अयोध्या: दलितों की जमीन ट्रस्ट को बेचना अवैध था, राजस्व अदालत ने राज्य सरकार को सौंपी जमीन, तत्कालीन अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश
By विशाल कुमार | Published: January 6, 2022 07:39 AM2022-01-06T07:39:37+5:302022-01-06T07:43:01+5:30
किसी दलित की कृषि योग्य भूमि का किसी गैर-दलित द्वारा अधिग्रहण को प्रतिबंधित करने वाले भूमि कानून से बचने के लिए महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने 1992 में लगभग एक दर्जन दलित ग्रामीणों से बरहटा मांझा गांव में जमीन खरीदने के लिए ट्रस्ट के साथ कार्यरत रोंघई नाम के एक दलित व्यक्ति का इस्तेमाल किया था।
लखनऊ:अयोध्या में सहायक रिकॉर्ड अधिकारी (एआरओ) की अदालत ने 22 अगस्त, 1996 को लगभग 21 बीघा (52,000 वर्ग मीटर) दलित भूमि को महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (एमआरवीटी) को हस्तांतरित करने के सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर दिया है। अदालत ने अब जमीन को राज्य सरकार को सौंप दिया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि अदालत ने ट्रस्ट के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की क्योंकि कोई फर्जीवाड़ा शामिल नहीं था।
एआरओ अदालत का यह फैसला 27 दिसंबर, 2021 को आया था। इससे पहले पांच दिन पहले अखबार ने अपनी एक इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट में बताया था कि स्थानीय विधायक, नौकरशाहों के रिश्तेदार और राजस्व अधिकारियों के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर बनाने का फैसला देने के बाद जमीन खरीदी थी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 दिसंबर, 2021 को ही भूमि सौदों की जांच का आदेश दिया था। इसके बाद जांच रिपोर्ट सौंप दी गई है।
कम से कम पांच मामलों में हितों के टकराव का मामला बनता है क्योंकि जिस महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (एमआरवीटी) ने दलित ग्रामीणों से जमीन खरीदी, उन्हीं अधिकारियों के रिश्तेदारों ने वह जमीन खरीद ली।
ऐसे तीन अधिकारी अयोध्या के विभागीय आयुक्त एमपी अग्रवाल, सितंबर, 2021 तक अयोध्या के मुख्य राजस्व अधिकारी रहे पुरुषोत्तम दास गुप्ता, मार्च, 2021 तक अयोध्या में डिप्टी डीआईजी रहे दीपक कुमार हैं। इनके करीबी रिश्तेदारों ने एमआरवीटी से जमीनें खरीदी हैं।
एमआरवीटी ने एक दर्जन दलित परिवारों से 21 बीघा (करीब 52,000 वर्ग मीटर) का अधिग्रहण किया था। मौजूदा सर्किल रेट पर इसकी कीमत 4.25 करोड़ रुपये से 9.58 करोड़ रुपये के बीच है।
किसी दलित की कृषि योग्य भूमि का किसी गैर-दलित द्वारा अधिग्रहण को प्रतिबंधित करने वाले भूमि कानून से बचने के लिए एमआरवीटी ने 1992 में लगभग एक दर्जन दलित ग्रामीणों से बरहटा मांझा गांव में जमीन खरीदने के लिए ट्रस्ट के साथ कार्यरत रोंघई नाम के एक दलित व्यक्ति का इस्तेमाल किया था।
सहायक रिकॉर्ड अधिकारी भान सिंह ने बताया कि मैंने सर्वेक्षण-नायब तहसीलदार के अगस्त 1996 के आदेश को रद्द कर दिया है क्योंकि यह अवैध था। मैंने इसे आगे की कार्रवाई के लिए एसडीएम (उप-मंडल मजिस्ट्रेट) को भेज दिया है। मैं तत्कालीन सर्वे-नायब-तहसीलदार (कृष्ण कुमार सिंह, अब सेवानिवृत्त) के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर रहा हूं।
हालांकि भान सिंह ने कहा कि चूंकि मुझे इस मामले में कोई जालसाजी नहीं मिली, इसलिए एमआरवीटी और अन्य के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की जा रही है।