बिहार चुनावः पीएम मोदी की अपील, सत्ता के करीब पहुंचे सीएम नीतीश, लोजपा ने दिया जदयू को झटका
By एस पी सिन्हा | Published: November 11, 2020 12:04 AM2020-11-11T00:04:46+5:302020-11-11T00:06:44+5:30
भाजपा बडे़ भाई के रूप में उभरी है तो जदयू का बड़ा झटका लगा है. वहीं, रूझानों में जदयू तीसरे नंबर पर बनी हुई है. ऐसे में इस चुनाव में भाजपा को मजबूती मिलती दिख रही है. पूरे महागठबंधन पर भाजपा भारी साबित होती दिख रही है.
पटनाः बिहार में ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि वोटों की गिनती में भाजपा अपने सहयोगी दल जदयू से आगे हो गई है. बिहार में एनडीए सरकार आने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन लगातार सुधरा है.
अब भाजपा बडे़ भाई के रूप में उभरी है तो जदयू का बड़ा झटका लगा है. वहीं, रूझानों में जदयू तीसरे नंबर पर बनी हुई है. ऐसे में इस चुनाव में भाजपा को मजबूती मिलती दिख रही है. पूरे महागठबंधन पर भाजपा भारी साबित होती दिख रही है.
बिहार में अधिक सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही भाजपा का मतदान प्रतिशत में भी वृद्धि कर रही है. साथ ही जमानत जब्त होने वाले प्रत्याशियों की संख्या भी घट रही है. सीटों के नफा-नुकसान की बात करें तो भाजपा इस बार बिहार में बड़ी भूमिका में दिख रही है, जबकि जदयू को बड़ा नुकसान हुआ है.
जदयू को इस बार सबसे बड़ा नुकसान लोजपा से मिला
जदयू को इस बार सबसे बड़ा नुकसान लोजपा से मिला है. लोजपा ने जदयू का वोट काटा है. हालांकि चिराग पासवान शुरू से बोल रहे थे कि उनकी लडाई जदयू से है न कि भाजपा से. वैसे लोजपा को भले सीटों का फायदा न हुआ हो, लेकिन वोट शेयर में भारी बढ़ोतरी देखी जा सकती है. जबकि नीतीश कुमार को चेहरा मानकर चुनाव लड़ने वाली भाजपा अब बडे़ भाई के रूप में दिखाई दे रही है.
चुनाव नतीजों के बाद एनडीए की सरकार में साफ तौर पर दबदबा दिखाई देगा. ऐसे में अब देखने वाली बात यह भी होगी कि एनडीए की सरकार बनी तो कैबिनेट में भाजपा की कितनी दखल होगी. हालांकि इन सभी बातों पर चर्चा तो चुनाव नतीजों के बाद शुरू होगा, लेकिन बडे़ भाई के रूप में पहली बार बिहार में बीजेपी नए समीकरण पर विचार जरूर करेगी,
बिहार में एनडीए की जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं का जनता को मिले लाभ को माना जा रहा है. उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन वितरण हो या पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को मिली सहायता या फिर प्रधानमंत्री आवास योजना से गरीबों को मिले घर ने मोदी की लोकप्रियता को बरकरार रखा है. खासकर महिला मतदाताओं में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बहुत अधिक है. एनडीए में पार्टी वाइज सीटों को देखने से भी यह साफ हो जाता है.
महागठबंधन की ओर से सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाना बनाया गया
इसके साथ ही महागठबंधन की ओर से सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाना बनाया गया, जबकि भाजपा की पूरी लीडरशिप ने बार-बार साफ किया कि भाजपा की सीटें कम हो या ज्यादा नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार में नयी सरकार बनेगी. हालांकि चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आए बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ एक माहौल बनाने में कामयाब होता गया. पहले चरण के चुनाव में इसका असर भी दिखा और भोजपुर और मगध क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवार आगे रहे.
