अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई मुस्लिम पक्ष की मांग, पांचों दिन होगी सुनवाई
By रामदीप मिश्रा | Published: August 9, 2019 04:12 PM2019-08-09T16:12:37+5:302019-08-09T16:19:38+5:30
Ayodhya dispute: सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा था कि पांचों दिन सुनवाई में शामिल नहीं रह सकता। इस पर कोर्ट ने कहा कि अयोध्या मामले में हफ्ते में पांच दिन सुनवाई होगी। वहीं, ईद की छुट्टी की वजह से सोमवार को कोर्ट सुनवाई नहीं करेगी।
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई सभी पांच कार्य दिवसों को कराने के शीर्ष अदालत के निर्णय पर शुक्रवार को एक मुस्लिम पक्षकार ने आपत्ति दर्ज कराई थी, जिसके बाद शुक्रवार (09 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मां को ठुकरा दिया।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा था कि पांचों दिन सुनवाई में शामिल नहीं रह सकता। इस पर कोर्ट ने कहा कि अयोध्या मामले में हफ्ते में पांच दिन सुनवाई होगी। वहीं, ईद की छुट्टी की वजह से सोमवार को कोर्ट सुनवाई नहीं करेगी।
आपको बता दें कि मुस्लिम पक्षकार ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि यदि इस तरह की ‘जल्दबाजी’ की गयी तो वह इसमें सहयोग नहीं कर सकेंगे। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में शुक्रवार को जब चौथे दिन सुनवाई शुरू की तो मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इस संबंध में अपनी आपत्ति की।
Babri Masjid- Ram Janmabhoomi land dispute case: SC rejecting submissions of senior advocate Dr Rajiv Dhavan representing one of the Muslim parties, seeking a direction that hearing should not be for five days. SC says, "Hearing in the case to be 5 days, from Monday to Friday." pic.twitter.com/XAryLG2cIG
— ANI (@ANI) August 9, 2019
शीर्ष अदालत ने नियमित सुनवाई की परंपरा से हटकर इस मामले की शुक्रवार को भी सुनने का निर्णय किया। शुक्रवार और सोमवार के दिन नए मामलों और लंबित मामलों में दाखिल होने वाले आवेदनों आदि पर विचार के लिये होते हैं।
‘राम लला विराजमान’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने जैसे ही अपनी अधूरी बहस आगे शुरू की तो धवन ने इसमें हस्तक्षेप करते हुये कहा, ‘‘यदि सप्ताह के सभी दिन इसकी सुनवाई की जायेगी तो न्यायालय की मदद करना संभव नहीं होगा। यह पहली अपील है और इस तरह से सुनवाई में जल्दबाजी नहीं की जा सकती और इस तरह से मुझे यातना हो रही है।’’
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। धवन ने कहा कि शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद पहली अपील पर सुनवाई कर रही है और इसलिए इसमें जल्दबाजी नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि पहली अपील में दस्तावेजी साक्ष्यों का अध्ययन करना होगा। अनेक दस्तावेज उर्दू और संस्कृत में हैं जिनका अनुवाद करना होगा। उन्होंने कहा कि संभवत: न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय का फैसला नहीं पढ़ा होगा।
धवन ने कहा कि अगर न्यायालय ने सभी पांच दिन इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया है तो वह इस मामले से अलग हो सकते हैं। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने आपके कथन का संज्ञान लिया है। हम शीघ्र ही आपके पास आयेंगे।’’ इसके साथ ही आगे सुनवाई शुरू हो गयी।
शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को परासरन से सवाल किया था कि जब देवता स्वंय इस मामले में पक्षकार हैं तो फिर ‘जन्मस्थान’ इस मामले में वादकार के रूप में कानूनी व्यक्ति के तौर पर कैसे दावा कर सकता है। संविधान पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के आधार पर)