अर्नब को अभी जमानत नहीं, उच्च न्यायालय में सुनवायी शनिवार को रहेगी जारी

By भाषा | Published: November 6, 2020 07:40 PM2020-11-06T19:40:21+5:302020-11-06T19:40:21+5:30

Arnab is yet to get bail, will be heard in High Court on Saturday | अर्नब को अभी जमानत नहीं, उच्च न्यायालय में सुनवायी शनिवार को रहेगी जारी

अर्नब को अभी जमानत नहीं, उच्च न्यायालय में सुनवायी शनिवार को रहेगी जारी

मुंबई, छह नवम्बर रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को शुक्रवार को कोई तत्काल राहत नहीं मिली क्योंकि बम्बई उच्च न्यायालय में उनकी अंतरिम जमानत अर्जी पर सुनवायी अधूरी रही। गोस्वामी को आत्महत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने के 2018 के एक मामले में गिरफ्तार किया गया है।

अदालत गोस्वामी की याचिका पर शनिवार को सुनवाई जारी रखेगी जिसमें उन्होंने आर्किटेक्ट-इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने के साथ ही अंतरिम जमानत का अनुरोध किया है।

गोस्वामी को पड़ोसी रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने मामले में बुधवार को गिरफ्तार किया था और वहां की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एम एस कार्निक की एक खंडपीठ ने शुक्रवार को उनके वकीलों हरीश साल्वे और ए पोंडा की दलीलें सुनीं लेकिन कहा कि समय की कमी के चलते सुनवायी शनिवार को जारी रहेगी।

अदालत ने कहा, ‘‘हम इस मामले की सुनवायी के लिए कल दोपहर में बैठेंगे, चूंकि कल अदालत का नियमित कामकाज नहीं होगा, हम इस मामले पर विस्तार से सुनवायी करेंगे।’’ उच्च न्यायालय में सामान्य तौर पर शनिवार को सुनवायी नहीं होती।

सुनवाई के दौरान पीठ ने उल्लेखित किया कि जमानत के लिए सामान्य तौर पर पहले संबंधित निचली अदालत मजिस्ट्रेट या सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया जाता है और यदि जमानत से इनकार कर दिया जाता है तब उच्च न्यायालय का रुख करते हैं।

इस पर साल्वे ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 439 उच्च न्यायालय को जमानत याचिका सुनने के लिए विशेष अधिकार देती है। साल्वे ने कहा, ‘‘उनकी (गोस्वामी की) स्वतंत्रता दांव पर है।’’

अधिवक्ता पोंडा ने कहा कि एक जमानत अर्जी उसी रात अलीबाग में मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष दायर की गई थी जब गोस्वामी को न्यायिक हिरासत में भेजा गया था।

पोंडा ने कहा, ‘‘हालांकि, अर्जी अगले दिन ही वापस ले ली गई थी क्योंकि मजिस्ट्रेट ने इस पर स्पष्टता नहीं दी थी कि इस पर सुनवाई कब होगी और अर्जी पर फैसला करने में मुश्किल जतायी थी क्योंकि मामला सत्र अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है।’’

गोस्वामी को गत चार नवंबर को लोअर परेल स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था और अलीबाग ले जाया गया था। वहां के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें और सह-आरोपियों फिरोज शेख और नीतीश सारदा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

गोस्वामी को वर्तमान में अलीबाग स्थित एक स्थानीय स्कूल में रखा गया है जिसे अलीबाग जेल के लिए एक कोविड-19 केंद्र बनाया गया है।

उच्च न्यायालय शनिवार को शेख और सारदा द्वारा ऐसी ही राहत के लिए दायर याचिकाओं पर भी सुनवायी करेगा।

साथ ही अदालत अन्वय नाइक की पुत्री की ओर से दायर एक अर्जी पर भी सुनवायी करेगी जिसमें उन्होंने मामले की फिर से जांच करने या उसे किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने का अनुरोध किया है।

गोस्वामी के वकीलों ने शुक्रवार को यह भी दलील दी कि महाराष्ट्र सरकार गोस्वामी को अपने समाचार चैनल पर सरकार से सवाल करने के लिए प्रताड़ित करने की कोशिश कर रही है।

अधिवक्ता साल्वे ने कहा, ‘‘यह शक्तियों के दुरुपयोग का एक स्पष्ट मामला है। उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज हैं। 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के इस मामले में पुलिस ने यह अच्छी तरह से जानते हुए उन्हें गिरफ्तार किया है कि अदालतों में जल्द ही दिवाली की छुट्टी हो जाएगी। महाराष्ट्र सरकार केवल उन्हें एक सबक सिखाना चाहती है।’’

वकीलों ने यह भी उल्लेखित किया कि अलीबाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने हिरासत आदेश में कहा था कि गिरफ्तारी गैरकानूनी प्रतीत होती है और पूरे अभियोजन मामले पर सवाल उठाया था।

साल्वे ने कहा, ‘‘अदालत ने उल्लेखित किया कि पुलिस ने मामले को फिर से खोलने से पहले अनुमति नहीं ली है।’’ साल्वे ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में गोस्वामी को जेल भेजने की जरूरत नहीं है।

उच्च न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि क्या मजिस्ट्रेट के बुधवार के आदेश को चुनौती दी गई है।

पोंडा ने जानकारी दी कि पुलिस ने इसके खिलाफ अलीबाग सत्र अदालत के समक्ष एक पुनरीक्षण अर्जी दायर की है।

मई 2018 में, इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमोदिनी नाइक ने आरोपी व्यक्तियों की कंपनियों द्वारा बकाये का कथित तौर पर भुगतान न करने को लेकर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी।

2019 में, अलीबाग पुलिस ने मामले में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की जिसे वहां की एक स्थानीय अदालत ने स्वीकार कर लिया। हालांकि, इस मामले को अक्टूबर 2020 में अलीबाग पुलिस ने फिर से खोल दिया और दावा किया कि नए सबूत सामने आए हैं, जिससे आगे की जांच करना जरूरी हो गया है।

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