अमरावती भूमि घोटाला : प्राथमिकी की रिपोर्टिंग पर लगे प्रतिबंध पर न्यायालय की रोक

By भाषा | Published: November 25, 2020 09:50 PM2020-11-25T21:50:31+5:302020-11-25T21:50:31+5:30

Amravati land scam: Court stays ban on reporting of FIR | अमरावती भूमि घोटाला : प्राथमिकी की रिपोर्टिंग पर लगे प्रतिबंध पर न्यायालय की रोक

अमरावती भूमि घोटाला : प्राथमिकी की रिपोर्टिंग पर लगे प्रतिबंध पर न्यायालय की रोक

नयी दिल्ली, 25 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने अमरावती में जमीन के सौदों में कथित अनियमित्ताओं को लेकर दर्ज प्राथमिकी के बारे में खबरें प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर बुधवार को रोक लगा दी।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि राज्य की राजधानी अमरावती के स्थानांतरण के दौरान जमीन के कथित अवैध सौदों से संबंधित लंबित मामले में उच्च न्यायालय जनवरी के अंतिम सप्ताह तक फैसला नहीं करेगा।

पीठ ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में जांच पर रोक लगाने सहित उच्च न्यायालय के अन्य निर्देशों पर फिलहाल प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के 15 सितंबर के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई के दौरान यह व्यवस्था दी।

शीर्ष अदालत ने हालांकि इस अपील पर मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी को नोटिस जारी नहीं किया लेकिन उसने राज्य के पुलिस महानिदेशक सहित अन्य से इस अपील पर जवाब मांगा है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस दौरान 15 सितंबर, 2020 को दिये गये निर्देशों पर निम्न सीमा तक रोक लगी रहेगी। ’’

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘यह भी निर्देश दिया जाता है कि प्राथमिकी दर्ज होने के बारे में या इस प्राथमिकी के संदर्भ में पूर्व महाधिवक्ता के कार्यालय पर थोपने और दूसरे कथित आरोपी व्यक्तियों के बारे में इलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट या सोशल मीडिया पर खबरें सार्वजनिक नहीं की जायेंगी।’

पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाये। प्रतिवादी संख्या 5 (वाई एस जगन मोहन रेडी) को नोटिस जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 5 को नोटिस जारी नहीं किया था।’’

पीठ ने कहा कि वह राज्य के पूर्व महाधिवक्ता दम्मालपति श्रीनिवास, जिनकी याचिका पर उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था, को भी नोटिस नहीं दिया जा रहा है क्योंकि वह कैविएट पर उसके समक्ष पेश हुये हैं।

न्यायालय ने श्रीनिवास को इस मामले में चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति प्रदान की।

पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा, ‘‘हम इस मामले को जनवरी, 2021 के अंतिम सप्ताह में सूचीबद्ध कर रहे हैं, उच्च न्यायालय से अनुरोध है कि इस दौरान रिट याचिका पर अंतिम रूप से फैसला नहीं करे।’’

वाई एस जगन मोहन रेड्डी सरकार ने 21 फरवरी को पुलिस उप महानिरीक्षक रैंक के आईपीएस अधिकारी की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय विशेष जांच दल गठित किया था जिसे चंद्रबाबू नायडू सरकार के कार्यकाल के दौरान अमरावती राजधानी क्षेत्र में कथित अनियमितताओं, विशेषकर भूमि के मामले में, की व्यापक जांच करनी थी।

सरकार ने कहा था कि राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण में भूमि से संबंधित मुद्दों सहित विभिन्न परियोजनाओं से जुड़ी प्रक्रियात्मक, कानूनी और वित्तीय अनियमितताओं और छल से हुये सौदों के बारे में मंत्रिमंडल की उप समिति की रिपोर्ट विशेष जांच दल से जांच कराने का आधार होगी।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से इस याचिका पर सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने दलील दी कि उच्च न्यायालय को ऐसा नहीं कहना चाहिए था कि इस मामले में कोई जांच नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को यह आदेश देने चाहिए थे कि कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाये और मीडिया के रिपोर्टिंग करने पर प्रतिबंध भी नहीं लगाया जाना चाहिए था।

धवन ने सवाल किया, ‘‘इस याचिका के बारे में ऐसी क्या खास बात थी? इस मामले का सार इसका दुराग्रह है लेकिन याचिका में यह कहां नजर आ रहा है?’’

धवन ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के समक्ष मुख्यमंत्री के खिलाफ यह एक ‘राजनीतिक‘ याचिका थी और यह विश्वसनीय सूत्रों पर आधारित थी।

धवन ने कहा, ‘‘शिकायत में सबूत हें और यह कई पन्नों में हैं। अब सवाल यह है कि किसान जून और जुलाई में जमीन खरीद कर जनवरी में क्यों बेचेंगे?’’ अब मैं खुद से सवाल करता हूं कि क्या इस तरह की शिकायत की जांच होनी चाहिए या नहीं। कई गंभीर किस्म के सौदे थे और क्यों इनकी जांच नहीं होनी चाहिए थी।’’

धवन की दलीलों का संज्ञान लेते हुये पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि इस मामले में विचार की जरूरत है और इसलिए हम नोटिस जारी करेंगे।’’

पूर्व महाधिवक्ता धम्मालपति श्रीनिवास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘‘हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है। मामले की सुनवाई होनी चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि यह बेहूदा बात है कि किसी को इस बात की पहले से जानकारी थी कि राज्य की राजधानी के लिये जमीन ली जा रही है। ‘‘यह सर्वविदित है कि इस बारे में योजना कब आयी।’’

रोहतगी ने कहा, ‘‘यह आपातकाल से भी बद्तर है। किसी को निशाना बनाना आसान है लेकिन प्रतिष्ठा अर्जित करना बहुत कठिन काम है। एक अधिवक्ता को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह पूर्ववर्ती सरकार का महाधिवक्ता था।’’

पूर्व महाधिवक्ता की ओर से ही वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अगर आदेश इतना ही गलत था तो राज्य सरकार को वापस उच्च न्यायालय जाना चाहिए था और इसे खत्म कराना चाहिए था।

उन्होंने कहा, ‘‘यह आदेश सितंबर में पारित हुआ और अब नवंबर चल रहा है लेकिन अभी तक कोई जवाब दाखिल नहीं हुआ।’’ उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर आरोप लगाये गये।

साल्वे ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लिया था क्योंकि उसे मालूम है कि राज्य में क्या कुछ हो रहा है। अब वे (राज्य) यह मामला बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि (पूर्व) महाधिवक्ता को पहले से जानकारी थी और उन्होंने जमीन खरीद ली थी। यह अधिकारों का दुरूपयोग है।’’

उन्होंने कहा कि इस न्यायालय को इसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए कि उन्हे उच्च न्यायालय में आस्था नहीं है।

धवन ने इन दलीलों के जवाब में कहा कि राज्य किसी भी अदालत के खिलाफ नहीं है लेकिन आपराधिक मामले की तो जांच होनी ही चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘आरोपों में अपराध का पता चलता है और इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुयी। ऐसा आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए था।

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Web Title: Amravati land scam: Court stays ban on reporting of FIR

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