अयोध्या पर आया फैसला ‘बहुसंख्यवाद व भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है : मौलाना मदनी

By भाषा | Published: December 3, 2019 05:56 AM2019-12-03T05:56:35+5:302019-12-03T05:56:35+5:30

मदनी ने कहा, ‘‘मामले में मुख्य दलील यह थी कि एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। न्यायालय ने कहा है कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, लिहाजा मुस्लिमों का दावा साबित हो गया लेकिन अंतिम फैसला इसके उलट था।

Ayodhya verdict justifies 'majoritarianism and mobocracy': Maulana Madani | अयोध्या पर आया फैसला ‘बहुसंख्यवाद व भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है : मौलाना मदनी

अयोध्या पर आया फैसला ‘बहुसंख्यवाद व भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है : मौलाना मदनी

Highlightsप्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सोमवार को दावा किया अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘बहुसंख्यकवाद और भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है।

प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सोमवार को दावा किया कि अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘बहुसंख्यकवाद और भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है। उन्होंने साथ ही कहा कि इस मामले में संविधान में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है न कि इसका मकसद देश के ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ में बाधा डालना है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में पुनर्विचार याचिका दायर करने के कुछ घंटों के बाद मदनी ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय अयोध्या मामले पर दिए गए अपने फैसले को बरकरार रखता है तो मुस्लिम संगठन उसे मानेगा। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मिल्कियत मुकदमे में विवादित फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है, क्योंकि यह फैसला सबूतों और तर्क पर आधारित नहीं है।’’ यह याचिका अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने वाले फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करती है।

इसे सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया और कहा गया कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का आदेश देने से ही ‘पूरा इंसाफ’ हो सकता है। मुख्य वादी उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नौ नवंबर को आए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने का निर्णय किया है जबकि उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और मूल वादी एम सिद्दीक के कानूनी वारिस मौलाना अशहद रशिदी ने 14 बिन्दुओं पर फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया। मदनी ने कहा, ‘‘मामले में मुख्य दलील यह थी कि एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।

न्यायालय ने कहा है कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, लिहाजा मुस्लिमों का दावा साबित हो गया लेकिन अंतिम फैसला इसके उलट था। फैसला हमारी समझ से परे है और इंसाफ नहीं किया गया है। इसलिए हमने पुनर्विचार याचिका दायर की है।’’ जमीयत ने एक बयान में कहा कि पुनर्विचार याचिका में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया है और निर्णय में मौजूद विरोधाभास भी बताए गए हैं। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने नौ नवंबर को ऐतिहासिक फैसले में राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद का निपटारा करते हुए 2.77 एकड़ विवादित जगह राम लला विराजमान को दे दी थी। वहीं, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए कहीं और पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था।

मदनी ने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर करना हर नागरिक का संवैधानिक हक है। उन्होंने कहा, ‘‘ शरीयत के अनुसार भी यह आवश्यक है कि अंतिम समय तक मस्जिद की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया जाए, क्योंकि मस्जिद अल्लाह के लिये समर्पित होती है और समर्पित करने वाले को भी यह अधिकार नहीं रह जाता कि वह इसे वापस ले। इसलिए किसी व्यक्ति या संगठन को यह अधिकार नहीं है कि किसी विकल्प पर मस्जिद छोड़ दे।’’ उन्होंने यह टिप्पणी शीर्ष अदालत द्वारा मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए कहीं और पांच एकड़ जमीन देने के संदर्भ में की है।

सवाल के जवाब में मदनी ने कहा कि पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का उद्देश्य देश की एकता और शांति व्यवस्था को बाधित करना नहीं है, बल्कि संविधान में दिए गए अधिकार का प्रयोग किया गया है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जमीयत इसलिए न्यायालय गई है, क्योंकि अयोध्या पर आया फैसला समझ से परे है और तर्क पर आधारित नहीं है। मदनी ने कहा, ‘‘ फैसला बहुसंख्यकवाद और भीड़तंत्र को न्यायसंगत बनाता है और हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला करता है।

साथ में यह विरोधाभासों से भरा हुआ है। यह समानता के मूल्यों और भाईचारे पर भाषण देता है लेकिन खत्म इन सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए होता है। उन्होंने कहा कि उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से पुनर्विचार याचिका दाखिल न करने से हमारी ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने दावा किया कि फैसला सुनाया गया है लेकिन बाबरी मस्जिद मामले में इंसाफ नहीं किया गया है क्योंकि यह कानून और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। भाषा नोमान नरेश नरे

Web Title: Ayodhya verdict justifies 'majoritarianism and mobocracy': Maulana Madani

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे