असम गण परिषद ने बीजेपी से समर्थन लिया वापस, राज्य की सोनेवाल सरकार को कितना खतरा?
By विकास कुमार | Published: January 8, 2019 02:05 PM2019-01-08T14:05:10+5:302019-01-08T20:55:59+5:30
126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में भाजपा असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ मिलकर सरकार चला रही है. भाजपा के पास 60 सीटें हैं तो वहीं एजीपी(असम गण परिषद) के पास 14 सीटें हैं.
नागरिकता संशोधन विधेयक के मामले को लेकर असम में भारतीय जनता पार्टी से उसकी सहयोगी असम गण परिषद ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. पार्टी अध्यक्ष अतुल वोरा ने समर्थन वापस लेने का एलान किया है. सिटीजनशिप बिल को लेकर पिछले कुछ वर्षों से भाजपा और असम गण परिषद में खींचतान चल रही थी. असम गण परिषद के अनुसार नागरिकता संशोधन विधेयक के लागू होने से 'असम एकॉर्ड' या असम समझौता अर्थहीन हो जायेगा.
सर्वानंद सोनेवाल की कुर्सी को कोई खतरा नहीं
126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में भाजपा असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ मिलकर सरकार चला रही है. भाजपा के पास 60 सीटें हैं तो वहीं एजीपी(असम गण परिषद) के पास 14 सीटें हैं. बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट की 12 सीटों के समर्थन के साथ बीजेपी सरकार को अभी भी कोई खतरा नहीं है. लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को झटका लग सकता है. लेकिन सरकार की मजबूरी ये भी है कि वो इस बिल पर अब पीछे नहीं हट सकती क्योंकि इससे पूरे देश में सरकार के हिंदूत्व के मुद्दे को झटका लग सकता है.
अतुल वोरा ने कहा है कि उन्होंने इस मामले में अमित शाह को 2016 में ही चिठ्ठी लिख कर ये बता दिया था कि उनकी पार्टी नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर तैयार नहीं है. नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में एक रैली में कहा था कि उनकी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये हुए हिन्दुओं को राज्य में नागरिकता प्रदान की जाए. असम गण परिषद का विरोध इसी बात पर है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर लिस्ट बनाने को कह दिया है तो फिर मोदी सरकार विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने पर क्यों तुली है.
इसका जवाब लेने के लिए हमें 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के उस रैली का जिक्र करना होगा जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय और खासकर बंगलादेशी हिन्दुओं को सरकार में आने पर नागरिकता देने की बात कही थी. लेकिन असम गण परिषद हमेशा से उनके इस बयान का विरोध करती रही है. उसका कहना है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान हुए 'असम समझौते' के अनुसार राज्य से सभी विदेशी नागरिकों को निकाला जाना था चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम.
भारतीय जनता पार्टी और असम गण परिषद के बीच इस तरह का नोकझोक पहले भी होता रहा है. लेकिन चुनाव से पहले दोनों पार्टियां एक साथ हो जाती हैं. अमित शाह के सामने भी ये चुनौती है कि लोकसभा चुनाव से पहले रूठे इन तमाम लोगों को मनाना होगा. लेकिन इसके साथ ही बीजेपी चुनाव से पहले अपने हिंदूत्व के मुद्दे को भी साधने का भरसक प्रयास करेगी.