बिहार विधानसभा चुनावः मगध और भोजपुर में एनडीए बेहाल, कोसी और सीमांचल के साथ तिरहुत ने बचाई लाज, जानिए आंकड़े

By एस पी सिन्हा | Published: November 11, 2020 05:22 PM2020-11-11T17:22:52+5:302020-11-11T17:25:52+5:30

मगध व शाहाबाद यानी कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, गया व नवादा में एनडीए को उम्मीद से काफी कम सीटें ही मिल पाई. इन जिलों की 32 सीटों में से एनडीए को महज छह सीटें ही हासिल हुई हैं.

Bihar assembly elections 2020 Magadha Bhojpur Tirhut NDA Kosi Seemanchal figures bjp jdu nitish kumar | बिहार विधानसभा चुनावः मगध और भोजपुर में एनडीए बेहाल, कोसी और सीमांचल के साथ तिरहुत ने बचाई लाज, जानिए आंकड़े

घाटा जदयू को हुआ है. पार्टी के तीनों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा. (file photo)

Highlightsकैमूर में 2015 में जहां भाजपा ने चारों सीटें जीती थीं, वहीं इस बार वहां एनडीए का खाता तक नहीं खुल सका. वारिसलीगंज से भाजपा की अरुणा देवी ने जीत हासिल की. 2015 में भी वे यहां से जीती थीं.गया जिले में एनडीए के लिए 50-50 का मामला रहा. यहां भाजपा को दो, तो हम को तीन सीटें मिली.

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला है, उसमें उत्तर बिहार और सीमांचल ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन मगध व शाहाबाद यानी कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, गया व नवादा में एनडीए को उम्मीद से काफी कम सीटें ही मिल पाई. इन जिलों की 32 सीटों में से एनडीए को महज छह सीटें ही हासिल हुई हैं.

कैमूर में 2015 में जहां भाजपा ने चारों सीटें जीती थीं, वहीं इस बार वहां एनडीए का खाता तक नहीं खुल सका. उधर, रोहतास व औरंगाबाद में भी ऐसा ही परिणाम मिला. इन दोनों जिलों में भी एनडीए एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. नवादा जिले में महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा है. यहां वारिसलीगंज से भाजपा की अरुणा देवी ने जीत हासिल की. 2015 में भी वे यहां से जीती थीं.

उधर, गया जिले में एनडीए के लिए 50-50 का मामला रहा. यहां भाजपा को दो, तो हम को तीन सीटें मिली. भाजपा ने गुरुआ की सीट गंवा दी, पर वजीरगंज की सीट कांग्रेस से छीन कर मामला बराबर कर लिया. वहीं, हम ने भी तीन सीटें जीत कर एनडीए को बराबरी पर ला दिया. हालांकि, यहां घाटा जदयू को हुआ है. पार्टी के तीनों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा.

मिथिलांचल में इस बार भी विधानसभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाला रहा

वहीं, मिथिलांचल में इस बार भी विधानसभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाला रहा. मिथिलांचल की अघोषित राजधानी दरभंगा जिले की 10 में से नौ सीटों पर एनडीए ने निर्णायक बढ़त बनाये रखा तो मधुबनी में भी एनडीए उम्मीदवार गिनती शुरू होने के साथ लगभग आगे भी रहे.  

उत्तर बिहार के आठ जिलों मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, समस्तीपुर और दरभंगा की कुल 71 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर सीटों पर एनडीए महागठबंधन पर भारी रहा. एनडीए को सबसे अधिक फायदा चंपारण और मिथिलांचल में हुआ है.

पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी और दरभंगा की कुल 39 सीटों में से एनडीए को 34 सीटों पर जीत मिली है. हालांकि वर्तमान सरकार के दो मंत्रियों को हार का मुंह देखना पडा है. राजद की टिकट पर शिवहर से पहली बार किस्मत आजमा रहे आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद चुनाव जीत गये. सबसे ज्यादा चौंकाने वाला परिणाम केवटी से राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी की हार के रूप में आया.

11 सीटों में भाजपा को तीन और जदयू को एक सीट पर जीत मिली

यहां की 11 सीटों में भाजपा को तीन और जदयू को एक सीट पर जीत मिली है. वीआइपी ने भी दो सीट साहेबगंज और बोचहां जीत लिया है. महागठबंधन को पांच सीटों पर जीत मिली है. इसमें तीन राजद और एक कांग्रेस के पास गई है. सकरा से जदयू, मुजफ्फरपुर से कांग्रेस, कांटी, गायघाट, कुढ़नी व मीनापुर से राजद को जीत मिली है. भाजपा को दो सीटों का सीधा नुकसान हुआ, तो दो नई सीटें भी मिल गईं. वीआइपी को दो सीटों का सीधा फायदा हुआ.

