लॉकडाउन में कलाकारों के हैं बुरे हाल, मशहूर चंदेरी कपड़ों की बुनाई करने वाले ने कहा- न कच्चा माल है, न काम और न ही मदद

By भाषा | Published: May 20, 2020 08:41 PM2020-05-20T20:41:55+5:302020-05-20T20:41:55+5:30

वह बड़े शहरों में दस्तकार बाजार जैसे विभिन्न मेले में हिस्सा लेते थे और मध्यप्रदेश स्थित अपने घर केवल चंदेरी साड़ी, दुपट्टे और कपड़े बुनने के लिए ही लौटते थे। 

Artists spill pain in lockdown, said - there is neither raw material, no work nor help | लॉकडाउन में कलाकारों के हैं बुरे हाल, मशहूर चंदेरी कपड़ों की बुनाई करने वाले ने कहा- न कच्चा माल है, न काम और न ही मदद

जिंदगी एक ढर्रे पर चल रही थी। बहुत समृद्धि नहीं थी, लेकिन आरामदेह थी। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsकेंद्रीय कपड़ा मंत्रालय की वर्षिक रिर्पोट के मुताबिक वर्ष 2018-19 में 36,798.20 करोड़ रुपये के कपड़ों का निर्यात किया गया। उनकी तरह ही देश के अन्य बुनकर बदहाल हैं।मोहम्मद दिलशाद राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बुनकर हैं और वह उन 68 लाख दस्तकारों में शामिल हैं जिन्हें हाथकरघा उद्योग में रोजगार मिला है। 

नई दिल्ली: दुनियाभर में मशहूर चंदेरी कपड़ों की बुनाई करने वाले मोहम्मद दिलशाद इस लॉकडाउन की वजह से आई मुश्किलों से टूट गए हैं। उनका कहना है कि न तो पैसा है, न तो खाना और न ही कोई काम। लॉकडाउन से पहले दिलशाद की दिनचर्या बहुत व्यस्त थी। वह बड़े शहरों में दस्तकार बाजार जैसे विभिन्न मेले में हिस्सा लेते थे और मध्यप्रदेश स्थित अपने घर केवल चंदेरी साड़ी, दुपट्टे और कपड़े बुनने के लिए ही लौटते थे। 

उन्होंने कहा कि जिंदगी एक ढर्रे पर चल रही थी। बहुत समृद्धि नहीं थी, लेकिन आरामदेह थी। अब यह दूर की कौड़ी लगती है। चंदेरी कपड़ों की बुनाई करने वाले परिवार की चौथी पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले दिलशाद ने कहा कि इस मुश्किल समय में मदद न के बराबर मिल रही है, यहां तक दो वक्त के भोजन की व्यवस्था करनी भी मुश्किल हो रही है। 

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर बताया, ‘‘हम नहीं समझे थे कि लॉकडाउन का मतलब कोई आवजाही नहीं, कोई काम नहीं और कोई पैसा नहीं होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने राशन दिया लेकिन केवल चावल। कैसे कोई केवल चावल खा सकता है?’’ उल्लेखनीय है कि दिलशाद राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बुनकर हैं और वह उन 68 लाख दस्तकारों में शामिल हैं जिन्हें हाथकरघा उद्योग में रोजगार मिला है। 

केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय की वर्षिक रिर्पोट के मुताबिक वर्ष 2018-19 में 36,798.20 करोड़ रुपये के कपड़ों का निर्यात किया गया। उनकी तरह ही देश के अन्य बुनकर बदहाल हैं। मुश्किल के इस दौर में साड़ी और हस्तकलाओं को खरीदना लोगों की प्राथमिता में सबसे नीचे है और इसकी वजह से उनके जैसे कई कलाकार एक-एक रुपये के मोहताज हो गए हैं और परिवार के भरण-पोषण के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। 