फिर आया दूसरा और तीसरा चरण जब प्रधानमंत्री मोदी ने चंपारण, सीमांचल और मिथिलांचल में चुनावी रैलियां कीं. इस दौरान उन्होंने साफ कहा कि हमें बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही चाहिए. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की बार-बार की अपील ने चुनावी फिजा ही बदल दी और एनडीए के पक्ष में रुख फिर से मुड गया.
जानकार बताते हैं कि दूसरे चरण में जहां एनडीए ने मामला पलटा
जानकार बताते हैं कि दूसरे चरण में जहां एनडीए ने मामला पलटा, वहीं तीसरे चरण के मतदान से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार की जनता को संबोधित करते हुए एक चिट्ठी लिख डाली. इसमें प्रधानमंत्री ने एनडीए पर भरोसा बनाए रखने और राज्य के विकास के लिए नीतीश सरकार को चुनने की अपील की.
यहां बता दें कि भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र ने चार दिनों में अलग-अलग स्थानों पर 12 चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया. उनकी कुल 12 सभाओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार छह जगह साथ रहे और प्रधानमंत्री मोदी ने हर सभा में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार के लिए वोट मांगे. प्रधानमंत्री मोदी की चार दौरों में 12 चुनावी सभाओं में 110 सीटों को कवर किया गया था. चुनावी रुझानों और परिणामों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार का बडा असर दिखा है और जिन 110 सीटों पर उन्होंने प्रचार किया वहां की 64 सीटों पर एनडीए या तो जीत चुका है या आगे चल रहा है.
ऐसे में यह साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी की अपील ने चुनावी माहौल बदल दिया और एनडीए के लिए सम्मानजनक स्थान बरकरार रखा. हालांकि ऐसा नहीं है कि 15 सालों से सत्ता में काबिज नीतीश कुमार से लोगों में नाराजगी नहीं है. लोग एक तरफ अच्छी सडकों और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से खुश हैं, लेकिन एक बडा वर्ग भ्रष्टाचार, शराबबंदी की विफलता और रोजगार के मोर्चे पर फेल होने की वजह से नीतीश कुमार को सत्ता से हटाना चाहता था. लेकिन ऐसे मतदाताओं में से अधिकतर ने मोदी को ध्यान में रखकर एनडीए को वोट किया.
इसतरह से चुनाव परिणामों में साइलेंट वोटर्स के साथ प्रधानमंत्री मोदी का जलवा दिखा. बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोगों में चुनाव परिणाम को लेकर संशय था. कोई भी राजनीतिक विश्लेषक यह आकलन नहीं कर पा रहा था कि बिहार में क्या फिर ‘नीतीशे सरकार’ बनेगी या बिहार तेजस्वी भवः होगा?
चुनाव परिणाम के शुरुआती रुझानों में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनते दिखाई दी, तो बाद में रुझानों में नीतीश कुमार की सरकार बनती दिखाई दे रही है और यदि बहुत ज्यादा उलटफेर नहीं हुआ, तो चौथी बार बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बननी लगभग तय दिख रही है. चुनाव परिणाम में साइलेंट व महिला मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई है. उल्लेखनीय है कि बिहार में तीन चरणों के मतदान में इस वर्ष महिला मतदाताओं की संख्या 59.69 प्रतिशत व पुरुष मतदाताओं की 54.68 फीसदी थी.
तीनों चरणों में हुए मतदान के दौरान महिलाएं खुल कर निकली थी और चुनाव परिणाम पर उनका असर दिख रहा है. इसके साथ ही एक वर्ग का मतदाता पूरी तरह से साइलेंट था. उसके मतदान का असर भी चुनाव परिणाम के रूझान में दिख रहा है. हालांकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ने बिहार के युवाओें में नयी आस दिखाई थी.
10 लाख युवकों को नौकरी देने का वादा किया था. बिहार में मूलभूत सुविधाएं विकसित करने, पलायन को रोकने सहित कई विकास के वादे किए थे, लेकिन इसके बावजूद लालू प्रसाद यादव के शासन काल के दौरान विपक्षी पार्टियों द्वारा उठाए गए जंगल राज के कडवे सच को बिहार की जनता की बुरी यादों को ताजा कर दिया और इसका असर चुनाव परिणाम में दिख रहा है.