पूर्वी चंपारण की 12 सीटों में से एनडीए को नौ और महागठबंधन को तीन पर जीत मिली है. जबकि पश्चिम चंपारण जिले की नौ सीटों में से आठ पर एनडीए और एक पर महागठबंधन विजयी हुआ है. वहीं, सीतामढी जिले की आठ सीटों में से छह एनडीए के पास चली गई हैं. जबकि समस्तीपुर जिले की 10 सीटों में से पांच-पांच दोनों गठबंधनों को मिली हैं. ‍सरायरंजन से जदयू की टिकट पर चुनाव लड़ रहे विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी, हसनपुर से राजद के तेज प्रताप और उजियारपुर से राजद के आलोक कुमार मेहता चुनाव जीत गये हैं.

कोसी-पूर्व बिहार व सीमांचल की सीटों पर कई नतीजे चौंकानेवाले रहे

उधर, कोसी-पूर्व बिहार व सीमांचल की सीटों पर कई नतीजे चौंकानेवाले रहे. एक ओर जहां नेताओं के परिजनों को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा तो दूसरी ओर कई सीटों पर बड़ा उलटफेर हुआ. कोसी के मधेपुरा में एनडीए व राजद का मुकाबला बराबरी का रहा.

मधेपुरा व सिंहेश्वर राजद ने तो बिहारीगंज व आलमनगर सीट जदयू के खाते में गयी है. सहरसा सीट पर आलोक रंजन ने लवली आनंद को हराया. इधर, सीमांचल में एआइएमआइएम ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई. सीमांचल की पूर्णिया, किशनगंज व अररिया में उसके पांच प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की.

विधानसभा उपचुनाव में बिहार की किशनगंज सीट जीत कर अपना खाता खोलनेवाली एआइएमआइएम ने इस बार तीन जिलों में खाता खोला. पूर्णिया के मुस्लिम बहुल अमौर व बायसी, किशनगंज जिला के बहादुरगंज व कोचाधामन तो अररिया के जोकीहाट में जीत दर्ज की. जोकीहाट सीट सबसे चर्चित सीटों में एक था. यहां से वर्तमान विधायक तस्लीमउद्दीन के छोटे पुत्र शाहनवाज आलम का टिकट पार्टी ने काट दिया. बडे़ भाई सरफराज को अपना प्रत्याशी बनाया. शाहनवाज अंत समय में एआइएमआइएम में चले गये और जनता ने उन्हें पसंद किया.

पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी ने पहली बार जीत हासिल की

वहीं, जमुई से पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी ने पहली बार जीत हासिल की. जबकि बांका की कई सीटों पर उलटफेर हुआ. कटोरिया में राजद अपना सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाया. यहां से भाजपा की निक्की हेंब्रम ने जीत दर्ज की. बांका सीट से मंत्री रामनारायण मंडल एक बार फिर अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. दूसरे नंबर पर रहे पूर्व मंत्री जावेद का राजद में जाना भी सफल नहीं हो पाया.

भागलपुर की सात सीटों में पांच पर एनडीए, तो दो सीट पर महागठबंधन का कब्जा रहा. कांग्रेस के दिग्गज सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद पहली बार पिता की सीट पर मैदान में उतरे थे. वे सफल नहीं हो पाये. युवा राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेश कुमार को भी हार का सामना करना पड़ा.

उसीतरह से पटना जिले की 14 सीटों में नौ पर महागठबंधन की जीत हुई. पांच सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा. दो सीटें भाकपा-माले की झोली में आई. वहीं सारण प्रमंडल की सीटों में पंद्रह पर महागठबंधन और बाकी की नौ पर एनडीए की जीत हुई. सीवान जिले की आठ सीटों में भाजपा दो व छह पर महागबंधन का कब्जा रहा.

सारण जिले की 10 सीटों में से सात पर महागठबंधन व तीन पर एनडीए ने सफलता पाई है. ऐसे में अयह माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव परिणाम में महिलाओं के वोट की बडी भूमिका रही. अधिकतर सीटों पर वोट डालने में वे काफी आगे रहीं.

शराबबंदी के मुद्दे पर भी महिलाओं का सपोर्ट एनडीए के साथ था. अति पिछड़ोंऔर महिलाओं का मौन मत एनडीए के लिए वरदान साबित हुआ. सभाओं में भीड़ जुटाने में बाजी मारने के बावजूद महागठबंधन इन मौन मतदाताओं के आगे जिले में पस्त हो गई.

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