी महिलाओं से जीत का आश्वासन मांगा था. महिलाओं ने भी एक सुर में इस पर हामी भरी थी. इसके साथ ही बिहार के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो चुपचाप मतदान करता है. ऐसे लोग ‘साइलेंट वोटर्स’ कहलाते हैं. ऐसे में एनडीए का मानना रहा है कि ऐसे मतदाता किसी ओपिनियन पोल या एग्जिट पोल में अपनी बात नहीं रखते, लेकिन वोट से अपनी राय जाहिर करते हैं.
राजनीतिक पंडित ऐसे वोट की ताकत का अंदाजा नहीं लगा पाते
ऐसे मतदाता सार्वजनिक तौर पर अपनी बात नहीं रखते, जिससे राजनीतिक पंडित ऐसे वोट की ताकत का अंदाजा नहीं लगा पाते. ये मतदाता हर हाल में एनडीए को वोट देते हैं, नेतृत्व चाहे किसी के हाथ में रहे. इसमें जदयू के भी समर्थक हैं और भाजपा के भी. ये वो लोग हैं जो बिहार में विकास देखते हैं और लालू राज के 15 साल और नीतीश राज के 15 साल की तुलना करते हैं. इसके अलावे भाजपा के मतदाता ऐसे हैं, जो हिंदुत्व के नाम पर एनडीए को वोट देते हैं. यही कारण है कि कई रैलियों और जनसभाओं में राम मंदिर और 370 का मुद्दा उठा. प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी की रैलियों में उमडी भीड भी इस बात की ओर इशारा करती है.
यहां उल्लेखनीय है कि पंचायती राज में 50 प्रतिशत आरक्षण के बाद स्थिति बदल रही है. विधानसभा चुनाव में भी महिलाएं अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करा रही हैं. महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी काफी बढा है. इस साल के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. इसबार 15 पार्टियों ने 370 महिलाओं को टिकट दिया है. 2010 के चुनाव में 307 में 34 महिलाएं जीती थीं. 2015 के चुनाव में 270 महिला प्रत्याशियों में 28 ने जीत हासिल की थी.
दूसरे चरण में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा था
सबसे बड़ी बात यह है दूसरे चरण में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा था. हर चरण में महिलाओं का मतदान प्रतिशत कमोबेश पुरुषों के मतदान प्रतिशत के करीब रहा है. बिहार चुनाव में अगर महिलाओं की भागीदारी की बात करें तो 1967 में 318 सीटों पर 45 महिलाएं मैदान में उतरी थीं. इसमें एक ने भी जीत हासिल नहीं की.
इसके पहले 1952, 1957, 1962, 1967 और 1969 में महिलाएं जीत चुकी हैं. 1967 में 318 सीटों पर 55 महिलाओं ने नामांकन किया था. इसमें 45 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था. 28 महिला प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. जबकि, 17 महिला प्रत्याशी जमानत बचाने में सफल रही थीं. लेकिन, चुनाव में जीत किसी को भी नसीब नहीं हुई थी. इसतरह से देखा जाये तो बिहार में सरकार बनाने की चाभी महिलायों और साइलेंट वोटर्स’ के पास में है, उन्होंने जिधर बटन दबाया होगा, राज उसी का होगा.