Ayodhya Verdict: दिग्विजय सिंह ने कहा- बाबरी मस्जिद तोड़ना कोर्ट ने माना गैरकानूनी, देखते हैं क्या दोषियों को मिलेगी सजा?
By रामदीप मिश्रा | Published: November 10, 2019 01:21 PM2019-11-10T13:21:59+5:302019-11-10T13:21:59+5:30
Ayodhya Verdict: शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया। इधर, दिग्विजय सिंह ने बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया और राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया। इस बीच फैसला आने के एक दिन बाद रविवार (10 नवंबर) को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय ने बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल लोगों को लेकर टिप्पणी की है, जिसमें उन्होंने आरोपियों पर कार्रवाई को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
दिग्विजय सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'माननीय उच्चतम न्यायालय ने राम जन्म भूमि फैसले में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के कृत्य को गैर कानूनी अपराध माना है। क्या दोषियों को सजा मिल पायेगी? देखते हैं। 27 साल हो गए।'
इसके अलावा एक ट्वीट में उन्होंने कहा, 'राम जन्म भूमि के निर्णय का सभी ने सम्मान किया हम आभारी हैं। कांग्रेस ने हमेशा से यही कहा था हर विवाद का हल संविधान द्वारा स्थापित कानून व नियमों के दायरे में ही खोजना चाहिए। विध्वंस और हिंसा का रास्ता किसी के हित में नहीं है।'
बता दें कि शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया और रामलला के हक में फैसला सुनाया। अपना फैसला सुनाते समय कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन वैकल्पित रूप से आवंटित करे।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय इतिहास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस व्यवस्था के साथ ही करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया। इस विवाद ने देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया था।
सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला की मूर्ति को सौंप दिया जाए, हालांकि इसका कब्जा केन्द्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगा।
संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी।