Ayodhya Verdict: अयोध्या मामले पर पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड-जमीयत, सुन्नी बोर्ड ने कहा-हम नहीं जाएंगे कोर्ट
By भाषा | Published: November 18, 2019 05:20 AM2019-11-18T05:20:54+5:302019-11-18T05:20:54+5:30
उच्चतम न्यायालय ने गत शनिवार को सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निपटारा कर दिया।
देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ रविवार को पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया। हालांकि, अयोध्या भूमि विवाद मामले के मुख्य वादी इकबाल अंसारी ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की कवायद से दूर रहने का फैसला किया।
जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा ‘‘जमीयत उलमा-ए-हिंद अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर करेगा ।’’ मौलाना मदनी ने एक बयान में कहा, '' माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक हजार से अधिक पृष्ठों वाले निर्णय में मुस्लिम पक्ष के अधिकतर तर्कों को स्वीकार किया। ऐसे में अभी भी कानूनी विकल्प मौजूद हैं। ''
उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान मस्जिद स्थानांतरित नहीं कर सकता इसलिए वैकल्पिक जमीन लेने का सवाल ही नहीं उठता। मदनी ने दावा किया, '' अदालत ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट कर दिया कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर नहीं किया गया और 1949 में मस्जिद के बाहरी हिस्से में अवैध रूप से मूर्ति रखी गयी और फिर वहां से उसे अंदर के गुम्बद के नीचे वाले हिस्से में स्थानांतरित किया गया जबकि उस दिन तक वहां नमाज का सिलसिला जारी था। ’’
मदनी ने कहा, '' अदालत ने भी माना कि 1857 से 1949 तक मुसलमान वहां नमाज पढ़ता रहा तो फिर 90 साल तक जिस मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती हो उसको मंदिर को देने का फैसला समझ से परे हैं।'' जमीयत प्रमुख ने कहा कि पुनर्विचार याचिका पर विरले ही निर्णय बदले जाते हैं लेकिन फिर भी मुसलमानों को न्याय के लिए कानूनी तौर पर उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करना चाहिए।
उन्होंने यह सवाल भी किया, ’’ अगर मस्जिद को ना तोड़ा गया होता तो क्या अदालत मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने के लिए कहती ?’’ इस विषय पर संगठन की ओर से गठित पांच सदस्यीय पैनल ने कानून विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद यह निर्णय लिया। पुनर्विचार याचिका को लेकर संगठन में सहमति नहीं बन पा रही थी, जिस वजह से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया था।
सूत्रों के मुताबिक, संगठन के कई शीर्ष पदाधिकारियों की राय थी कि अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, लेकिन कई पदाधिकारी पुनर्विचार याचिका दायर करने की दिशा में कदम बढ़ाने पर जोर दे रहे थे। सहमति नहीं बन पाने के कारण जमीयत की ओर से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया। इसमें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी, मौलाना असजद मदनी, मौलाना हबीबुर रहमान कासमी, मौलाना फजलुर रहमान कासमी और वकील एजाज मकबूल शामिल थे।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत शनिवार को सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निपटारा कर दिया।
दूसरी ओर अयोध्या भूमि विवाद मामले के मुख्य वादी इकबाल अंसारी ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की कवायद से दूरी बनाई। अंसारी ने कहा, ‘‘पुनर्विचार की मांग करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि नतीजा यही रहेगा। यह कदम सौहार्दपूर्ण वातावरण को भी बिगाड़ेगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी राय बोर्ड के विचारों से अलग है और मैं इसी समय मंदिर-मस्जिद मुद्दे को समाप्त करना चाहता हूं।’’ एआईएमपीएलबी ने अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने और बाबरी मस्जिद के बदले किसी और जगह जमीन न लेने का फैसला किया है। बोर्ड के सचिव जफरयाब जीलानी ने रविवार को यहां हुई बोर्ड की वर्किंग कमेटी की आपात बैठक में लिये गये निर्णयों की जानकारी देते हुए प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि अयोध्या मामले पर गत नौ नवम्बर को दिये गये उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल की जाएगी।
उन्होंने कहा कि बोर्ड की बैठक में यह महसूस किया गया की उच्चतम न्यायालय के फैसले में कई बिंदुओं पर न सिर्फ विरोधाभास है बल्कि यह फैसला समझ से परे और पहली नजर में अनुचित महसूस होता है। बोर्ड के सचिव ने कहा कि पूरी कोशिश की जाएगी कि 30 दिन के अंदर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी जाए। बोर्ड की यह बैठक संगठन के अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में हुई जिसमें 45 सदस्यों ने हिस्सा लिया।
जीलानी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने खुद अपने फैसले में माना है कि 23 दिसंबर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां रखा जाना असंवैधानिक था तो फिर अदालत ने उन मूर्तियों को आराध्य कैसे मान लिया। वे तो हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार भी आराध्य नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा कि जब न्यायालय के आदेश में बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन हिंदू पक्ष को कैसे दे दी गयी? जीलानी ने यह भी बताया कि बोर्ड ने मस्जिद के बदले अयोध्या में पांच एकड़ जमीन लेने से भी साफ इनकार किया है।
बोर्ड का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104 ए और 51(1) के तहत मस्जिद की जमीन के बदले कोई जमीन लेने या उसे अंतरित करने पर पूरी तरह पाबंदी लगाई गई है। लिहाजा बाबरी मस्जिद की जमीन के बदले कोई दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है।
उन्होंने बताया कि बोर्ड का कहना है कि मुसलमान मस्जिद की जमीन के बदले कोई और भूमि मंजूर नहीं कर सकते। मुसलमान किसी दूसरी जगह पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय के दर पर नहीं गए थे बल्कि मस्जिद की जमीन के लिए इंसाफ मांगने गए थे। जीलानी ने न्यायालय के फैसले को चुनौती न देने के उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के निर्णय के बारे में पूछे जाने पर कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों की नुमाइंदगी करता है और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड कोई अकेला पक्षकार नहीं था।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को उम्मीद है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले का एहतराम करेगा। वह मस्जिद के बदले जमीन भी नहीं ले सकता क्योंकि खुद वक्फ एक्ट उसे ऐसा करने से रोकता है। जीलानी ने कहा कि मुसलमान अगर जमीन लेने से मना करते हैं तो यह उच्चतम न्यायालय की अवमानना नहीं मानी जाएगी क्योंकि अदालत ने जमीन देने का आदेश सरकार को दिया है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि अयोध्या से कल लखनऊ आए कुछ मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि अयोध्या जिला प्रशासन उच्चतम न्यायालय के निर्णय के खिलाफ कोई भी बयान नहीं देने का दबाव डाल रहा है। जीलानी ने एक सवाल पर कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अयोध्या मामले पर कोई राजनीति नहीं कर रहा है, बल्कि अपने संवैधानिक हक की लड़ाई लड़ रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक पहले नदवा में होनी थी मगर ऐन वक्त पर इसे मुमताज कॉलेज में आयोजित किया गया।
इस तब्दीली के बारे में पूछे गए सवाल पर जीलानी ने कहा कि लखनऊ जिला प्रशासन ने धारा 144 का हवाला देते हुए नदवा में बैठक न करने की बात कही थी। इस वजह से बैठक की जगह में बदलाव किया गया। उन्होंने कहा कि वह जिला प्रशासन की कड़ी निंदा करते हैं। जहां तक धारा 144 का सवाल है तो यह किसी शिक्षण संस्थान के अंदर होने वाली गतिविधियों पर लागू नहीं होती।