भारद्वाज, फरेरा, और गोंजाल्विस भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य, इन्हें जमानत कभी नहीं

By भाषा | Published: October 15, 2019 06:05 PM2019-10-15T18:05:01+5:302019-10-15T18:05:27+5:30

न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने तीनों कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया और कहा कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया सबूत हैं। कोरेगांव भीमा में 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एल्गार परिषद के कार्यक्रम के कारण इलाके में अगले दिन हिंसा भड़क गयी थी।

Bhardwaj, Ferreira, and Gonzalvis are active members of the CPI (Maoist), they never get bail | भारद्वाज, फरेरा, और गोंजाल्विस भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य, इन्हें जमानत कभी नहीं

न्यायमूर्ति कोतवाल ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन का एक मकसद हथियारों का इस्तेमाल करके तथा लोगों की सेना बनाकर शत्रुओं को पराजित करना था।

Highlightsपुणे पुलिस ने जनवरी, 2018 में तीनों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम के उद्देश्य और प्रभावों को जानने तक सीमित था।

माओवादियों के साथ संपर्क और पुणे के कोरेगांव-भीमा में जाति आधारित हिंसा को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वर्नन गोंजाल्विस को बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को जमानत देने से इनकार कर दिया।

अदालत ने कहा कि वे प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने तीनों कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया और कहा कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया सबूत हैं। कोरेगांव भीमा में 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एल्गार परिषद के कार्यक्रम के कारण इलाके में अगले दिन हिंसा भड़क गयी थी।

पुणे पुलिस ने जनवरी, 2018 में तीनों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। पहले जांच का दायरा 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम के उद्देश्य और प्रभावों को जानने तक सीमित था। अदालत ने कहा, ‘‘जांच में लोगों को जुटाकर सशस्त्र क्रांति के जरिये राजनीतिक पकड़ हासिल करने की बड़ी साजिश का खुलासा करने की अपेक्षा थी। न्यायमूर्ति कोतवाल ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन का एक मकसद हथियारों का इस्तेमाल करके तथा लोगों की सेना बनाकर शत्रुओं को पराजित करना था।

अदालत ने कहा, ‘‘संगठन ने प्रदेश के सशस्त्र बलों को अपना दुश्मन माना।’’ महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने पिछले साल अगस्त में आरोपियों को पहले नजरबंद किया था। पुणे की एक सत्र अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिकाएं खारिज किये जाने के बाद 26 अक्टूबर को उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। तभी से तीनों कार्यकर्ता जेल में हैं।

उन्होंने पिछले वर्ष उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। पुलिस ने तीनों आरोपियों और कई अन्य के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) तथा भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है।

अदालत ने फरेरा के संदर्भ में कहा कि उनका एक काम प्रतिबंधित संगठन के लिए चंदा उगाही करना, उसे संभालना और बांटना था। संगठन में उनकी अहम जिम्मेदारी थी। अदालत ने कहा कि गोंजाल्विस का प्रतिबंधित संगठन के लिए कैडर भर्ती करना और इसका सक्रिय सदस्य होना भी यूएपीए कानून के प्रावधानों के तहत दंडनीय है।

भारद्वाज के संबंध में अदालत ने कहा कि वह भी संगठन की सक्रिय और वरिष्ठ सदस्य थीं। पुलिस ने पहले आरोप लगाया था कि आरोपियों के माओवादियों के साथ संपर्क थे और वे सरकार को हटाने के मकसद से काम कर रहे हैं। हालांकि, तीनों आरोपियों ने दावा किया कि पुलिस के इस दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वे और अन्य कार्यकर्ता सरकार के खिलाफ युद्ध जैसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। 

Web Title: Bhardwaj, Ferreira, and Gonzalvis are active members of the CPI (Maoist), they never get bail

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