ओवैसी ने पूर्व CJI रंजन गोगोई को राज्यसभा में भेजने पर उठाए सवाल, कहा- 'क्या यह 'इनाम है'?
By अनुराग आनंद | Published: March 17, 2020 05:45 AM2020-03-17T05:45:04+5:302020-03-17T05:45:04+5:30
कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विटर पर दो खबरें शेयर करते हुए यह टिप्पणी की।
नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अब राज्यसभा जाएंगे। उनके नाम को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मनोनीत किया है। सोमवार को रंजन गोगोई का नाम मनोनीत होते ही सोशल मीडिया पर रंजन गोगोई का नाम ट्रेंड करने लगा। लोग गोगोई के राज्यसभा में जाने के पक्ष व विपक्ष में अपने विचार रखने लगे। इसी बीच विपक्षी नेताओं ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाया।
AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर रंजन गोगोई के राज्यसभा में भेजने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि 'क्या यह 'इनाम है'? लोगों को जजों की स्वतंत्रता में यकीन कैसे रहेगा? नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ उन्होंने ट्वीट में लिखा कि कई सवाल हैं।
Is it “quid pro quo”?
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 16, 2020
How will people have faith in the Independence of Judges ? Many Questions pic.twitter.com/IQkAx4ofSf
बता दें कि इस मामले में कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने को लेकर सोमवार कटाक्ष किया और कहा कि तस्वीरें सबकुछ बयां करती हैं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विटर पर दो खबरें शेयर करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने जो खबरें शेयर की हैं उनमें से एक में गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किये जाने की है और दूसरी में कहा गया है कि न्यायपालिका पर जनता का विश्वास कम होता जा रहा है।
नमो संदेश -:
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) March 16, 2020
या तो राज्यपाल, चेयरमैन और राज्यसभा।
वरना तबादले झेलो या इस्तीफ़े देकर घर जाओ। pic.twitter.com/fOd7yeH1jf
सुरजेवाला ने कहा, ''तस्वीरें सबकुछ बयां करती हैं।" दरअसल, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने सोमवार को गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। गोगोई 17 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनके सेवानिवृत्त होने से कुछ दिनों पहले इन्हीं की अध्यक्षता में बनी पीठ ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाया था।
बता दें कि रंजन गोगोई जब चीफ जस्टिस थे तो उन्हें हमेशा एक ऐसे जज के तौर पर याद किया जाता रहा जो कड़े फैसले लेने में जरा भी नहीं चूकते थे। सालों से लंबित अयोध्या विवाद का निपटारा हो या असम में NRC लागू करवाने का काम जस्टिस गोगोई ने इन सभी मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक फैसला लिया।
हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि सेवा निवृत होने के बाद राजनीति में आने को लेकर गोगोई के फैसले के विरोध में भी लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए न्यायपालिका की प्रासंगिकता व विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं।
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा ऐसा पहली बार किया गया है, जब किसी सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज को एक राजनीतिक पद दिया गया हो। अब तक न्यायपालिका के कुछ ही सदस्यों को विधायिका में जगह मिली है।
बता दें कि 3 अक्टूबर 2018 को भारत के 46वें चीफ जस्टिस बने गोगोई का कार्यकाल लगभग 13 महीने का रहा था। कम लोगों को यह पता है कि वह असम के मुख्यमंत्री रहे केशब चन्द्र गोगोई के बेटे हैं। उन्होंने 1978 में वकालत शुरु की और इसके बाद 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के स्थाई जज बने थे। 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 23 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।
इसके अलावा, गोगोई तब चर्चा में आए जब उन्होंने कोर्ट में 9 साल से लंबित पड़े अयोध्या विवाद मामले को अपनी बेंच में लेकर फैसला सुनाया। इस मामले में चीफ जस्टिस गोगोई ने 5 जजों की बेंच का गठन किया था और रोज़ाना सुनवाई शुरू कर दी थी। अपने कार्यकाल में जस्टिस गोगोई हमेशा बात को बेवजह लंबा खींचने वाले वकीलों को रोक दिया करते थे। लेकिन 40 दिन चली अयोध्या मामले की सुनवाई में उन्होंने सबको अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया।