Azadi Ka Amrit Mahotsav: पेश है भारत के 10 ऐसे कम चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय जिनके छोटी-बड़ी योगदान से हमें मिली है 200 साल बाद आजादी

By आजाद खान | Published: June 6, 2022 05:33 PM2022-06-06T17:33:28+5:302022-06-06T17:42:23+5:30

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आपको बता दें कि इस साल भारत के लोग 15 अगस्त को आजादी के 74 साल का जश्न मनाएंगे।

Azadi Ka Amrit Mahotsav 10 lesser known freedom fighters India whose contribution given us independence after 200 years | Azadi Ka Amrit Mahotsav: पेश है भारत के 10 ऐसे कम चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय जिनके छोटी-बड़ी योगदान से हमें मिली है 200 साल बाद आजादी

Azadi Ka Amrit Mahotsav: पेश है भारत के 10 ऐसे कम चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय जिनके छोटी-बड़ी योगदान से हमें मिली है 200 साल बाद आजादी

Highlightsदेश को आजादी दिलाने के लिए बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना योगदान दिया था।लेकिन कुछ स्वतंत्रता सेनानियों केवल इतिहास तक ही सिमित रह गए है।हमें उनके योगदान और बलिदान को भी देखना चाहिए।

Azadi Ka Amrit Mahotsav: इस साल भारत के लोग 15 अगस्त को आजादी के 74 साल का जश्न मनाएंगे। ऐसे में 200 साल की गुलामी से आजादी पाने के लिए संघर्ष को भी याद किया जाएगा। इस आजादी को दिलाने के पीछे कई ऐसे नामचीन हस्तियां है जिनके बारे में हम बचपन से सुनते आ रहे है। लेकिन कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी है जिन्होंने आजादी दिलाने में मदद तो की लेकिन आज उनका नाम सही ठंग से कोई जानता भी नहीं है। 

ऐसे में आज हम कुछ दस ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानने की कोशिश करेंगे जिनकी आम तौर पर चर्चा नहीं होती है। तो चलिए भारत के दस कम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानते है जिनके योगदान के बिना हमें आजादी नहीं मिल सकती थी। 

1. अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali)

अरुणा आसफ अली को जानने वाले उनकी हौंसले की दात देते है। इन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस फैहराया था। इस घटना के बाद उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया था और उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड होना पड़ा था। अंडरग्राउंड होने के बाद भी वह आंदोलन में सक्रिय रही थी और 33 साल की उम्र में वे अग्रेजों को अच्छी टक्कर दे रही थी। 

ब्रिटिश सरकार ने उनकी जानकारी देने वालों को पांच हजार रूपए के इनाम की भी घोषणा की थी। इन सब के बावजूद वह अंडरग्राउंड ही रहकर आंदोलन को मजबूत करती रही थी। आज उनके इश योगदान को बहुत ही कम लोग जानते है। 

2. मातंगिनी हाजरा  (Matangini Hazra)

इसके बाद आजादी के आंदोलन की एक जानी मानी हस्ती का नाम आता है जिन्हें भी उनके आंदोलन के लिए उन्हें गोली खानी पड़ी थी। मातंगिनी हाजरा एक स्वतंत्रता सेनानी जो भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन का एक हिस्सा थी। आपको बता दें कि यह वही मातंगिनी हाजरा है जिन्होंने एक रैली के दौरान अंग्रेजों द्वारा तीन गोली खाने के बाद भी वह डटी रही और हाथ में तिरंगा लिए हुए आगे बढ़ती रही। 

इस दौरान वे हाथ में तिरंगा लिए हुए आखिरी सांस तक वंदे मातरम गाती रही थी। इन्हें भी आज बुहत ही कम लोग जानते है और इन्हें भी वह सम्मान नहीं मिला जो और स्वतंत्रता सेनानियों को मिला है।

3. भीकाजी काम (Bhikaji Cama)

