Bihar Elections 2020: बिहार में राजद और जदयू के आगे नतमस्तक भाजपा और कांग्रेस, जानिए 1990 से इतिहास
By एस पी सिन्हा | Published: November 9, 2020 03:49 PM2020-11-09T15:49:21+5:302020-11-09T15:50:44+5:30
वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक कोई भी राष्ट्रीय पार्टी राज्य में अकेले सरकार नहीं बना पाई है, जबकि बिहार की पड़ोसी राज्यों झारखंड व यूपी में राष्ट्रीय पार्टियों का भी दबदबा रहा है और इनकी सरकारें भी बनती रही हैं.
पटनाः बिहार में क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के आगे सभी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां नतमस्तक दिखीं. भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां इन क्षेत्रीय दलों के पीछे खड़ा रहकर अपना वजूद बचाये रखने को मजबूर हुई हैं.
सत्ता तक जाने के लिए राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना पड़ रहा है. वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक कोई भी राष्ट्रीय पार्टी राज्य में अकेले सरकार नहीं बना पाई है, जबकि बिहार की पड़ोसी राज्यों झारखंड व यूपी में राष्ट्रीय पार्टियों का भी दबदबा रहा है और इनकी सरकारें भी बनती रही हैं.
वर्ष 1990 के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टी जनता दल ही सबसे बड़ी पार्टी थी
वर्ष 1990 के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टी जनता दल ही सबसे बड़ी पार्टी थी और इस दौरान पार्टी को 122 सीटें मिली थीं. कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, इस दौरान उसे 71 सीटें मिली थी. उस समय भाजपा को मात्र 39 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. उसके बाद वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में भी जनता दल बड़ी पार्टी रही थी, उसे 167 सीटें मिली थीं.
उस समय भी भाजपा को 41 और कांग्रेस को 29 सीटों से संतोष करना पड़ा था. फिर वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 21 और राजद ने 124 सीटें मिल गई. भाजपा 67 सीट और कांग्रेस को 23 सीट से मिली. 1995 के विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस के पास मात्र 26 सीटें और 2010 में मात्र चार सीटों पर संतोष करना पड़ा, मगर फिर जब कांग्रेस को 2015 में महागठबंधन की क्षेत्रीय पार्टियां जदयू व राजद का सहारा मिला तो पार्टी 27 सीटें चली आई.
भाजपा तब से लेकर अब तक 100 सीटों का आंकड़ा नहीं पार कर पाई
वर्ष 1990 के चुनावी परिणाम को देखें तो भाजपा तब से लेकर अब तक 100 सीटों का आंकड़ा नहीं पार कर पाई है. वर्ष 1990 में भाजपा को 39 सीटों और 2015 में 53 सीटें मिली थीं. बीच में साल 2010 में भाजपा जब क्षेत्रीय पार्टी जदयू के साथ मिल कर लड़ी तो उसे 91 सीटों पर सफलता मिली थी.
वहीं, दूसरी तरफ 1990 के बाद से अब तक कांग्रेस 30 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. वर्ष 2005 के चुनावी परिणाम के बाद सारा समीकरण बदल गया़ अक्तूबर में आये चुनावी परिणाम में भाजपा 55 और कांग्रेस को मात्र नौ सीटों से संतोष करना पड़ा था. जदयू ने लंबा उछाल लिया. पार्टी को 88 सीटें मिलीं. दूसरे नंबर पर राजद को 54 सीटें आई थीं. फिर 2005 में जदयू व भाजपा की सरकार बनने का फायदा दोनों पार्टियों को 2010 के चुनाव में मिला.
इस चुनाव में भाजपा को 91 और जदयू को 115 सीटें मिल गईं. फिर जब 2015 में दो क्षेत्रीय पार्टी जदयू और राजद के साथ कांग्रेस का समीकरण बना, तो इसका फायदा तीनों पार्टियों को मिली. राजद 80, जदयू 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिल गई और भाजपा को मात्र 53 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. इस हिसाब से देखें तो सूबे के चुनावी गणित में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों का पिछलग्गू बनकर ही रहना पड़ा है.