अमित शाह ने सांसदों से कहा, हम जो बोलते हैं उससे संसद और हमारे लोकतंत्र की साख बनती-बिगड़ती है
By भाषा | Published: July 4, 2019 07:37 PM2019-07-04T19:37:50+5:302019-07-04T19:37:50+5:30
नवनिर्वाचित सांसदों के लिये आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘‘हमें ये सदैव ध्यान रखना चाहिए कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में जवाब देना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इसके साथ में कानून बनाने की प्रक्रिया में हमारा योगदान महत्वपूर्ण और सटीक होना चाहिए।’’
भाजपा अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह ने नवनिर्वाचित सांसदों से बृहस्पतिवार को कहा कि हम सभी को इस बात का बोध होना चाहिए कि हम जो बोलते हैं उससे ‘‘संसद और हमारे लोकतंत्र की साख बनती-बिगड़ती है’’, ऐसे में सभी को अपने दायित्व का ध्यान होना चाहिए।
लोकसभा सचिवालय की ओर से नवनिर्वाचित सांसदों के लिये आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘‘हमें ये सदैव ध्यान रखना चाहिए कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में जवाब देना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इसके साथ में कानून बनाने की प्रक्रिया में हमारा योगदान महत्वपूर्ण और सटीक होना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि देश ने लोकतंत्र को पहले ही स्वीकार कर लिया था। उसके बाद बहस हुई कि लोकतंत्र के किस स्वरूप को हम स्वीकार करें। उस पर हमारी संविधान सभा ने तय किया कि भारत के लिए बहुदलीय संसदीय व्यवस्था हमारे लिए उपयुक्त होगी और उसे हमने स्वीकार किया।
LIVE: HM Shri @AmitShah addresses newly elected members of 17th Lok Sabha. https://t.co/dr6WqiMYNi
— BJP (@BJP4India) July 4, 2019
‘प्रभावी सांसद कैसे बने’ विषय पर अपने संबोधन में गृह मंत्री ने कहा, ‘‘ हमें सदैव इस बात का बोध रहना चाहिए कि हम जो यहां बोलते हैं उसे सिर्फ हमारे क्षेत्र के लोग देख रहे हैं या पार्टी के लोग ही देख रहे हैं, ऐसा नहीं है। यहां हमारा वक्तव्य दुनिया के लोगों के सामने है। हमारी बात से ही संसद और हमारे लोकतंत्र की साख बनती-बिगड़ती है।’
उन्होंने कहा कि सदन का प्राथमिक दायित्व कानून बनाना है। यहां बजट पेश होता है, बजट पर अलग-अलग विचार व्यक्त होते हैं। बजट के माध्यम से देश का खाका खींचने का काम ये संसद ही करती है।
अमित शाह ने कहा कि एक नागरिक का देश के प्रति धर्म क्या होता है? एक सांसद का संसद के प्रति धर्म क्या होता है इसका बोध कराने के लिए ये 'धर्मचक्र प्रवर्तनाय' का सूत्र यहां लिखा है। नवनिर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि 'धर्मचक्र प्रवर्तनाय' का मतलब है कि भारत के शासक धर्म के रास्ते आगे बढ़े।
धर्म का मतलब ‘रिलीजन’’ नहीं होता है बल्कि धर्म का मतलब ‘‘फर्ज’’ होता है, हमारा ‘‘दायित्व’’ होता है। उन्होंने कहा कि संसद के हर द्वार के ऊपर वेद, उपनिषद और सभी धर्म ग्रंथों से अच्छी बातें लिखी हैं और सभी सांसदों से अनुरोध है कि उन बातों को वे जरूर पढ़ें ।