बिहार: एग्जिट पोल के सर्वे से अलग बिहार में वोट के प्रतिशत पर भी हो रहा है जोड़-घटाव, मंथन में जुटे हैं सभी दल
By एस पी सिन्हा | Published: November 8, 2020 07:51 PM2020-11-08T19:51:24+5:302020-11-08T22:09:42+5:30
राजनीति के जानकार बताते हैं कि वर्ष 2000 की तुलना में 2005 में वोट कम हुए थे तो सत्ता में बदलाव हो गया था. इसके बाद मतदान प्रतिशत बढ़ा तो सत्ता में बदलाव नहीं हुआ
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव का महासंग्राम खत्म होने के बाद अब अटकलों का दौर शुरू हो चुका है. अब जो एग्जिट पोल के सर्वे आ रहे हैं उसमें कोई महागठंबंधन को सत्ता में पहुंचा रहा है तो कोई एनडीए को. लेकिन सत्ता में कौन आएगा इसका फैसला 10 को नतीजे आने के बाद ही होगा. हालांकि बिहार में इस प्रचलित धारणा से बिल्कुल अलग ट्रेंड है. यहां मतदान प्रतिशत घटता है अथवा बहुत बढ़ता है तो सत्ता में बदलाव होता है. पिछले तीस सालों के आंकडे इसी बात का गवाह हैं.
राजनीति के जानकार बताते हैं कि वर्ष 2000 की तुलना में 2005 में वोट कम हुए थे तो सत्ता में बदलाव हो गया था. इसके बाद मतदान प्रतिशत बढ़ा तो सत्ता में बदलाव नहीं हुआ. इसके बाद 2015 में 56.66 और उससे पहले 2010 में मतदान प्रतिशत 52.67 फीसदी रहा था. जाहिर है कि यह 2000 से अधिक ही रहा. सत्ता के नेचर में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. फिलहाल विधानसभा चुनाव 2020 में मतदान प्रतिशत पिछले तीन चुनावों के कमोबेश बराबर ही रहा है. इस बार मतदान 56 से 57 फीसदी के बीच में ही रहा है. सियासी जानकारों के मुताबिक आंकड़ों के हिसाब से मतदान का यह प्रतिशत बताता है कि दोनों महागठबंधन एवं एनडीए में कांटे की की टक्कर होगी. हालांकि अगर किसी दल को बहुमत मिलता है तो यह एकदम अप्रत्याशित स्थिति होगी.
राजनीतिक पंडितों के अनुसार 1990 में मंडल और दूसरी सियासी बयारों के बीच जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आये थे तो उस समय मतदान का प्रतिशत 62.04 फीसदी था. वहीं, 1995 में मतदान प्रतिशत कमोबेश उतना ही 61.79 और 2000 में मतदान प्रतिशत बढ कर 62. 57 फीसदी रहा. इस तरह राजद बढे हुए मतदान प्रतिशत के बाद भी सत्ता में बनी रही थी. लेकिन जैसे ही 2005 में मतदान का प्रतिशत घटा राजद सत्ता से बेदखल हो गई. 2005 फरवरी के विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत 46.50 फीसदी और इसी साल अक्तूबर में 45.85 प्रतिशत वोट पडे थे. फिलहाल राजनीति में आंकडें कई बार गलत पूर्वानुमान भी देते हैं. यह बात और है कि तीस साल में बढता या स्थिर मतदान प्रतिशत बड़े बदलाव का प्रतीक नहीं देखा गया है. ऐसे में सियसी गलियारे में अभी भी एग्जिट पोल को अपने पुराने तरीके से तौल कर देखने लगे हैं. वैसे भी पिछलीबार यह एग्जिट पोल बिहार में फेल कर गया था. ऐसे में अब सबकी निगाहें मतगणना पर ही टिकी हुई हैं.