'एक राष्ट्र-एक चुनाव' पर भारी मतभेद, 8 राजनीतिक दलों ने बैठक का किया बहिष्कार
By शीलेष शर्मा | Published: June 19, 2019 08:51 PM2019-06-19T20:51:24+5:302019-06-19T20:51:24+5:30
विपक्ष के जो दल बैठक में शामिल हुए उन्होंने एक राष्ट्र-एक चुनाव के विचार को सिरे से खारिज करते हुए दलील दी कि यह विचार पूरी तरह असंवैधानिक है और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है. लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक के बाद साफ किया कि बैठक में मौजूद अधिकांश सदस्यों ने इस विचार का समर्थन किया कि देश में एक साथ चुनाव हों.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक राष्ट्र-एक चुनाव को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक दलों ने विरोध किया। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने साफ किया कि एक राष्ट्र-एक चुनाव उनकी सरकार का एजेंडा नहीं है यह देश का एजेंडा है और इस पर हम विस्तार से चर्चा करने के पक्ष में है. इस चर्चा के लिए उन्होंने एक समिति गठित करने की भी घोषणा की. प्रधानमंत्री का तर्क था कि इससे देश को लाभ होगा. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा, डीएमके, टीएमसी, टीडीपी, टीआरएस, जैसे दल बैठक में शामिल नहीं हुए.
विपक्ष के जो दल बैठक में शामिल हुए उन्होंने एक राष्ट्र-एक चुनाव के विचार को सिरे से खारिज करते हुए दलील दी कि यह विचार पूरी तरह असंवैधानिक है और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है. लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक के बाद साफ किया कि बैठक में मौजूद अधिकांश सदस्यों ने इस विचार का समर्थन किया कि देश में एक साथ चुनाव हों. वामपंथी दलों की आपत्तियों पर उन्होंने सफाई दी यह कहते हुए कि उन्होंने इस विचार का विरोध तो नहीं किया लेकिन उनकी इस बात को लेकर शंकाएं थी कि इस विचार को कैसे लागू किया जाएगा.
इसके विपरीत माकापा के नेता सीताराम येचुरी ने दो टूक कहा कि एक साथ चुनाव का विचार देश में संसदीय प्रणाली की जगह पिछले दरवाजे से राष्ट्रपति शासन लाने की कोशिश है. येचुरी ने याद दिलाया कि पहले देश में एक साथ चुनाव हुए लेकिन संविधान के अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया गया. उनका स्पष्ट मत था कि जब तक अनुच्छेद 356 मौजूद है एक साथ चुनाव इस देश में संभव नही.
राष्ट्रवादी पार्टी के नेता शरद पवार ने भी एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया. उनका तर्क था कि जो व्यवस्था देश में इस समय है उसमें देश में एक साथ चुनाव संभव नही है दरअसल पवार ने वही बात कहीं जो विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनाव कराने को लेकर जो प्रारुप मंत्रालय को सौंपा गया था उसमें साफ कहा गया था कि एक साथ चुनाव कराना वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में संभव नहीं है. उल्लेखनीय है कि 2018 में एक साथ चुनाव कराने की बात सामने आई थी.
उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सरकार के विचार से सहमत नजर आए और उन्होंने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया जबकि सपा के अखिलेश यादव ने कहा कि देश के सामने बहुत से जरुरी मुद्दे है, सरकार ने जो वायदे किए है पहले उनको पूरा करें. उन्होंने सवाल उठाया कि एक साथ चुनाव कराने को लेकर सरकार इतनी जल्दी में क्यों है.
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष राुहल गांधी ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है, इस पत्र का मजमून हालांकि सार्वजनिक नहीं किया है लेकिन सूत्र बताते है कि राहुल ने इस मुद्दे पर संसद में चर्चा कराये जाने की मांग की है. कांग्रेस ने आज इसी बात को दोहराते हुए आरोप लगाया कि सरकार और भाजपा दोहरे मापदंड अपना रही है. पार्टी के प्रवक्ता गौरव गोगोई ने कहा कि कांग्रेस चुनाव प्रक्रिया में सुधार के पक्ष में है, पहले सरकार गुजरात में राज्यसभा के चुनाव एक साथ कराए और चुनावों में ईवीएम की जगह मत पत्रों का इस्तेमाल करें.
गोगोई का तर्क था कि सरकार अपनी सुविधा के अनुसार फैसलों को तोड़ती है और अपनाती है. बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा राजनाथ सिंह, अमित शाह, जे.पी. नडडा, शरद पवार, सीताराम येचुरी, डी.राजा, जगन मोहन रेड्डी, महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, सुखबीर बादल, नीतिश कुमार, सहित दूसरे नेता मौजूद थे.