Ayodhya Verdict: नरसिंहराव जिनके कार्यकाल में बाबरी मस्जिद ढही, देश में धर्मनिरपेक्षता की नींव हिल गई

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 10, 2019 05:08 PM2019-11-10T17:08:00+5:302019-11-10T17:08:00+5:30

छह दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई तब नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री थे। क्या वह इस घटना को रोक सकते थे। पिछले 30 साल से यह बहस का विषय है और इसका उत्तर आज तक नहीं मिल सका है।

Ayodhya Verdict: Narasimhav during whose tenure Babri Masjid collapsed, foundation of secularism in the country shaken | Ayodhya Verdict: नरसिंहराव जिनके कार्यकाल में बाबरी मस्जिद ढही, देश में धर्मनिरपेक्षता की नींव हिल गई

दुनिया को अलविदा कह चुके राव पर कई हलकों से आरोप लगाये गए कि उन्होंने इस आंदोलन को रोकने के लिये कोई कार्रवाई नहीं की।

Highlightsनरसिंह राव : आधुनिक भारत के शिल्पकार या वह प्रधानमंत्री जिनके कार्यकाल में बाबरी मस्जिद गिरी।न्यायालय का फैसला आने के बाद एक बार फिर वह राजनेता सुर्खियों में हैं जिसने इस मुद्दे को भुनाकर चुनावी राजनीति में भाजपा की जीत की नींव रखी।

इतिहास भले ही उन्हें देश को उदारीकरण की राह पर ले जाने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद रखे लेकिन पी वी नरसिंहराव को ऐसे भी नेता के रूप में जाना जायेगा जिनके कार्यकाल में बाबरी मस्जिद ढही जिससे देश में धर्मनिरपेक्षता की नींव हिल गई।

छह दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई तब नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री थे। क्या वह इस घटना को रोक सकते थे। पिछले 30 साल से यह बहस का विषय है और इसका उत्तर आज तक नहीं मिल सका है।

अयोध्या मसले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद एक बार फिर वह राजनेता सुर्खियों में हैं जिसने इस मुद्दे को भुनाकर चुनावी राजनीति में भाजपा की जीत की नींव रखी। इनमें भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी शामिल हैं। इस श्रेणी में बतौर प्रधानमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर गांधी कांग्रेसी नरसिंहराव भी शामिल हैं।

पंद्रह बरस पहले इस दुनिया को अलविदा कह चुके राव पर कई हलकों से आरोप लगाये गए कि उन्होंने इस आंदोलन को रोकने के लिये कोई कार्रवाई नहीं की। उनके प्रधानमंत्री रहते कई ऐतिहासिक फैसले लिये गए लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस ने उनके कार्यकाल पर दाग लगा दिया।

उस समय गृह सचिव रहे माधव गोडबोले के अनुसार गृह मंत्रालय ने संविधान का अनुच्छेह 356 हटाकर ढांचे को कब्जे में लेने के लिये व्यापक आपात योजना बनाई थी। गोडबोले ने अपनी किताब ‘ द बाबरी मस्जिद . राम मंदिर डायलेमा : एन एसिड टेस्ट फोर इंडियाज कंस्टीट्यूशन ’ में लिखा है कि राव को लगा कि आपात योजना काम नहीं करेगी और उन्होंने इसे खारिज कर दिया।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस साल की शुरुआत में एक कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि इतिहास राव का आकलन उससे बेहतर तरीके से करेगा, जैसे कि आज तक किया जाता रहा है।

राव के प्रधानमंत्री रहते ही तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की थी। सिंह ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था,‘‘मेरा मानना है कि नरसिंहराव जी देश के महान सपूत थे। इतिहास उनका आकलन अधिक उदारता से करेगा। मुझे यकीन है कि इतिहास आधुनिक भारत के निर्माण में उनके अपार योगदान का उल्लेख करेगा।’’

उनके निधन के पंद्रह बरस बाद भी सवाल उठते हैं कि क्या वह इस मामले में ठोस कार्रवाई कर सकते थे। कइयों ने उन पर कांग्रेस में ‘संघ का आदमी’ होने का आरोप भी लगाया। राव सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने का मन बना चुके थे लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। राजीव गांधी की हत्या हो गई और राव को 1991 से 1996 के बीच प्रधानमंत्री पद सौंपा गया। 

Web Title: Ayodhya Verdict: Narasimhav during whose tenure Babri Masjid collapsed, foundation of secularism in the country shaken

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