स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट में इनका भी नाम आता है जो हर तरीके से उन्होंने आजादी के आंदोलन में साथ दिया था। कामा एक ऐसी स्वतंत्रता सेनानी थी जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के साथ 20वीं सदी में लैंगिक समानता के लिए खड़े हुए थे। इन्होंने अपने निजी समानों को एक लड़कियों वाले अनाथआलय में दान भी दे दिया था। 1907 के जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन के दौरान भारतीय ध्वज फहराया के लिए भी जाना जाता है। 

4. कनैयालाल मानेकलाल मुंशी (Kanaiyalal Maneklal Munshi)

कनैयालाल मानेकलाल मुंशी जो भारतीय विद्या भवन के संस्थापक भी थे, अपनी आजादी के आंदोलन के लिए जाने जाते है। वे अपने चाहने वालों के बीच कुलपति के नाम से भी जाने जाते है। इन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के एक बड़े समर्थक के रूप में भी जाना जाता है। कनैयालाल को कई बार ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार किया था फिर भी वह देश की आजादी के लिए लड़ते रहे है। 

5. पीर अली खान (Peer Ali Khan)

1857 के विद्रोह वाले प्रसिद्ध मंगल पांडे को तो सभी जानते है लेकिन पीर अली खान को उनके आंदोलन के लिए कोई उतना नहीं जानता है। ये वो स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जो आजादी का स्वर सबसे पहले दिया था और उनके इस काम के लिए ब्रिटिश शासन ने उन्हें 14 अन्य लोगों के साथ फांसी की सजा दे दी थी। भले ही आज इन्हें कोई नहीं जानता हो लेकिन आजादी में इनका भी बरारी का योगदान रहा है। 

6. लक्ष्मी सहगल (Lakshmi Sahgal)

स्वतंत्रता सेनानियों की जब नाम लिया जाए और लक्ष्मी सहगल की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। कैप्टन लक्ष्मी भारतीय सेना के एक अधिकारी थीं जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी अपनी सेवा दी थी। अंग्रेजों द्वारा कैप्टन लक्ष्मी को कई बार बर्मा जो अब म्यांमार बन गया है के जेलों भी भेजी गई थी। 

उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की महिला सैनिकों की अगवाई की और आलाकमान के आदेश पर 'झांसी की रानी रेजिमेंट' नामक एक महिला रेजिमेंट की नींव भी रखी थी। उन्हें इसमें बतौर कप्तान नियुक्त किया गया था। 

7. वेलु नचियारो (Velu Nachiyar)

वेलु नचियारो को उनके आजादी के आंदोलन के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह से पहले ही अपना अग्रेजों के खिलाफ आंदोलन को छेड़ा था। वेलु नचियारो जो कि रामनाथपुरम की पूर्व राजकुमारी थी, इन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुला आंदोलन छेड़ दिया था। इनके इसी योगदान के लिए यह जानी जाती है। 

8. खुदीराम बोस (Khudiram Bose)

स्वतंत्रता सेनानियों में खुदीराम बोस का भी नाम बहुत आता है जिन्होंने किसी की परवाह किए बिना अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। इनके इसी रूप के लिए इन्हें ब्रिटिश शासन ने 18 साल की उम्र में ही इन्हें फांसी की सजा दे दी थी। वे सबसे युवा क्रांतिकारियों के रुप में जाने जाते है। 

9. कुशल कोंवार  (Kushal Konwar)

असम के भारतीय ताई-अहोम स्वतंत्रता सेनानी और सरुपथर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को भी उनके आंदोलन के लिए जाना जाता है। ये एक मात्र ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें अंग्रेजों ने 1942-43 के भारत छोड़ो आंदोलन के अंतिम चरण में फांसी दी थी।

10. बिनय-बादल-दिनेश (Benoy-Badal-Dinesh)

बेनॉय बसु, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता क्रमशः 22, 18 और 19 वर्ष के थे। इन तीनों ने जब यूरोपीय पोशाक पहनी और राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश कर तब के पुलिस महानिरीक्षक कर्नल एनएस सिम्पसन को गोली मारी थी। लेकिन इसके बाद वे भी बच नहीं पाए थे और पकड़े जाने के डर से बिनय ने साइनाइड की गोली खा ली थी और बाकी के दो सेनानियों ने खुद को गोली मार दी थी। 

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