बुनकर, कुम्हार, कपड़े की छपाई करने वाले रंगरेज और चित्रकार भारत के 24,000 करोड़ रुपये के उद्योग का हिस्सा है जो पूरे देश में विभिन्न पारंपरिक कलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमे से कई गांवों में काम करते हैं और शहरों में लगने वाले विभिन्न बाजारों, मेलों और बड़े विक्रेताओं के जरिये अपने उत्पादों को बेचते हैं, लेकिन सोमवार को चौथे चरण में प्रवेश कर चुके लॉकडाउन की वजह से यह संभव नहीं हो पा रहा है। सबसे पहले इन कलाकारों के घर में रखा कच्चा माल खत्म हुआ। बाद में मांग भी लगभग खत्म हो गई। अब उन्हें यह नहीं पता कि कब बाजार खुलेंगे और कौन उनके उत्पादों को खरीदेगा। इसकी वजह से भारतीय कलाकार एक-एक रुपये कमाने और परिवार का भरण-पोषण के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 

दिलशाद कहते हैं, ‘‘पहला हफ्ता बहुत मुश्किल नहीं था। हमारे घर पर कच्चा माल था और हम काम जारी रखे हुए थे। समस्या गंभीर तब हुई जब कच्चा माल खत्म हो गया। काम ठप हो गया एवं आमदनी बंद हो गई।’’ दो बच्चों के पिता 34 वर्षीय दिलशाद अपने भाई और परिवार के साथ रहते हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन की शुरुआत में एक गैर सरकारी संगठन ने कुछ पैसों की मदद की। अब वह भी खत्म हो रहा है। उन्होंने बताया कि इलाके के कलाकारों ने इंदौर स्थित बुनकर सेवा केंद्र से भी मदद की अपील की। 

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे अनुरोध पर सूचना दी गई कि मामले को उच्च अधिकारियों को भेजा गया है लेकिन अबतक जवाब नहीं आया है। हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि राशन नहीं है।’’ दस्तकारों की गैर लाभकारी संस्था दस्तकारी हाट समिति की जया जेटली ने कहा कि वह इस क्षेत्र के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। 

जेटली ने ‘पीटीआई-भाषा’’से कहा, ‘‘एक चीज जो हमें सबसे अधिक चिंतित कर रही है वह कि लॉकडाउन के बाद वे किस तरह से सामान की बिक्री करेंगे। किस तरह का बाजार भविष्य में होगा... क्योंकि हमारे पास भीड़-भाड़ वाले बजार नहीं होंगे, ई-कॉमर्स भी अभी पूरी तरह से काम नहीं कर रहे हैं।’’नीले मिट्टी के बर्तनों के लिए मशहूर राजस्थान के कोट जेवर गांव में करीब 250 लोग मुश्किल का सामना कर रहे हैं। राम नारायण प्रजापति के बेटे विमल कुमार ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ऑर्डर रद्द हो चुके हैं और सामान लेने को फिलहाल कोई तैयार नहीं है। 

कुमार ने कहा, ‘‘हमारे पास कुम्हारों के कम से कम 50 परिवार हैं। सभी ऑर्डर रद्द हो गए हैं। इससे सामान का भंडार जमा हो गया है और अगले दो साल में भी इन्हें बेच नहीं सकते।’’ फेसबुक पर वीडियो के जरिये संभावित खरीददारों से अपील करते हुए उन्होंने कहा, हमारे कलाकार रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में भी समस्या का सामना कर रहे हैं। इंडिया क्राफ्ट प्रोजेक्ट के मुताबिक प्रत्येक दस्तकार परिवार को 3000 रुपये की मदद की गई है। इस योजना में कुमार भी समन्वय कर रहे हैं। दिल्ली हस्तकला परिषद की पूर्व अध्यक्ष पूर्णिमा राय ने कहा कि लॉकडाउन बढ़ने के साथ स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।

Web Title: Artists spill pain in lockdown, said - there is neither raw material, no work nor help

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