शॉर्ट सर्किट नहीं, मानवी गलतियों ने ली भंडारा में 10 बच्चों की जान, अधिकारियों को बचाने का हो रहा प्रयास!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 11, 2021 07:23 AM2021-01-11T07:23:12+5:302021-01-11T07:47:01+5:30
Bhandara Fire: भंडारा अस्पताल अग्निकांड में अब एक के बाद एक लापरवाही के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि इस मामले में अधिकारियों को बचाने का प्रयास हो रहा है. इस बीच जांच समिति के अध्यक्ष पद से स्वास्थ्य संचालक को हटाया गया है.
भंडारा/नागपुर: भंडारा जिला अस्पताल में शनिवार की सुबह हुए अग्निकांड का कारण शॉर्ट सर्किट को बताया जा रहा है लेकिन, स्पष्ट हुआ है कि प्रत्यक्ष रूप में मानवी गलतियों की वजह से ही 10 बच्चों की जान गई है.
इस बीच, घटना के दोषियों को बचाने का प्रयास किए जाने का पता चला है. जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे द्वारा घोषित की गई छह सदस्यीय जांच समिति के अध्यक्ष पद से स्वास्थ्य संचालक डॉ. साधना तायड़े को महज 24 घंटे में हटाकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने नागपुर के संभागीय आयुक्त डॉ. संजीव कुमार को जिम्मेदारी सौंप दी.
वहीं, मुख्यमंत्री ठाकरे ने रविवार को जिला अस्पताल का दौरा किया और हादसे में जान गंवाने वाले बच्चों के माता-पिता से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दी.
पुलिस कार्रवाई के बजाय गठित की जांच समिति
दोषी अधिकारी-कर्मचारियों को पुलिस कार्रवाई से बचाने के लिए ही जांच समिति गठित किए जाने का संदेह व्यक्त किया जा रहा है. आम तौर पर, पुलिस ऐसा कुछ होने पर सबसे पहले दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करती है, लेकिन यहां आनन-फानन में जांच समिति गठित करने से पुलिस कार्रवाई पर लगाम लग गया है.
भंडारा अस्पताल अग्निकांड में अब एक के बाद एक लापरवाही का मामला उजागर हो रहा है. आग प्रतिबंधक उपाय के लिए भेजे गए 1,52,44,783 रुपए की लागत के प्रस्ताव पर जिला शल्य चिकित्सक और लोकनिर्माण विभाग की ओर से हस्ताक्षर ही नहीं किए गए थे.
इसलिए स्वास्थ्य सेवा संचालक की तरफ से प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली और वह धूल खाते रहा. डॉ. साधना तायडे ही इसके लिए जिम्मेदार थीं और उन्हें ही जांच समिति की मुखिया बना दिया गया.
लापरवाही ही रही हादसे का कारण
इस घटना पर प्रकाश डालने वाला एक पत्र 'लोकमत समाचार' के हाथ लगा है. इसके अनुसार, भंडारा जिला शल्य चिकित्सक डॉ. प्रमोद खंडाते ने स्वास्थ्य विभाग की संचालक डॉ. साधना तायड़े को आग प्रतिबंधक उपाय योजना के बजट को प्रशासनिक मान्यता व निधि उपलब्ध करा देने का प्रस्ताव भेजा था.
15 सितंबर 2020 को भेजे गए इस प्रस्ताव में जिला शल्य चिकित्सक व लोकनिर्माण विभाग की ओर से हस्ताक्षर ही नहीं किए गए थे.
इसलिए वह प्रस्ताव संचालक ने रोके रखा. यदि किसी निजी अस्पताल में भंडारा जैसी दुर्घटना होती तो अब तक संबंधित डॉक्टरों और अस्पताल के संचालक के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता. लेकिन, हादसे के 48 घंटे बाद भी किसी के खिलाफ कार्रवाई तो दूर कोई मामला भी दर्ज नहीं किया गया है.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अब यह पता लगाने की जरूरत है कि कौन किसे बचा रहा है. वह परिचारिका कौन है? बताया जा रहा है कि जिस यूनिट में हादसा हुआ उसकी जिम्मेदारी संभालने वाली परिचारिका ने कमरे के दरवाजे को बाहर से सिटकनी लगा दी थी.
इस कारण सभी लोग कल से उस परिचारिका को ढूंढने में लगे हुए हैं. लेकिन, स्वास्थ्य महकमा उसका नाम सामने नहीं आने दे रहा है. माना जा रहा है कि इसके पीछे कोई गंभीर वजह हो सकती है.