बिहार विधानसभा चुनाव में साथ होकर भी क्यों दूर-दूर हैं तेजस्वी यादव और कन्हैया! एक मंच पर नही कर रहे हैं चुनाव प्रचार

By एस पी सिन्हा | Published: October 25, 2020 03:05 PM2020-10-25T15:05:46+5:302020-10-25T15:05:46+5:30

Bihar Assembly Election 2020: बिहार चुनाव में भले ही आरजेडी का भाकपा-माकपा और भाकपा-माले के साथ गठजोड़ है लेकिन अटकलें इस बात की शुरू हो गई हैं कि आखिर दो युवा नेता तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार एक साथ मंच पर अब तक क्यों नजर नहीं आए हैं.

Bihar Assembly Election 2020 Tejashwi Yadav and Kanhaiya far apart not campaigning from same platform | बिहार विधानसभा चुनाव में साथ होकर भी क्यों दूर-दूर हैं तेजस्वी यादव और कन्हैया! एक मंच पर नही कर रहे हैं चुनाव प्रचार

कन्हैया और तेजस्वी यादव एक मंच पर प्रचार के लिए क्यों नहीं आए अब तक (फाइल फोटो)

Highlightsकन्हैया और तेजस्वी यादव के चुनाव प्रचार के लिए अब तक एक मंच पर नहीं आने को लेकर शुरू हुईं अटकलेंमहागठबंधन की पार्टियों में प्रचार को लेकर एक रणनीति नही, वामपंथी दलों के बीच भी एकता नजर नहीं आ रही

बिहार विधानसभा चुनाव में राजद के साथ कांग्रेस पार्टी, भाकपा-माकपा और भाकपा-माले का गठजोड़ है. इस गठजोड़ का मकसद था साथ मिलकर चुनाव लड़ना और सारे दलों के स्टार प्रचारकों को एकजुट कर ताकत दिखाते हुए वोट की गोलबंदी करना. 

वामदलों के स्टार प्रचारक कन्हैया को लेकर तो तेजस्वी यादव, कांग्रेस समेत माकपा और भाकपा-माले कहीं ज्यादी ही परहेज करने में जुटे हैं. इस चुनाव प्रचार से एक बात तो साफ हो गई है कि सभी दलों की चुनाव प्रचार की रणनीति अलग अलग है. वामपंथी दलों के बीच भी एकता नहीं दिखाई दे रही है. 

कन्हैया को लेकर तेजस्वी का डर आज नहीं बल्कि इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी दिखा था जब, तेजस्वी ने जानबुझकर वामपंथी दलों से गठबंधन न करते हुए बेगूसराय लोकसभा सीट से तनवीर हसन को उम्मीदवार बनाया था. 

उस दौरान भी तेजस्वी की मंशा यही थी कि जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष और वामपंथी सनसनी कन्हैया को बेगूसराय के चुनावी मैदान में चारो खाने चित्त कर पॉलिटिकल डेथ दे दिया जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, मोदी लहर में गिरिराज सिंह ने कन्हैया को भारी मतों से हराया जरूर लेकिन, जो राष्ट्रीय छवि बन चुकी थी उसमें कोई कमी नहीं आई. 

कन्हैया और तेजस्वी क्यों हैं दूर-दूर

बेगूसराय की हार भूलकर कन्हैया फिर अपने रास्ते निकल पड़े. इस बार जब वामपंथी दलों ने तेजस्वी को सीएम पद का चेहरा स्वीकार करते हुए राजद के सामने आत्मसमर्पण किया उसके बावजूद कन्हैया का साथ तेजस्वी को स्वीकार नहीं है. 

जानकारों के अनुसार तेजस्वी को कन्हैया से डर सता रहा है कि मंच पर भाषण देने की कला और युवाओं के बीच लोकप्रियता कहीं हम ही पर भारी न पड़ जाये. कुछ लोगों का कहना है कि कन्हैया का सवर्ण जाति से होना साथ ही प्रोग्रेसिव होना यह तेजस्वी के डर का सबसे बडा कारण है. 

यही वजह है, कन्हैया के साथ तेजस्वी मंच साझा नहीं करना चाहते, न ही सोशल मीडिया किसी तरह की भ्रम की स्थिति आने देना चाहते हैं. बेशक, कन्हैया की छवि बिहार से बाहर भी है और साथ ही तेजस्वी यादव से ज्यादा पढे-लिखे भी हैं. 

दूसरी तरफ जहां कन्हैया की राजनीतिक जिंदगी अब तक बेदाग है तो दूसरी तरफ तेजस्वी पर 420 समेत भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं. इसके बावजूद तेजस्वी यादव अपने समीकरण के अनुसार उनके साथ को राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझते हैं और फिर साथ होने से बचते हैं.

आईसी घोष करती रह गईं इंतजार

जेएनयू की छात्र संघ अध्यक्ष आईसी घोष भी इंतजार में बैठी रही, लेकिन उन्हें भाकपा-माले की तरफ से चुनाव प्रचार के लिए बुलावा ही नहीं आया. पहले से यह तय था कि गुरूवार को आईसी घोष को पालीगंज में भाकपा-माले के उम्मीदवार सुमन सौरभ के चुनाव प्रचार में जाना था. 

सभी तैयारी पूरी हो गई थी, इसी वजह से वह इंतजार भी करती रही, लेकिन उन्हें अंत समय में बुलावा नहीं आया. जबकि यह कार्यक्रम पहले से तय था. अलबत्ता, भाकपा-माले राजद के साथ चुनावी प्रचार तो साझा कर रहा है पर वामपंथी स्टार प्रचारकों से परहेज कर रहा है. 

सहयोगी वामपंथी दलों द्वारा किनारा किये जाने के बाद कन्हैया कुमार अब अपनी पार्टी भाकपा उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करेंगे. वे 27 अक्टूबर को विभूतिपुर में अजय कुमार और 29 को पीपरा में राजमंगल प्रसाद और मांझी में डॉ. सतेन्द्र यादव के लिए वोट मांगेगे।

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