बाबा आमटे गूगल-डूडल: समाजसेवी बाबा आमटे को समर्पित है आज का गूगल-डूडल, कुष्टरोगियों के लिए निरंतर किया काम
By मेघना वर्मा | Published: December 26, 2018 09:25 AM2018-12-26T09:25:09+5:302018-12-26T09:25:09+5:30
Baba Amte Google doodle: बाबा आमटे ने सिर्फ इंसानों ही नहीं बल्कि पशुओं, वन्य जीवों और नदियों के अस्तित्व के लिए भी आजीवन लड़ते रहे। वन्य जीव के पशुओं और पक्षियों के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया।
आनंदवन की स्थापना करके बहुत से कुष्टरोगियों का जीवन बदलने और उनमें सहूलियत लाने वाले समाजसेवी बाबा आमटे का नाम लोग सम्मान से लेते हैं। देश के प्रख्यात इसी समाज सेवी को सम्मान देने के लिए गूगल ने आज उन्हें अपना गूगल डूडल(Baba Amte Google doodle ) समर्पित किया है। अपना पूरा जीवन कुष्टरोगियों और जरूरतमंदों की सेवा में बिताने के साथ बाबा आमटे ने वन्य जीवन के लिए भी बहुत सारे काम किए हैं। बाबा आमटे की 104वीं जयंती पर गूगल ने उन्हें अपना डूडल समर्पित करके श्रद्धांजलि दी है। आइए आपको बताते है बाबा आपटे की जिंदगी और उनके समाज सेवा से जुड़ी कुछ बातें।
प्यार से बुलाते थे बाबा आमटे
समाजसेवी बाबा आमटे का जन्म एक संपन्न परिवार में 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था मगर प्यार से सभी उन्हें बाबा आमटे के नाम से बुलाते थे। विरासत में मिली जमींदारी के कारण उनका जीवन बहुत अच्छे से बीता। नागपुर विवि से कानून की पढ़ाई करने वाले बाबा आपटे ने गांव का भ्रमण किया। इसके बाद ही उन्हें ये महसूस हुआ कि भारत का ग्रामीण इलाका पिछड़ा हुआ है।
बताया जाता है कि बाबा आमटे का जीवन उस समय पूरा बदल गया जब उन्होंने एक कुष्ट रोगी को अपनी बीमारी के साथ निरंतर बढ़ते देखा। इसी के बाद से उन्होंने ठान ली की वह कुष्ठरोगियों और जरूरतमंदों की सेवा में अपना पूरा जीवन यापन करेंगे। 35 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने आनंदवन नामक संस्था की स्थापना की जो गरीबों की सेवा के लिए हमेशा काम करता रहा।
नर्मदा को प्रदूषण से रोकने के लिए भी काम
आमटे ने सिर्फ इंसानों ही नहीं बल्कि पशुओं, वन्य जीवों और नदियों के अस्तित्व के लिए भी आजीवन लड़ते रहे। वन्य जीव के पशुओं और पक्षियों के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए उन्होंने लोगों को जागरूक भी किया। वहीं नर्मदा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए भी कई तरह के आन्दोलन चलाए।
गूगल ने अपने पोस्ट में कहा, 'वह (आमटे) राष्ट्रीय एकता में यकीन रखने वालों में थे। उन्होंने 1985 में भारत यात्रा शुरू की और 72 वर्ष की उम्र में कन्याकुमारी से कश्मीर तक का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने 3,000 मील से अधिक दूरी की यात्रा की और इस दौरान लोगों को राष्ट्रीय एकजुटता के लिए प्रेरित किया।'
आमटे को पद्मश्री से, मानवाधिकारों क्षेत्र में काम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के पुरस्कार तथा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।